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भोजपुरी कहानिया

"शंकर कोच"

शंकर कोच
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"बाबा आज इ शंकर कोच के का खिस्सा ह?" मिंटुआ फतिंगन बाबा से पूछलस।
"आजू तहके शंकर कोच कहाँ से इयाद पड़ गईल ह" बाबा कहनी।
"अक्सरहा लोग के मुह से हमनी के जिक्र सुनेनी जा शंकर कोच के।" चिंटुआ कहलस "हरमेशा सोचेनी जा कि रौवा से पूछल जाई लेकिन भुला जाला। रउवा बताई ना इ का खिस्सा ह।"
"बाबू शंकर कोच कहानी ह पीढ़ा रख के उच होखे वाला। अपना हैसियत के भुला के सपना देखे के।" बाबा कहनी।
"बाबा पूरा बताई ना। रउवा त अउरी पहेली बनावे लगनी।" सब लईका कहल सन।
बाबा के मालूम रहे कि बात घुमावला से काम ना होई। पूरा कहानी बतावे के ही पड़ी।
"ढेर दिन पुरान बात ह। समझ ल लोग कि जवना घरी गाव जवार में एकाध को गाडी घोडा रहे। तबके बात ह। ओ घरी अपना जवार के सबसे बड़का आदमी रहले वीरेंदर पाण्डेय जेकि संयोग वश अपनी गांव के ही रहले। रेलवे से क्लर्क के पद से रिटायर होक गावे आयिल रहले अउरी दुआर पर ट्रेक्टर से लेके, बुलेट अउरी जीप खड़ा रहे। गांव के लोग से अगर उ दू शब्द बात क लेस त गांव के लोग अपना के धन्य बुझे। उनका दुआर पर बड़का बड़का लोग के हाजिरी लागे। वईसे भी कहावत ह की जहाँ लक्ष्मी के वास होला ओईजा बाकी देवता अईसे ही सर झुकावेला लोग। तह लोग के अचरज होइ कि भला रेलवे के नौकरी से अतना धन सम्पदा कहाँ से आईल होपी। दरअसल बात इ रहे कि उनकर लईका मर्चेंट नेवी में कैप्टेन हो गईल रहले अउरी ओकरा बाद से ही लक्ष्मी उनका घर में निवास बना लेले रहली। समाज में बड़ बड़ुआ के देख के हर केहु के इच्छा होला कि उहो ओकरा नियर ही बने। बात बात पर लोग वीरेंदर पाण्डेय के परतर देऊ अउरी ओहींगा बने चाहे। गुण से ज्यादा लोग उनकर आर्थिक हैसियत के बराबरी करे के सोचे ।
अपने गांव के रहले शंकर भर। उहो रेलवे में नौकरी करस अउरी हमेशा आपन तुलना वीरेंदर तिवारी से करस। हरमेशा दावा करस कि उ एक दिन उनसे भी बड़ बनके देखइहे।
"बाबा गोड़ लागेनी " एक दिन सबेरे सबेरे उ हमरा लगे आके कहले।
"काहो कब ऑइल ह " हम पूछनी।
काल्हिये अयिनी ह बाबा " उ कहले "आई रउवा के कुछ देखावे के बा "
हम कौतुहल से उनका पीछे चल देहनी। आश्रम के बाहर नया जीप लागल रहे।
"वीरेंदर बाबा के जीप ह का हो ?"
