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कहानी : जनाना मर्दाना... रिवेश प्रताप सिंह

कहानी : जनाना मर्दाना... रिवेश प्रताप सिंह
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हिन्दी के उन मूर्धन्यों को भी सौ तोपों की सलामी जिन्होंने सजीव के अतिरिक्त निर्जीवों में स्त्रीलिंग-पुलिंग की श्रेणी बना डाली। सजीवों में तो लिंग निर्धारण आसान है किन्तु वह कौन सा परीक्षण है जिसकी कसौटी पर कस कर निर्जीव वस्तुओं का लिंग-निर्धारण किया जाता है?

यदि हम आकार के हिसाब से माने तो 'सुराही' तो देखने में ही जनाना लगती है और 'घड़ा' पूरा मर्दाना। लौकी, भिन्डी, तरोई की नजाकत देखकर उसे जनाना कहने में किसी को गुरेज़ नहीं होना चाहिए और शायद इसी आधार पर उन्हें जनाना कुर्सी मिली भी। उसके उलट लोटा और कद्दू शायद अपने पेट और भौंड़ेपन के कारण मर्दाना तख्त पर बिठाये गये।

केले पर कोई टिप्पणी नहीं करूंगा लेकिन आम को मर्द बनाया ठीक किया क्योंकि इतना पिलपिला तो मर्द ही हो सकता है। लेकिन यह बताइए!किस आधार पर लीची, जनाना बनी? उसके रंग और खुरदुरेपन के लिहाज़ से ढकेल दिये होते मर्दाना खेमे में! कोई कुछ न बोलता।

अब आती है बात, गाजर की। बताइए! आपने क्या देखकर उसे मर्द बनाया जबकि मूली जनाना बन गई? अरे! करना ही था तो पतली मूली को जनाना बना देते और मोटे भौंडे को 'मूला' नाम देकर मर्दाना! उसी तरह लाल गाजर को जनाना तथा काले को मर्दाना! कौन शिकायत करने आता आपसे?

लोहे को ठोंक-पीटकर मर्द बनाया समझ में आता है लेकिन उसी लोहे से बनी तलवार को किस आधार पर जनाना बना दिया? वैसे मैं समझ रहा हूँ आपकी चालबाजी! केवल इस आधार पर तलवार जनाना हो गई कि बनाया गया कि वो म्यान की घूँघट ओढ़े है।

गंदगी को जनाना बनाया। लेकिन कमाल देखिए! सफाई को भी जनाना बनाकर बैलेंस कर दिया। इधर कूड़े को मर्दाना बनाकर मर्दाना कूड़ेदान में ढकेल दिया। रोशनाई को जनाना बना प्रेमपत्र से लेकर ग्रंथ तक लिखा डाले और बेचारे दवात का हाल देखिए! पोपट की तरह खड़ा करके मर्द बना दिया।

ढोलक-तबला आदि को उनकी लतखोरी के आधार पर मर्द बना दिया गया और बांसुरी जो कि बांस के मर्दाना कुल से जुड़ी है उसे वहाँ से निकाल जनाना बना दिये। उसी तरह सांरगी, शहनाई जो छूकर या फूंककर बजाई जाती है जनाना बनाकर सम्मानित किया।

बस चार महीने सर्दी झेलने वाले गेहूं को मर्द करार किया। और साल भर धूप-घाम, पानी-पत्थर, जाड़ा-पाला झेलने वाली अरहर जनाना हो गई? अच्छी बात, तवा जो काला जन्मा ही था, जल-तपकर और काला बन गया उसे मर्द बना दिया। चलो यह भी ठीक.. लेकिन जो तवे पर फूल कर वाहवाही लूटी उसे रोटी बनाकर जनाना खेमे में कर दिया? यहाँ तक कि थाली को भी मर्द नहीं बनाया कि कम से कम आराम से उसके साथ तो रहती!

मूंछें, जो कि मर्दाना चेहरे पर उगने के लिये बनाई गयीं, जिसे ऐंठ कर मर्द अपनी मर्दानगी का रौब झाड़ते हैं, जनाना बना दी गई और स्त्रियों के आँखों में बसने वाले काजल को मर्दाना बनाकर दिग्भ्रमित कर दिया गया.

हद्द तो तब कर दी जब बोतल बंद शराब को जनाना बना दिया और उसके पीने वाले को पियक्कड़ कहकर मर्दाना बना दिया। धुनाई, पिटाई, धुलाई को जनाना के हाथ में सौंपा और लुहेड़ा, भगौड़ा को मर्द कहकर घुटने टिका दिया।

बातें और उदाहरण हजारों हैं लेकिन इतनी बात से आप समझ गये ही होंगे कि बड़ी नाइंसाफ़ी की गई है साहब. और यह नाइंसाफी इसलिए कि हिंन्दी भी जनाना में आती है।

रिवेश प्रताप सिंह

गोरखपुर

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