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भोजपुरी कहानिया

शर्मा जी घर में चूहों से बहुत परेशान....

शर्मा जी घर में चूहों से बहुत परेशान....
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वैसे चूहे होते भी विचित्र हैं.. ये अपने खाने के अतिरिक्त, मानव जाति के प्रयोग होने वाले उन संसाधनों पर भी दखल रखते हैं जिससे न तो उनका सरोकार है और न कभी उनके पुरखों का रहा। कभी आप चूहे की बिल खोदे तो आप पायेंगे कि चूहे ऐसी भी चीजें बिल में घुसेड़ ले गया जो उसके किसी काम की नहीं.. मसलन- बच्ची की हेयर-बैण्ड जूते का फीता इत्यादि.. वैसे ऐसी प्रवृत्तियां उन्हें मनुष्य जाति के सम्पर्क में रह कर सीखी होंगी.. कम से कम ईर्ष्या तो अवश्य ही. क्योंकि किसी दूसरे को प्रकारान्तर से क्षति पहुंचाने की प्रवृत्ति मनुष्य के बाद चूहों में देखी सुनी जा सकती है.. यदि ऐसा न होता तो खाद्य सामग्री की पर्याप्त उपलब्धता के बाबजूद वे नामुराद कपड़ों और बोरों को नहीं काटते, कुतरते . वैसे अभी कुछ जीवविज्ञान शास्त्री बताने का प्रयास करेंगे कि चूहे अपने दाँतों को तेज करने के लिए वस्तुओं को कुतरते हैं लेकिन यह तर्क तब किताबों में धरा का धरा रह जाता है जब उनकी चौबीस सौ की बुशर्ट या आठ हजार की साड़ी कुतर डाले..उस वक्त उनके मस्तिष्क और जिह्वा पर सिर्फ गालियां ही आयेगी न कि जीव विज्ञान का वह पैरा जिसमें चूहों के दंत विशेषता का वर्णन है.. खैर! चूहों का क्या... देश का प्रत्येक नागरिक चूहों के अवगुणों से परिचित और परेशान हैं..

हां तो जब शर्मा जी बहुत हैरान-परेशान हुए तो घर में चूहे मार दवा रखने की सोची लेकिन परिवार में विरोध हुआ.. विरोध का पहला बिन्दु - सुनियोजित हत्या की योजना जैसा अपराध और दूसरा- जहरीली दवा का बच्चों के हाथ लगने का भय. सो चूहामार दवा की योजना शिलान्यास की तरह जमीन में गड़ी और पड़ी रह गई। एक दिन शर्मा जी अपने पारिवारिक गुरु के समीप गये और अपनी व्यथा और वेदना बताई साथ में निराकरण के उपाय भी पूछा. गुरुजी ठहरे आध्यात्मिक और सात्विक तबियत आदमी..वो कदापि ऐसी युक्ति न बताने वाले थे जिसमें उनके माथे हत्या का कलंक लगे सो उन्होंने शिष्य को सुझाव दिया की घर में एक बिल्ली पाल लो.. हांलाकि शिष्य के लिए यह आदेश ही था फिर भी उन्होंने दबी जुबान से पूछा- "गुरुदेव! ऐसा करने से मुझ पर हत्या का आरोप तो न होगा क्योंकि बिल्ली भी चूहों को मारकर खायेगी ही."

गुरुदेव ने बड़े शान्त भाव से कहा कि 'बेटा! प्रकृति ने बिल्ली को चूहे के निमित्त भेजा है यह संतुलन की एक प्राकृतिक प्रक्रिया है इसमें सुनियोजन जैसा कुछ भी नहीं। तुम भ्रम न पालों.. सिर्फ बिल्ली पालो बिल्ली..."

गुरुदेव के आदेश पर सप्ताह भर के खोजबीन एवं निरीक्षण के उपरांत एक बिल्ली लायी गई.. डरी-सहमी सी बिल्ली जिसको पूरे एक माह लग गये परिवार में घुलते मिलते.. हांलाकि चूहे अभी बेखौफ़ थे। बिल्ली के लिये रोज दूध और ब्रेड का इन्तजाम होने लगा लेकिन शर्मा जी के मन में यह अवश्य रहता कि अब बिल्ली को अपने ड्यूटी पर लग जाना चाहिए! दर्जनों बार इशारे से चूहों की धमाचौकड़ी दिखाई गई लेकिन बिल्ली तो खाकर टन्न रहती और दिन में सोलह घंटे नींद में गोते लगाती।

एक दिन श्रीमती ने दबी जुबान से पूछा " बुरा न लगे तो एक बात पूछूँ! यह जो बिल्ली आप लाये हैं वो पालने के लिए लाये हैं या चूहों की सफाई के लिए!"

शर्मा जी ने लाचार भाव से श्रीमती जी को देखा और उठकर गुरुजी के आश्रम निकल दिये.. आश्रम पहुँच गुरुजी की चरणवंदना के बाद चुपचाप उनके समीप में बैठ गये. जब उन पर गुरुजी की निगाह पड़ी तो गुरुजी ने पूछा! "क्या हाल है बेटा?"

शर्मा जी ने बुझे चेहरे से कुशलता की झूठे संकेत भेजे

"और बिल्ली! कमाल कर रही है न?"