"ना बाबा " शंकर विहसत कहले "इ हमार जीप ह। उनकर जीप से भी महंगा वाला इ जीप बा। देखनी नु हम आज उनसे उच हो गईनी । ऐ गांव में खाली दू आदमी जीप पर चढ़ल - एगो वीरेंदर पाण्डेय अउरी दूसर शंकर भर। "
"पर तहरा लगे अतना पईसा कहाँ से आयिल ह हो ?" हम सोच के पूछनी काहे कि हमके मालूम रहे कि रेलवे में एगो चपरासी के अतना तनखाह त ना होला कि उ जीप खरीद सके।
"बाबा हम रिटायरमेंट ले लेनी ह अउरी ओहि पईसा से जीप लेनी ह। "
"पर अभी त तहके दूदू लईकी के बियाह करे के बा। लईका तहार छोट बा। ओके पढ़ावे के बा। तहार खुद के जिंदगी अबे बाकी बा। पईसा भविष्य खातिर रखे चाहत रहल ह। " हम सलाह देत कहनी।
"चिंता के बात नईखे बाबा। सब हो जाई। हमार बस एक ही सपना रहल ह। वीरेंदर पाण्डेय के नीचे कईल । उ हम आज क लेहनी। "
"बाबू पीढ़ा रखके खड़ा भईले आदमी उच ना होला। उच आदमी अपना करम अउरी रहन से होला। आज तू जवन वीरेंदर पाण्डेय के धन देखतार उ उनका लईका के बदौलत बा। आज ऐ पोस्ट पर पहुंचे खातिर उ कड़ा मेहनत कईले बाड़े।"
"बाबा हमरा इ कुल ना बुझाला। हम त बस इ जानतानी कि आज के समय में हम उनका से बड़ गाड़ी में चलतानी।"
हम समझ गईनी कि शंकर के घमंड हो गईल बा अउरी उनसे आगे कुछ कहला के मतलब नईखे। मुर्ख आदमी के लगे पईसा आवेला त घमंड सबसे पहिले पहुचेला ओकरी किहाँ। वईसे भी ई उनकर आपन जिंदगी रहे। उ चाहे जवन करस। कुछ देर में शंकर चल गईले।
धीरे धीरे पूरा गांव खबर फइल गईल अउरी शंकर के जीप देखे खातिर लोग के लाइन लाग गईल। एक मुहे सब केहु बड़ाई करत रहे त दूसरा मुहे शंकर के भागी पर अचरज। बात भी त सहिये रहे। जवना वीरेंदर पाण्डेय के केहु जिला जवार में बराबरी करेवाला ना रहे, शंकर ओकरा से एक हाथ ऊपर होके खड़ा रहले। मने उनहू से महंगा जीप।
अगिला एक महीना ले खाली उनका जीप के ही बढ़ाई अउरी धूम चारो ओऱ। पूरा गांव चानी काटल। शायदे केहु बचल होई जे उनका जीप पर ना चढ़ल होई। लईका कुल के जब मन करे शंकर चाचा से कहि द सं अउरी उनकर जीप तैयार। इहे फर्क रहे वीरेंदर तिवारी शंकर में। एक अउरी जहाँ उ आपन जीप पर केहु गांव वाला के ना चढ़े देस, शंकर के जीप पर लोग के बोला बोला के चढ़ा वल जाउ।
एक महिना बाद कुछ लोग राय दिहल कि काहे ना जीप के सड़क पर भाड़ा खातिर चलावल जाऊ। वईसे भी गाँव जवार के लोग के मैरवा से रामपुर तक बड़ा दिक्कत होखे आवे जावे में, काहे से की एक दुक्का सवारी ही चले उ रास्ता पर। आये जाए के मुख्य साधन धरमेन्दर के एक्का रहे पर उहो नियमित ना रहे। कवनो तय ना रहे कि कब उ दारू पीके कहीं ढीमिला जाऊ।
तनी सा अह जह के बाद शंकर बात मान गईले काहे से अब रिटायर भईला के सारा पईसा ख़तम हो गईल रहे अउरी जवन पेंशन मिले उ घर चलावे खातिर कम पड़त रहे।
