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भोजपुरी कहानिया

तकिया : रिवेश प्रताप सिंह

तकिया  : रिवेश प्रताप सिंह
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लोग कहते हैं कि व्यक्ति को सिर उठाकर जीना चाहिए। अजी! मैं तो कहता हूँ सिर उठाकर जीना ही क्यों ! सिर उठाकर सोना भी चाहिए। जी हाँ! 'तकिया' लगातार सोना चाहिए। दरअसल 'तकिया अविष्कार' के पीछे जो मूल उद्देश्य छिपा है वो वही है कि आदमी सुबह से लेकर रात तक आत्मसम्मान के लिये सिर उठाकर जीये और रात को तकिया लगाकर सम्मान से सोये।
वैसे तकिया लगाकर सोना या न सोना एक व्यक्तिगत विषय है लेकिन यह बात भी उतनी ही सार्वजनिक है कि ताकिया बिस्तर का मुकुट है... बिना तकिये का बिस्तर ऐसा ही है जैसे बिना कलगी का मुर्गा, बिना सुपारी का पान। तकिया बिस्तर का सहबाला है। एक ही रंग और डिजाइन लिये.. सिंगल बेड पर तिलक की तरह और डबल बेड पर दो आंखों जैसा..

अब कोई मुझे आकर यह बताये कि सबसे पहली 'तकिया' मिश्र में लगाई गई या चीन से ह्वेनसांग अपनी बार तकिया भी अपने साथ लेकर भारत आये तो मैं ऐसी बात से कतई इत्तेफाक नहीं रखता क्योंकि किसी शिशु के लिये उसकी प्रथम तकिया उसके माँ का बांह है जो एक मां अपने बच्चे के लिये पूरी रात लगाती है....संभवतः वही मां का एक गुदगुदा आलंब व्यक्ति की जरूरत के रूप में तकिया बनकर आई। तकिये के विकल्प के रुप में किस राहगीर ने पेड़ के नीचे सोते वक्त उसकी जड़ों को तकिया के रूप में प्रयोग किया या कौन किसी के जंघे को अपना तकिया बनाया इसका हिसाब तो कठिन है लेकिन वर्तमान समय में तकिया का क्या स्थान और सम्मान है उस पर चर्चा आवश्यक है।

तकिया केवल बिस्तर का श्रृंगार नहीं बल्कि व्यक्ति की हैसियत को भी प्रमाणित करने वाली भी वस्तु है.. जैसे तख्त बिछने के बाद उसके सिरहाने का निर्धारण, तकिया के स्थान से होता है। कोई व्यक्ति उसी को सिरहाना मानता है जिधर तकिया ने स्थान ग्रहण किया हो.. भले तख्त के दूसरी ओर सोने की कील ठुकी हो.. कोई कनिष्ठ व्यक्ति जब अपने वरिष्ठ की प्रतीक्षा कर रहा हो तो वह तकिये के विपरीत बैठकर अपने वरिष्ठ को यह सम्मान देता है कि देखिए! मैं आपके सम्मान में तकिये से पांच फीट दूर बैठा हूँ। जब कोई रिश्तेदार बैठे-बैठे लेटने की मुद्रा लेते हैं तो दौड़कर उनके सिरहाने तकिया पहुंचायी जाती है। पंचायत में मुखिया जब करवट लेकर हुक्का गुड़गुड़ाता है तो उसके पार्श्व पसलियाँ के नीचे जो आलम्ब होता है वो तकिया ही होता है। जब दो प्रेमी युगल आपने सामने लेटकर अपने सीने के नीचे तकिया दबाकर प्रेमालाप करते हैं तो शरीर जो मछली के आकार का धनुष बनाता है उसमें सबसे बड़ा योगदान तकिया जी का ही है.... इसलिए तो किसी के आने की आहट पर तकिया को यथास्थान पर रखा जाता है कि कहीं दो तकिये की निकटता अगले से चुगली न कर दे।

