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भोजपुरी कहानिया

"हूक कथा"

हूक कथा
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दोपहर का समय है, दिसम्बर का महीना और दिल्ली की शीतलहरी। बाबा डोम कानवी इस भीषण शीत में भी धह-धह जल रहे हैं। क्रोध की आग से उनका सम्पूर्ण शरीर इस तरह लाल हो गया है, कि उनकी पत्नी उनको घण्टे भर में साढ़े तीन बार लाल सलाम कर चुकी हैं। बाबा हर बार कोंकीया के रह जाते हैं। व्यक्ति दक्षिणपंथी हो, वामपंथी हो या राहुलपंथी, पत्नी से मार खाने के बाद कोंय कोंय करते समय एक जैसा ही लगता है। सच पूछिए तो साम्यवाद का मूल सूत्र भारतीय पत्नियों के बेलन में ही है।
बाबा उम्मीद से थे कि गुजरात मे उनकी सरकार आएगी, तो उनको भी सरकारी इनाम-तोहफा वगैरह मिल जाएंगे। मतगणना के दिन प्रारंभिक चरणों मे जब बाबा की पार्टी आगे थी तो बाबा ने झट से मोदी को लथेड़ने वाली पोस्ट फेसबुक पर लिख दी। बाबा के चेले पोस्ट पर पुष्पवर्षा भी करने लगे। पर कुछ ही पल बाद जब पता चला कि भैंस तो पाड़ा बिया गयी, तब बाबा का मुह ऐसे सूख गया जैसे किडनी फेल हो जाने पर व्यक्ति का सूसू सूख जाता है। उसपर तबाही यह कि हरामखोर दक्षिणपंथी लड़के पोस्ट पर आ कर परनाम करने लगे। बाबा कानवी तो समझ रहे थे कि हरामखोर प्रणाम नहीं कर रहे, चिढ़ा रहे हैं। शेर का बच्चा यदि बकरी को "आई लभ यू" कहे तो बकरी समझ जाती है कि दुष्ट का प्यार क्यों जग रहा है। कानवी बाबा भी खूब समझ रहे थे कि हरामखोर किस तरह का प्रणाम कर रहे हैं, पर क्या करते। कोई खुसड बूढ़ा किसी तरुणी से प्रेम निवेदन करते पकड़ा जाय तो छोकड़ों के ताने सुनने ही पड़ते हैं। बाबा कानवी भी लगातार ताने सुन रहे थे।
बाबा दो दिन से बिलबिलाए हुए थे। ऐसा लगता था जैसे किसी दुष्ट लड़के ने पूँछ में छुरछुरी बांध कर आग लगा दी हो। बार बार मोदी को गरियाने वाली पोस्ट लिखते, जीत को हार और हार को जीत बताने के लिए सैकड़ों चवन्निया तर्क गढ़ते, कभी फेसबुक से ट्विटर पर कूदते तो कभी ट्विटर से वाट्सअप पर छलांग लगाते। इसी बेचैनी में कभी कभी जोर से चिल्ला उठते थे- लाल सलाम। उनकी कर्कश ध्वनि सुन कर पत्नी आती और दो चार गालियों के साथ लाल सलाम कर जाती। कुल मिला कर उनकी दशा एक रक्तवर्णी गुदीय मर्कट की हो गयी थी।
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बाबा अपनी खजुअटीय बेचैनी में ही इधर उधर टहल रहे थे कि मोबाइल पर रिंगटोन बजी- "तड़प तड़प के इस दिल से आह निकलती रही"। बाबा ने नम्बर देखा तो पाया- फोन बाबा चुमण्डल ने किया था। यूँ तो डोम कानवी बाबा चुमण्डल से फोन पर घण्टों इश्क-मोहब्बत की बातें और फ्लाइंग किस का आदान-प्रदान किया करते थे, पर आज जाने क्यों उनका नम्बर देखते ही भड़क गए। पिनक कर बोले- क्यों बे झूठे, खुश तो बहुत होगा आज!
बाबा चुमण्डल भौंचक हो कर बोले- क्या हुआ डोम भाई, काहें पिनक रहे हैं? आपका भकन्दर तेज हो गया है क्या?