यह प्रश्न बड़े विश्वासपूर्वक गुरुजी ने अपने शिष्य से पूछा।

शर्मा जी क्रोध और लाचारी के मिश्रित भाव से बोले-"हां! खूब पूंछ पटक के खा रही है और सोलह घंटे सो रही है।"

पहले तो गुरुजी समझ न पाये बोले-" बेटा! चूहा पकड़ना बड़ी कठिन और श्रमसाध्य प्रक्रिया है चार छह चूहे पकड़ने में बड़ी ऊर्जा नष्ट होती है तभी तो सोती है सोलह घंटे।"

"और सब कुशल है न बेटा!"

"सब है गुरुजी! जस के तस चूहे हैं, मोटी ताज़ी बिल्ली भी है...लेकिन बस कुशल नहीं हैं" शर्मा जी ने थोड़े चिड़चिड़े भावभंगिमा का प्रदर्शन किया!

"मतलब की बिल्ली चूहे नहीं पकड़ रही" गुरुजी चौंककर बोले"

"गुरुजी आज तक एक न पकड़ी"

"तो खाती क्या है" गुरुजी विस्मय से पूछा!

"दूध ब्रेड"

ओह्ह! तभी तो मैं कहूँ कि कैसे योजना फेल कर गई

जब उसे घर बैठे दूध मलाई मिलेगी तो उसे कुत्ता काटा है कि वो चूहे पकड़े। उसे भूखा रखो, भूख परेशान करेगी तब वो शिकार पर निकलेगी तब चूहों में खलबली मचेगी।

शर्मा जी को गुरुजी की बात पल्ले पड़ी..घर आये सबसे पहले बिल्ली का कटोरा जब्त किया फिर सबको हिदायत दी. कहा कि आज से इसका खाना बंद, इसे स्वावलंबी बनने दो. आदेश अनुपालित हुआ लेकिन बिल्ली को क्या मालूम कि उसके पीठ पीछे इतना षडयंत्र चल रह है। बेचारी के पेट में खलबली मचने लगी, दिनभर किचेन के फाटक पर पंजा लड़ाते बीता लेकिन उसे एक बार भी चूहों के शिकार का ध्यान न आया. बिल्ली के लिए रण से आसान याचना का मार्ग चुना.. याचना असफल भी न रही, द्रवित होकर इतना अवश्य मिला कि शिकार और हत्या का प्रयत्न न करना पड़े.. अन्तोगत्वा बिल्ली लेटकर, लिपटकर, म्याऊँ-म्याऊँ करके अपने जीने भर का प्रबंध कर लेती और ऐसे करते करते दो महीने गुजर गये लेकिन कभी चूहों का ध्यान ही न रहा.

शर्मा जी जब पूरी तरह हार गये तो फैसला लिए कि इसे कहीं छोड़ आयें लेकिन परिवार के भीतर भी बिल्ली के पक्ष में एक जनमत तैयार हो गया जो कतई तैयार न था कि बिल्ली को यहां से हटाया जाये.. तमाम रस्साकशी के बाद शर्मा जी बिल्ली को बाहर छोड़ने के लिए सबको राजी किये और बिल्ली को बोरे में भरकर बारह किलोमीटर दूर छोड़ कर घर की तरफ लौटे लेकिन पता यह चला कि बिल्ली उनके आने के पांच मिनट पहले पहुंचकर दूध ब्रेड उड़ा रही थी.. ज्यों ही उसने शर्मा जी की आहट पायी कटोरे से ऐसा मुंह उठाकर देखा, मालूम पूछ रही हो कि कहां रुक गये थे शर्मा जी। इधर अचंभित,पराजित शर्मा जी तीन दिन तक बेचैन रहे कि बिल्ली किस गति या गाड़ी से यहाँ पहुंची!

ऐसा नहीं कि शर्मा जी हार माने पांच महीने में तीन बार पचास किलोमीटर तक छोड़ने का प्रयास किये लेकिन हर बार बिल्ली घर पहुंची फर्क सिर्फ इतना रहा कि दो बार इनके आने और खुशी मनाने के आठ घंटे बाद पहुंची।

आठ माह गुजर गये..शर्मा जी का भरा पूरा परिवार सैकड़ों चूहे और एक शाकाहारी बिल्ली के साथ रहते हैं..

लेकिन जो सबसे बड़ी समस्या यह कि बिल्ली गर्भवती हो गई है समझ नहीं आ रहा कि चूहे एक न मार पायी लेकिन यह कमाल करना न भूली।

एक मुसिबत पाल ही रहे थे कुछ और नमूने आने वाले हैं! चूहे की समस्या तो कम थी.. कम से कम उनकी प्रत्यक्ष जिम्मेदारी तो नहीं थी आँख के पीछे खाते-कुतरते थे लेकिन जो समस्या खुद ही गले पड़ी हो उसका क्या किया जाये भला!

मित्रों जीवन में ऐसा भी होता है कि समाधान के उपकरण भी समस्या बन कर खड़े हो जाते हैं लेकिन सबसे बड़ा संकट यह कि समस्या की बुराई तो की भी जा सकती है लेकिन समाधान के उन उपकरणों की बुराई किससे की जाये जिसको आपने अपने गले में लटकाकर, पूरे बाज़ार में दिखा कर, टहला कर, गाल बजाकर घर लाया हो.

रिवेश प्रताप सिंह

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