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भोजपुरी कहानिया

शास्त्रार्थ (खिस्सा)

शास्त्रार्थ (खिस्सा)
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लाखों सेकेंड पूर्व की बात है, एक गाँव के चर्च में एक पादड़ी रहता था। पादड़ी को धर्म परिवर्तन कराने के लिए विदेश से बहुत पैसा मिलता था, सो वह खूब धर्म परिवर्तन कराता भी था। गांव के गरीब लोगों को जब कोई बड़ी बीमारी होती तो पदड़िया अपने पैसे से इलाज करवाता, और बदले में उसके घर भर को ईसाई बनाता। गाँव के लोग तो मन ही मन सोचते कि "इसका यीशु तो गाँव के सेठ करोड़ीमल से भी बड़ा सूदखोर है, सेठ तो पैसे पर सिर्फ ब्याज लेता है, यह ससुर तो धर्म ले लेता है", पर गरीबी जो न कराये। बेचारे गरीब लोग न चाहते हुए भी पदड़िया के जाल में फंस जाते।
धीरे धीरे गांव में किरस्तानो की संख्या बढ़ने लगी। गांव में किरस्तानो की संख्या जैसे जैसे बढ़ती, पदड़िया की हिम्मत भी बढ़ती जाती थी। अब पदड़िया ससुर खुलेआम हिंदुओं को ललकारने और हिन्दू धर्म को मूर्खता बताने लगा था।
गांव के कुछ पंडितों ने उससे बहस करने का प्रयास भी किया, पर शातिर पादड़ी उन्हें उल्टे सीधे सवालों में फंसा के हर बार हरा देता था।
असल में पंडित लोग थे सीधे साधे गाय की तरह, दिन भर यजमानों से मांग कर पेट पालने वाले लोग, और पादड़ी था घाघ। बिदेशी पैसे से तरमाल उड़ाने वाला। और अब तो उसने चर्च में चार चार ननों को भी बहाल कर लिया था। बेचारे पंडित उसकी हवा से ही उड़ जाते थे।
उसी गांव में अरविंद सिंह नाम का एक खचंड़ेल छोकड़ा रहता था। यूँ तो वह छत्तीसगढ़ में काम करता था, पर हमेशा गांव आता जाता रहता था। अरविंद इतना दुष्ट था, कि जब गांव आ जाता तो गांव के लोग तबाह हो जाते। गांव में एक भी लड़का ऐसा नहीं था जिसका अरविंद ने बियाह न काटा हो। बलिया वाले साहित्यकार का उसी के आतंक के कारण विवाह नहीं हो रहा था। पंकज मिसीर मास्टर साहेब का तो जब बियाह तय होता, तो दुष्ट जा के लड़की वालों सर कह आता कि "लड़कवा का तो लाइनर-पिस्टन ही ठीक नहीं है, दिन भर मोबिल छिरिकता रहता है"। बेचारे का लगा हुआ वियाह भी टें बोल जाता। गोरखपुर वाले एक बुजुर्ग साहित्यकार का तो "गवना" तक काट आया था कमबख्त। गांव के विवाहित लड़के उसके आतंक से थर थर कांपते थे, हरामखोर उनकी पत्नियों से जाने क्या झूठ बोलता कि बेचारे रोज पिट जाते। डॉ शुक्ला को उसी दुष्ट की हरकतों के कारण कमरदर्द पकड़ लिया था, और सर्वेश मास्टरसाहेब का तो...
जाने कितने ही युवक उसके आतंक के कारण दुब्बई और मस्कट में जा कर बस गए थे, वे साल में एक बार बस फोटो खींचने-खिंचवाने आते थे।
कुल मिला कर कमबख्त पक्का लंठ था।
गांव के पंडित जब पादड़ी से हार गए तो उन्होंने आपस मे विचार किया, और अरविंद सिंह को पकड़ कर कहा- देखो बेटा, सनातन धर्म मे भूत प्रेत का भी सम्मान होता है। हर यज्ञ में ईश्वर से पहले "बिकरों" की पूजा होती है। तुम यूँ तो इस गांव के लिए प्रेत से कम नहीं हो, पर आज हम सब की इज्जत तुम्हीं बचा सकते हो। इस पादड़ी को तनिक सबक सिखा दो बेटा...
अरविंद से पहली बार गाँव के लोगों ने इतने प्रेम से बात की थी, वह जोश में आ गया। उसने गाँव के लोगों के सामने कसम उठाई कि इस पादड़ी का तेल न निकाल दिया तो मेरा नाम अरविंद से बदल कर आलोक कर देना। गांव के हिन्दू बड़े खुश हुए। वे जानते थे कि यह दुष्ट अगर अपनी पर आ गया तो पादड़ी क्या, यीशु का तेल निकाल देगा।
अगले दिन सुबह सुबह ही अरबिंद पादड़ी के पास पहुँच गया। पादड़ी ने अभी अभी चार पेग देशी महुआ चढ़ाया था। एक नन उसके लिए गांजा मसल रही थी, और दूसरी चिलम सुलगा रही थी।
अरविंद ने जाते ही पादड़ी को छेड़ा- लाल सलाम कामरेड।
पादड़ी ने मुह बना पूछा- क्या है जी? क्यों आये हो?
अरविंद ने छेड़ते हुए कहा- तुम्हें हिन्दू बनाने आया हूँ, बनोगे?
पादड़ी ने कहा- अरे हट! मैं क्यों हिन्दू बनूँ? पत्थर पूजने वाले हिन्दू तो मूर्ख हैं, भला पत्थर में कहीं ईश्वर होता है?