कानवी बोले- अबे चुप। तेरे कहने पर मैंने बसन्त की उम्मीद में पीला पैजामा सिलवा लिया, और यहां तो कार्तिक के बाद सीधे भादो आ गया बे। अब इस पैजामे का क्या करूँ बे, हरामखोर दक्षिणपंथी लौंडे चिढ़ा रहे हैं कि चचा का पेट खराब है इसीलिए पीला पैजामा सिलवाये हैं। अब क्या जवाब दूँ बे? तू तो कह रहा था कि मोदी बुरी तरह हारेगा, फिर यह जीत कैसे गया?
बाबा चुमण्डल का ईसाई खून भी गर्म हो गया था। वे छनक कर बोले- तो हम क्या करें बे? अबे मैंने क्या कम मेहनत की थी? अपने बाप से ज्यादा मोदी का नाम ले कर गाली दी, सुबह उठ कर यीशु से पहले मोदी का नाम लिया और गाली दी। यहां तक कि आर्च विशप से कांग्रेस के पक्ष में अपील तक करवा दिया, अब क्या अपना खानदानी काम शुरू कर दूं? मैंने तो चर्च में मन्नत भी मांगी थी कि यदि गुजरात मे भाजपा हार गई तो देश के सभी चर्चों में नंगे हो कर मुजरा करूँगा। अब यह गधा मणिशंकर अय्यर लुटिया डुबो गया तो इसमें मेरा क्या दोष? और सुन ले डोम कानवी, मेरा असली लक्ष्य दलितों को भरमा कर उन्हें इसाई बनाना है, भाजपा कांग्रेस से मेरा ज्यादा लेना देना नहीं है। और तनिक बता तो, तूने ही अबतक क्या किया?
डोम कानवी चिंचिया कर बोले- अबे मैंने क्या नहीं किया! मोदी का विरोध करने के लिए मैंने बुढ़ापे में खुले में शौच की आदत डाल ली।इस चक्कर मे कई बार कुत्तों से कटवा चुका। सुबह से ले कर शाम तक मोदी निंदा में ही रत्त रह कर दिन भर गालियां सुनता हूँ। अब और क्या क्या करूँ?
बाबा चुमण्डल हँस पड़े। बोले- अबे घोंचू, अबे खुले में शौच करने से मोदी हारेगा? अरे वह किस्मत ही ऐसी ले कर आया है, कि हम लाख सर पटक लें पर उसका कुछ नहीं बिगड़ने वाला।
डोम कानवी भी अब तक नरम पड़ चुके थे। बोले- हां यार! यह कमबख्त तो लगातार जीतता ही चला जा रहा है। मुझे तो चिंता हो रही है कि यदि कांग्रेस इसी तरह हारती रही तो मेरा क्या होगा, मैं फ्री के पैसों से देश विदेश की सैर कैसे करूँगा।
बाबा चुमण्डल मुस्कुराए, और दाव फेंका- एक काम करो, तुम ईसाई बन जाओ। इतने पैसे दिलवा दूंगा कि जीवन भर ऐश करोगे।
डोम कानवी ने झिड़का- अबे हट! तेरा यह टँगी हुई लाश पूजने वाला धर्म तुझे ही मुबारक, मुझे बुढ़ापे में अपनी भद्द नहीं पिटवानी।
बाबा चुमण्डल ने झिड़का- फिर तो रोओ ससुर! मेरा क्या, मैं तो मजे में हूँ। मैंने तो सोचा था कि फोन कर के तुम्हे एक बार "आई लभ यू" कह दूं, पर तुम तो दूसरी ही आग में जल रहे हो। रखो फोन।
एक मिनट तक चुप्पी रही, अचानक दोनों तरफ से एक सुर में करुण रुदन प्रारम्भ हुआ- आs माई रेssss, आs लाs लाs बोsss
तभी डोम कानवी ने देखा- पत्नी बेलन ले कर लाल सलाम करने आ रही हैं, वे सट से सटक गए।

सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार।
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