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भोजपुरी कहानिया

सीता बनवास...

सीता बनवास...
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रामकथा में सीता बनवास एक ऐसा प्रसङ्ग है, जो बुद्धिजीवियों को सदैव आनंदित करता रहा है। कारण यह, कि इस प्रसङ्ग पर तर्क, कुतर्क की अनंत सम्भावनाएं हैं। इस विषय पर ज्ञानी, विज्ञानी, अज्ञानी सब खूब तर्क कर लेते हैं, और सबको तृप्ति मिल जाती है।

वैसे अब यह पूर्णतः सिद्ध हो चुका है कि वाल्मीकि रामायण का उत्तर काण्ड पूर्णतः क्षेपक है। भाषा और श्लोक के स्तर के आधार पर संस्कृत का एक सामान्य विद्यार्थी भी यह समझ सकता है कि रामायण का उत्तरकाण्ड शेष खण्ड से पूर्णतः भिन्न है।

वस्तुतः भारतीय संस्कृति इतनी प्राचीन है कि किसी भी धर्मग्रंथ में बाद में कुछ नहीं जोड़ा गया हो ऐसा सम्भव नहीं लगता। ऊपर से आध्यात्म को लेकर लगातार जितना विमर्श भारत में हुआ है, उतना कहीं और नहीं हुआ। इस तरह क्षेपकों की संभावना से कोई इनकार कर ही नहीं सकता।

इतिहास पलट कर देखें तो सम्राट अशोक से लेकर हर्षवर्धन तक सनातन और बौद्ध धर्म बारी बारी से राष्ट्रधर्म बनते रहे हैं। इन आठ सौ वर्षों में सनातन और बौद्ध के मध्य लम्बी प्रतिस्पर्धा चली है। इस बीच जब-जब बौद्ध धर्म को राजाश्रय मिला, बौद्ध विद्वानों ने सनातन ग्रन्थों के साथ छेड़छाड़ की। और जब जब सनातन को राजकीय प्रश्रय मिला, सनातनी विद्वानों ने बौद्ध कथाओं के साथ छेड़छाड़ की। आपको जान कर आश्चर्य होगा, बौद्ध कथाओं में एक स्थान पर सीता को राम की बहन बताया गया है।

ऐसा केवल धार्मिक ग्रन्थों के साथ ही नहीं हुआ, बौद्ध धर्म या सनातन धर्म को मानने वाले राजाओं के चरित्र पर भी छींटे मारे गए हैं। अशोक का अपने निन्यानवे भाइयों को मारना, और अजातशत्रु का विम्बिसार को मारना, और पुष्यमित्र सुंग को भयानक क्रूर बताया जाना भी इसी तरह की लीला है।

बौद्धों ने सनातन को क्रूर दिखाने के लिए कई स्थानों पर अतिशयोक्ति की है। अशोक, अजातशत्रु आदि जो राजा बाद में बौद्ध बन गए थे, उनके सम्बन्ध में लिखते समय उन्हें बौद्ध बनने से पूर्व राक्षसों की तरह का क्रूर दिखाया गया है। यह उस काल की राजनीति थी। ध्यान से देखिये, आज भी आपको ऐसे षड्यंत्र हर ओर दिखेंगे।

आप बौद्ध-जैन को छोड़िये, किसी एक व्यक्ति द्वारा प्रारम्भ किये गए विश्व के किसी भी सम्प्रदाय को देखिये, सब कहते हैं कि हमारे आने के पूर्व धरती के लोग जाहिल थे। यही बौद्धों ने भी किया था। उन्होंने सनातन के सबसे बड़े स्तम्भ राम पर उँगली उठा सकने के लिए सीता बनवास प्रसङ्ग जोड़ा, शम्बूक वध प्रसङ्ग जोड़ा...

कल मेरे एक ख्यातिप्राप्त मित्र ने सीता बनवास प्रसङ्ग को क्षेपक मानने के तर्क को क्रूरता के साथ नकारते हुए यहाँ तक कह दिया कि सीता बनवास को क्षेपक मानने वाले धूर्त हैं। उन्होंने सीता बनवास और शम्बूक वध दोनों को स्वीकार करते हुए उनके पक्ष में तर्क गढ़ा। मैं एक कथा सुनाता हूँ-

हमारे पूर्वांचल में एक पर्व मनाया जाता है "छठ"। यह भारत के सबसे प्राचीन पर्वों में से एक है, जो वैदिक काल से मनाया जाता है। यह नई फसल को खाने से पहले सूर्य देव को अर्पित करने का पर्व है। आपको आश्चर्य होगा कि वैदिक युग से आज तक की यात्रा में इस पर्व के देवता सूर्य कब बदल कर "छठी माता" हो गए यह समय को भी पता नहीं चला। मतलब पूरी तरह देवता पुरुष से स्त्री हो गए। यह एक प्राचीन संस्कृति की लंबी यात्रा में आने वाले सामान्य बदलाव है, और सनातन में ऐसे अनेक उदाहरण हैं। अब यदि कोई कहे कि यह बदलाव नहीं, सच में देवता परिवर्तित हो गए तो फिर इसके लिए कौन सा तर्क गढ़ेंगे आप?

मित्र! सनातन ने अपने ऊपर षड्यंत्रों का असंख्य प्रहार सहा है। बौद्ध, जैन, इस्लाम और किरस्तान, सबने सनातन को समाप्त करने का हर सम्भव प्रयास कर लिया है। सीता बनवास भी वैसा ही एक प्रयास मात्र है।

अब प्रश्न यह है कि क्या सीता बनवास प्रसङ्ग जोड़ देने से राम की छवि धूमिल हो जाती है? क्या इससे राम स्त्रीविरोधी हो जाते हैं?

नहीं मित्र! राम भारत ही नहीं, समूचे विश्व में मर्यादा के सबसे बड़े प्रतीक हैं। स्त्री के साथ उनका व्यवहार देखना हो तो देखिए कि कैसे समाज द्वारा परित्यक्त अहिल्या को वे वह सम्मान दिलाते हैं, कि आज भी अहिल्या के वंश के 'वत्स गोत्रीय' स्वयं को सर्वश्रेष्ठ ब्राह्मण कहते हैं। देखिये कि कैसे वे एक दरिद्र विधवा बनवासिनी का जूठा खाते हैं। देखिये कि कैसे वे अपनी पत्नी के लिए विश्व के सबसे शक्तिशाली साम्राज्य से अकेले टकराते हैं और समुद्र पर पुल बाँधते हैं। देखिये कि कैसे वे शत्रु पत्नी मंदोदरी को माता कहते हुए उन्हें पूज्य पंचकन्याओं में स्थान दिलाते हैं। देखिये कि उनको सबसे ज्यादा दुःख देने वाली विमाता कैकई को कैसे वे अपने राज्य की राजमाता की पदवी देते हैं।

राम भारतीय आँगन के वे बड़े पुत्र हैं जिनपर उनके पिता और समाज को स्वयं से अधिक विश्वास है, कि यह कोई अपराध कर ही नहीं सकता। राम राम हैं, सिंगल पीस... यूँ ही विश्व मे सबसे अधिक स्थानों का नाम "रामपुर" नहीं है। सीता बनवास जैसे क्षेपक उनके चरित्र के सामने स्वयं का अस्तित्व भी नहीं बचा सकते...

सर्वेश तिवारी श्रीमुख

गोपालगंज, बिहार।

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