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भोजपुरी कहानिया

बबिता कुमारी मरखहवा माटसाब और परीक्षा वाला प्यार

बबिता कुमारी मरखहवा माटसाब और परीक्षा वाला प्यार
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किसी मरखहवा माटसाब के जबरदस्त कुटाई के बाद आमतौर पर लड़कों में दो तरह के मानसिक परिवर्तन दिखते थे, या तो वो लड़का इंजीनियर या डॉक्टर बनने का सपना अपने भीतर धान नियुत रोप लेता था या हमारे जैसा लड़का थेथर हो जाता था। लड़कियों में कुछ खास परिवर्तन नहीं दिखते थे, क्योंकि वो अपनी मधुर आवाज, नेल पोलिश के रंग, पायल के छनछन और पैराशूट का गमकौउआ नारियल तेल से ही माटसाब के क्रोध को मोह लेती थी अतः जो तेज थी वो तेज होते चली गयी जो बानर थी वो बानर ही रह गयी।

बात उन दिनों कि है जब बबिता कुमारी गणित विषय में टॉप की थी और हम अंग्रेजी विषय में टॉप किये थे, हम अंग्रेजी विषय में टॉप किये थे ऐसा कहना गलत होगा, हमको बबिता कुमारी टॉप करवाई थी ऐसा कहना ज्यादा सही होगा। हमारी अंग्रेजी ठीक उतनी ही कमजोर थी जितनी की आज बनारस का पुल है, जिसमे ढहता तो पुल है पर चपता, मरता हमारे और आपके जैसा आम आदमी है। जब कभी भी माटसाब को कूटने या सोटने का मन होता वो पूरी क्लास से एक-एक करके सवाल पूछा करते थे। उनका एक एक्स्ट्रा सिद्धांत था कि जिस बच्चे से एक बार सवाल पूछा जा चुका है उससे दुबारा भी पुछा जा सकता है, इसीलिए बच्चों में डर की प्रतिशत और ज्यादा बनी रहती थी और सभी सतर्क रहते थे। अगला सवाल का तोप किसपे गिरेगा ये बच्चों का थथुना देखकर माटसाब कैलकुलेट करते थे। जहां बच्चे सवाल से डर कर अपना आँख छुपाते थे, वहीँ हम माटसाब की और तन कर देखते थे, क्योंकि बबिता कुमारी ही हमको बताई थी कि जो बच्चा सवाल पूछते वक्त हमेशा मास्टर की और देखता है उससे सवाल पूछे जाने की प्रोबेबिलिटी बहुत कम होती है।

एक दिन माटसाब परमोदवा के तरफ निशाना बोजते हुए हमारे तरफ तोप छोड़ दिए। आप बताइये लल्लन मिशिर अंग्रेजी वर्णमाला में भौवेल की संख्या कितनी होती है और वो कौन-कौन से हैं ? इससे पहले की हम जवाब देते, एक बार हम बबिता की तरफ देखते हैं और महसूस करते हैं कि बबिता का बताया हुआ नियम यहां ठीक वैसे ही फेल हो गया है जैसे डालटन का परमाणु अविभाज्य नियम फेल हो गया था आधुनिक मत से दबकर जिसमे परमाणु अविभाज्य न होकर भाज्य हो गया था इलेक्ट्रॉन, प्रोटोन, और न्यूट्रॉन में। बबिता माटसाब की और देख रही होती है, हम बबिता की ओर, और पूरी क्लास हमदोनो को, तब तक मेरे गाल पे से एक चट्टाक का आवाज आता है, और मैं पुनः माटसाब की और देखने लगता हूँ। शायद माटसाब ही परमोदवा को मारने का आदेश दिए होंगे, मुझे होश में लाने के लिए । परमोदवा भी मौका का फायदा उठाते हुए हिंच के मारा था। हम गाल लगड़ते हुए बोले - सर पांच होते हैं ऐ, ई, आई, ओ, यू।

