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भोजपुरी कहानिया

भोजपुरी मनोरंजन को साफ सुथरा बनाने की मुहिम में "भोर" लघु फिल्म को मिला दर्शकों का साथ

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वर्तमान दौर में भरतीय फि‍ल्म जगत में व्यावसायि‍क फि‍ल्मों का बोलबाला है। ऐसे में 'कि‍सान आत्महत्या' जैसी लीक से अलग कि‍सी वि‍षय पर कोई फि‍ल्मा बनाना, वह भी एक नवोदि‍त मंच ''पुरुआ भोजपुरि‍या सांस्कृतिक पुनर्जागरण मंच'' के बैनर तले – ये बड़ा ही जोखीम भरा नि‍र्णय था।

खैर प्रसंग यह नहीं है, प्रसंग है 'भोजपुरी फि‍ल्मों में अश्ली‍लता' को परोसे जाने की वि‍षाक्त' प्रवृति का कैसे शमन कि‍या जाए, कैसे नि‍ष्प्र्भावी कि‍या जाए।

'पुरुआ' ने सतपथ पर अपना कदम बढ़ाया और 'कि‍सानों में आत्महचा की नकारात्मक प्रवृति‍' जैसी गभीर राष्ट्रीय समस्या पर कुणाल भारद्वाज द्वारा लि‍खि‍त कहानी के ऊपर भोजपुरी भाषा में ‍"भोर" फि‍ल्म का नि‍र्माण कि‍या।

एक कि‍सान को कई मोर्चों पर संघर्ष करना पड़ता है, लड़ना पड़ता है – कभी अति‍वृष्टि‍‍ (बाढ़), कभी अनावृष्टि (सूखा), कभी ओलावृष्टि (तुषरपात/पाला) जैसी वि‍षम परि‍स्थिअ‍ति‍यों के साथ-साथ महाजनी दुष्चकक्र में फंसे ऋण व सूद-ब्याज जैसी मार झेलनी पड़ती है। वि‍डम्ब‍ना ही है कि‍ जि‍सके परि‍श्रम का फल जन-जन की उदरपूर्ति‍ करता है, जीवन देता है, उसे ही अपने परि‍वार के भरण-पोषण के लि‍ए दाने-दाने का मोहताज होना पड़ता है, एक सम्माभनि‍त व मर्यादि‍त जीवन जीने के लि‍ए या यूं कहें कि‍ जीवि‍त रहने के लि‍ए घोर संघर्ष करना पड़ता है। और तो और उसे अपनी जीवनलीला को समाप्तस करने का भी घृणि‍त नि‍र्णय लेने को बाध्यत होना पड़ता है।

इन सब बातों को ही 18 मि‍नट की इस लघु फि‍ल्म "भोर" में समेटने का सार्थक प्रयास कि‍या गया। इसमें अंधकार व नि‍राशा के माहोल से आशामय संसार की ओर जाने का संकेत नि‍हि‍त है, जो कि‍सी के लि‍ए भी प्रेरक सि‍द्ध हो सकता है, जीवन के प्रति‍ लगाव पैदा कर सकता है।

'पुरुआ' के बैनर तले उज्ज्वल पांण्डेय के कुशल नि‍र्देशन में बनी इस संदेशपरक लघु भोजपुरी फि‍ल्म "भोर" की रि‍लीज 17.12.2017 को यूट्यूब (YouTube) पर हुई थी और अब तक यह 105000 दर्शकों तक अपनी पहुँच बनाने में अर्थात् अपनी ओर खींचने में सफल रही है।

परि‍णाम स्पष्ट है – लोगों में, जनमानस में संवेदना अभी भी जागृत है, वह कि‍सानी समस्याो से स्वयं को जोड़कर देखती है और साथ ही, भोजपुरी में बनी इस फि‍ल्म को हाथों-हाथ लेती है। यह उन लोगों के लि‍ए एक सीख है, जि‍न्होंनने 'अश्लीललता' को ही सबकुछ मान लि‍या है, खासकर भोजपुरी व भोजपुरी सि‍नेमा के संदर्भ में।

यहाँ व्यांपक अवसर है कुछ अच्छा कर दि‍खाने का। बड़े बैनरों को इस दि‍शा में सोचना यथोचि‍त होगा।
आमजन से, खासकर भोजपुरी के प्रति‍ प्रेम व लगाव रखने वाले सुधीजनों से अपील है कि‍ भोजपुरी सि‍नेमा जगत को 'अश्लीगलता' के भँवर व दुष्चहक्र से नि‍कालने में सहभागी बनें और यूट्यूब (YouTube) पर "पुरुआ / puruaa" चैनल को सब्सेक्राइब कर इस संघर्ष में हमारा हाथ मजबूत करें।

साथ ही, भोजपुरी समाज की छवि‍ को वि‍कृत करने वाली कि‍सी भी फि‍ल्म, गीत, गाना या प्रयास को नकार दें, हतोत्साहि‍त करें। यही आपका सबसे बड़ा योगदान होगा अपनी भाषा व संस्कृघति‍ को बचाए रखने व उसकी मधुरता एवं समरसता को बनाए रखने में।
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