तकिये का स्वास्थ्य, कदकाठी, वजन, मुलायमियत सब परिवार, खानदान एवं व्यक्ति की हैसियत पर निर्भर करता है। पहले के जमाने में पहुंना या विशिष्ट रिश्तेदारों के लिये बड़के बक्से से तकिया निकाली जाती थी और पहुंना जब यह देखकर आश्वस्त हो जाते कि मेरी वाली तकिया पूरे खानदान की तकिया से हसीन और जवान है तब जाकर सोते थे पहुंना। नवविवाहिता के कमरे की तकिया और बुढ़िया आजी तक के तकिये के वज़न और सौन्दर्य में एक बड़ा अन्तर होता है.. नवविवाहिता का तकिया बहुत मुलायम और उछाल मारने वाला होता है लेकिन आजी का तकिया एक पाव तेल सोखकर 'पथरतकिया' की शक्ल ले लेता है।

पहले के समय जब लोग खटिया पर सोते थे तो सुबह उठते वक्त वे बिस्तर को मोड़ते और उसी में अपनी व्यक्तिगत तकिया भी मोड़कर छिपा देते थे। तकिया गायब होने की दशा में लोग टार्च जलाकर सबके सिर के नीचे अपनी तकिया चेक करते और शिनाख्त होने पर झपटकर अपने कब्ज़े में कर लेते। कितनी देवरानी आधी रात को अपनी जेठानी के सिर से अपनी तकिया खींचकर ही चैन की नींद सोतीं। बहुतों के सिर के नीचे से तकिया चली गई यह लोग सुबह जान पाये।

यह सच है कि कुवारों के लिये तकिया...केवल एक तकिया ही नहीं बल्कि एक आभासी पत्नियों का भी रूप धर लेतीं हैं। पूरी रात सिर से हटकर पूरे बिस्तर पर दौड़-दौड़ उन्हें उनके एकान्त से लड़ने की जो शक्ति तकिया ने दिया उसे विवाहोपरान्त भी चुकाया नहीं जा सकता। यदि तकिये के जिस्म पर कुंवारों के नाखून दर्ज होते तो न जाने कितने कुवांरे आज तकिये के शारीरिक उत्पीड़न में सलाखों पीछे होते। भले आज दहेज में नई तकिया मिलने पर कुंवारे पुरानी तकिया से बड़ी बेवफ़ाई से पेश आयें लेकिन तकिया जो कर गई वह न तो बताया जा सकता है न लिखा ।
ऐसा भी नहीं कि विवाहितों के लिये तकिया केवल सिरहाने की चीज़ है... सुबह के वक्त जब पत्नियां अपने पति को बिस्तर पर अकेला छोड़कर रसोई में चली जातीं हैं और एक घंटे बाद जब चाय लेकर आतीं हैं तो वही तकिया उनकी सौत बनकर चिढ़ाती है। पति महोदय तकिया सीने से हटाकर यह प्रेम संदेश पत्नी को देते हैं कि मैं तुम्हारे बिना एक घंटे भी नहीं रह सकता।

फिल्मों में जब प्रेम और भावनाएं...उत्तेजना की दहलीज लांघने को व्याकुल रहतीं हैं तो अभिनेत्री द्वारा मद्धिम प्रकाश में तकिया फाड़कर उसकी रुई उड़ाना उसकी भावनाओं की उत्श्रृंखल अभिव्यक्ति को दर्शाती है और यह बताती है कि यदि मैं बिखर गई तो मुझे सम्हालना और बटोरना उतना ही कठिन है जितना इस रुई को बटोरकर फिर तकिया बनाना।

आज वक्त ने करवट बदली तो बहुतों को डाक्टर साहब ने तकिया लगाने को मना कर दिया। वो कहते हैं जब तुमको दिनभर मुंडी झुकाकर मोबाइल चलाना है..तुमको सिर उठाकर जीने से मतलब ही नहीं तो मैं तुम्हें सिर उठाकर सोने भी नहीं दूंगा।

इसलिए सिर उठाकर जीयें...तकिया लगाकर सोयें..😀

रिवेश प्रताप सिंह
गोरखपुर
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