अरविंद ने मुस्कुरा कर कहा- तो पादड़ी चचा, यह जो लाश की मूर्ति टांगे फिरते हो, वो तुम्हारे बाबूजी के ससुर की है क्या?
पादड़ी पिनक उठा। उसने चिढ़ कर कहा- अरे तुम क्या बात करोगे। मूर्ख हिन्दू कहते हैं कि पूजा से स्वर्ग मिलेगा। पूजा से कहीं स्वर्ग मिलता है? तुम लोगों को तो पंडित ठगते फिरते हैं।
अरबिंद ने चवन्निया मुस्की छोड़ कर कहा- तो पादड़ी काका, वो जो चर्चों में पहले स्वर्ग में जाने के लिए एक-एक लाख में मुक्ति पत्र की रसीद बिकती थी, वो क्या तुम्हारे पिताजी के श्राद्ध के लिए चंदा लिया जाता था?
पादड़ी तो कूद पड़ा। बोला- अरे चुप कर दुष्ट! तुम्हारे संत तो भ्रष्ट हैं। देखते नहीं आजकल आसाराम की लीलाएं।
अरबिंद की मुस्कुराहट बढ़ गयी। बोला- तो यहाँ ये जो चार ननें दिख रही हैं, वो क्या तुम्हारे अब्बू की सालियाँ हैं? तुम जो करते हो वह कौन सी लीला है डार्लिंग?
पदड़िया चिल्ला उठा- अरे तुमलोग तो क्रूर हो। तुम्हारे देवताओं ने लोगों पर अत्याचार किया है।
अबकी अरबिंद भी चिल्लाया- अरे काका, तो वो जो गोवा के चर्चों में मशीन से स्त्रियों के स्तनों को नोचा जाता था, पोप जो लोगों को यीशु को न मानने के कारण फांसी दिलवाता था, उसी को तुम्हारे यहां अहिंसा कहते हैं क्या?
पादड़ी गरजने लगा- अरे मान जा रे मूर्ख! इस दुनिया मे विज्ञान ईसाइयों की ही देन है। हमनें ही विज्ञान को आगे बढ़ाया है।
अरविंद की मुस्कान लौट आयी- बोले, तो चचा! वो जो "पृथ्वी सूर्य का चक्कर लगाती है" कहने के कारण गैलीलियो को जहर दिया गया, वह जहर क्या मोतीझील वाले बाबा ने दिलवाया था?
पादड़ी और जोर से चिल्लाया- अरे मूर्ख, तुम्हारे यहां तो अंधविश्वास का ही बोलबाला है।
अरविंद ने छेड़ा- तो काका, तुम्हारे प्रचारक जो यीशु की शरण मे आ जाने से ही केंसर और एड्स के ठीक होने के दावे करते हैं, वही विज्ञान है क्या?
पादड़ी अब हारने लगा था। उसने तनिक धीमे स्वर में कहा- अबे तेरे यहां तो इतना जातिवाद है कि कुछ लोग दूसरों का छुआ खाना तक नहीं खाते?शादी के लिए भी जाति देखी जाती है तुम्हारे यहां तो।
अरबिंद ने छेड़ा- तो काका, तुम्हारे यहां क्या गोरे अंग्रेज तुम्हारे जैसों के घर बेटियां ब्याहते हैं? अच्छा तनिक बताओ तो, आज तक कोई सांवला व्यक्ति पोप क्यों नहीं बना, हर बार गोरे ही क्यों बनते हैं? अच्छा चलो, मैं ईसाई बन जाता हूँ। क्या तुम किसी अंग्रेज की बेटी से मेरा ब्याह करा दोगे?
पादड़ी अब इस चर्चा से ऊब गया था। मेहरा कर बोला- अरे छोड़ो भी। हिंदुओं में तो सैकड़ों देवता हैं। भला एक आदमी किसको किसको पूजे?
अरबिंद ने चिढ़ाया- अरे घोंचू। तेरे यहां यीशु के अलावा कोई दूसरा आध्यात्मिक व्यक्ति जन्मा ही नहीं, तो तुम जानोगे क्या? यहां तो हर गांव में तुम्हारे यीशु से बड़े संत हो चुके हैं। हम ईश्वर को हजारों रूपों में देखते हैं तो यह हमारी दृष्टि की ब्यापकता हुई न। हम तुम्हारी तरह कुएं के मेढ़क थोड़ी हैं।
पादड़ी क्रोध से काँपने लगा। बोला- अरे यीशु से डर नीच, वे दुनिया के कल्याण के लिए ही आये थे। उनसे बड़ा संत कोई नहीं।
अरविंद खिलखिला उठे। बोले- तुमने अभी मोतीझील वाले बाबा को नहीं देखा गधे, उनसे बड़ा संत तेरे यूरोप में कोई नहीं।
पादड़ी अब पूरी तरह से हार चुका था। उसने हाथ जोड़ कर कहा- अबे तू चाहता क्या है मेरे बाप?
अरबिंद बोले- हां, अब आये न औकात में। मैं बस यह चाहता हूं कि तू आज से हिन्दू धर्म के बारे में कोई बकवास नहीं करेगा।
पादड़ी ने दसों नोह् जोड़ कर कहा- अरे जा मेरे बाप, आज से हिंदुओं के बारे में सोचूंगा भी नहीं।
अरबिंद मुस्कुराते हुए चर्च से निकला तो देखा- सैकड़ों लोग दीवाल में सट कर उसका शास्त्रार्थ सुन रहे थे। अरबिंद के निकलते ही लोगों ने उसे कंधे पर उठा लिया, और नारा लगाने लगे-
गली गली में हल्ला है, पदड़िया ससुरा नल्ला है।

उहे..
बाबा फ्रॉम मोतीझील।
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