अगला सवाल फिर से हमारे ऊपर ही आता है अब बताओ लल्लन मिशिर कॉन्सोनेन्ट की संख्या कितनी होती है और वो कौन-कौन से हैं ? इस बार बिना बबिता की तरफ देखते हुए, हम जल्दी से उत्तर दिए - कुल इक्कीस, सारे भोवेल यानि ऐ, ई, आई, ओ, यू को छोड़कर सभी कॉन्सोनेन्ट हैं। ''लल्लन मिशिर तुम खड़े रहोगे, हमे क्या बेबकूफ समझते हो'' माटसाब क्लास का माहौल गरमाते हुए बोले। मेरा जवाब सटीक भले ही न था पर सही जरूर था। कुटाई की डर से हमारा हाल रसायन विज्ञान में विराजमान एटम के किसी न्यूट्रॉन की तरह न्यूट्रल हो गया था जिसपे कोई चार्ज नहीं होता है। हमपे चार्ज चढ़ाने के लिए माटसाब छड़ी लेकर आगे बढ़े, हाथ निकालो चोट्टा अइसही जवाब दिया जाता है। हम बच्चे भी कम नहीं होते थे उस वक़्त, माँ की हाथ से बाल में लगाया हुआ करुआ तेल को अपने हाथ में वापस खींच लेने की शक्ति सबसे ज्यादा वहीँ दिखती थी। शायद इसीलिए माँ भी बाल में करुआ तेल चपोत के लगाती होगी।

अगले ही पल हमारा दोनो हाथ आगे था, ससरने की आकार में, माटसाब की चार छड़ी हमारा हाथ सह चुका था, नहीं.....नहीं.... हाथ पे से छड़ी ससर चुका था और पांचवा छड़ी हमने जानबूजकर लैप्स कर दिया और चोट परमोदवा के जांघ पे जाकर लगा। उसके एक चांटा मारने से जितनी लालिमा हमारे गाल पे आई थी उससे दोबर लालिमा जरूर परमोदवा के जांघ पे आ गयी होगी। उस दिन के बाद से इस्कूल का कोई भी लड़का परमोदवा को मौका का फायदा उठाते नहीं देखा। अगले सप्ताह से परीक्षा शुरू होने वाली थी। परीक्षा में संस्कृत वाले मास्टर साब मेरे बगल में बबिता को बैठा दिए। हम जुगाड़ू थे इसीलिए हमारी गणित अच्छी थी, बबिता के पिता जी दूसरे विद्यालय में अंग्रेजी के मास्टर थे इसीलिए बबिता की अंग्रेजी अच्छी थी। परीक्षा के दौरान हमदोनों ने एक-दूसरे की कॉपी देखकर चोरियां भी की और मीठी बातें भी। हमें बबिता से पियार था इसीलिए हमने गणित की सारी सवाल बनाने के बाद सवाल नम्बर चार और सात का जवाब काट दिया, ताकि बबिता का नम्बर हमसे ज्यादा आये। मुझे पता नहीं बबिता को भी हमसे पियार था या नहीं पर परिणाम आने के बाद बबिता की अंग्रेजी विषय वाली कॉपी में दो सवाल के जवाब कटे हुए दिखे, सवाल नम्बर सात और दस।

ये एक परीक्षा नहीं बल्कि हमारे बचपन की प्रेम की निशानी थी, हमदोनों का प्यार यही था कुछ निश्छल सा कुछ अकृत्रिम सा।

(ये पांचवीं कक्षा की कहानी थी, दरअसल उस समय पांचवीं कक्षा से ही अंग्रेजी पढ़ना और पढ़ाना शुरू किया जाता था)
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और हां, जिस दिन हम माटसाब से पिटाये थे उसके एक दिन बाद परमोदवा के माई मनोहर चचा से कह रही थी - " कइसन मास्टर है भंगलहवा बुतरुआ के मरलके हे जे जांघा में बाम कबड़ गेले है।😁😁

अभिषेक आर्यन
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