फेरु रामसिंगार बाबा से दिन देखा के उन्ही के हाथे नारियल फोड़वा के सोमार के दिने ओकर उद्घाटन हो गईल अउरी ओइदीन से ओ जीप के नाम पडल शंकर कोच। गाँव जवार के सब केहू ओके शंकर कोच कहे। शंकर कोच के खुलले गाँव के लोग के आराम हो गईल। कोच में केतनो भीड़ होखे पर गाँव के लोग खातिर ओयिमे स्थाई जगह रहे अउरी उहो मुफ्त। शंकर अब बड जीप के साथे अपना व्यवहार से भी वीरेंदर पाण्डेय के निचे क देहले। जे देखे उहे शंकर अउरी शंकर कोच के तारीफ। शंकर हमके भी अक्सर आके कहस की रउवा हमरा जीप से ही बाजार जाईल करी। पर हम त पैदल वाला आदमी हई ऐ वजह से उनकर बात के हस के टाल दी। ठीक एक महिना बाद हमार भी नंबर आईल शंकर कोच पर बईठे के।
अगिला दिने कार्तिक पूर्णिमा रहे अउरी सब केहू के नहान खातिर दरौली जाए के रहे। शंकर शाम से ही हमरा लगे आके बईठ गईले अउरी तबे उठले जब हम उनिका गाडी से नहाये जाए के सकरनि।
अगिला दिने सबेरे तीन बजे उठ के रोड पर पहचनी त हल्ला रहे। अन्हार रहे त कुछ लउके ना पर आवाज एकदम साफ़ आवत रहे।
"जोर लगा के हैषा, जय बजरंग बली, तोड़ो दुश्मन के नली।" जईसन जोशीला नारा से पूरा गाँव गूजत रहे। नजदीक पहुचनी त पता चलल कि इ त शंकर कोच रहे जवन कि आज स्टार्ट ही ना होत रहे। ओईसे नहाये जाए वाला लोग, ड्राईवर प्रभुआ अउरी खलासी पनसा के साथे ओके ठेलत रहे। अईसन लागे जईसे इ प्रयास बहुत देर से चलता काहे से कि ओयिसन ठंढी में भी सब केहू पसेनिया गईल रहे। पर अईसे बात ना बनल। फेरु प्रभुआ जीप के अन्दर घुस गईल। पता ना ढेर देर ले का कईलस अउरी फेरु ओकरा बाद बाहर आके कहलस की अगर वीरेंदर बाबा आपन ट्रेक्टर दे देस त ओईसे एके खीच के स्टार्ट क दिहल जाऊ। लोग के उम्मीद ना रहे पर तबो लोग उनका किहाँ गईल अउरी उम्मीद के विपरीत उ आपन ट्रेक्टर दे देहले। अब प्रभुआ अउरी पनसा मिलके ओके खूब दौड़ावल सन पर तबो शंकर कोच नाही स्टार्ट हो गईल। इहे करत करत सुबह के 6 बज गईल अउरी नहाये के शुभ मुहूर्त बीते लागल त राम सिंगार बाबा कहले कि अब ऐहिजा नहाये के पड़ी। फेरु गाँव के सारा लोग गाँव के पोखरा में नहा के कार्तिक स्नान कईल।
फेरु मैरवा से बोलाके मिस्त्री आईल अउरी उ शंकर कोच के चालू कईलस। पर इ अस्थायी रहे। मैरवा से रामपुर के बिच कबो भी बंद भईल शंकर कोच के पहचान बन गईल। सवारी लोग आधा सफ़र पैदल ही तय करे के पड़े। कुछ दिन बाद लोग अब मजाक उड़ावे लागल अउरी कहे की शंकर कोच से गईला ले नीमन त पैदालिया गाड़ी बा।
गाडी के मरम्मत से उनकर आर्थिक स्थिति गडबडाए लागल। शंकर भी हार माने वाला ना रहले। एकदिन भोरे ही बिना केहू के बतवले उ प्रभुआ अउरी पनसा के साथे कोलकत्ता निकल गईले। एक महिना बाद एक दिन चुपके से अयिले अउरी फेरु चल गईले। पर गाँव में बात छुप्पेला ना। जल्दिये लोग के पता चल गईल की उ वीरेंदर पाण्डेय किहाँ आपन एक बीघा जमीं गिरवी रखके पईसा ले गईले गाडी में नया इंजन लगवावे खातिर। एक महिना बाद शंकर कोच नया भेष में फेरु रोड पर आ गईल। पर अब स्थिति बदल गईल रहे। शंकर के ऊपर लाखो के कर्ज रहे अउरी साफ़ साफ़ कहले रहले कि केहू से मरूवत नईख करे के। आदमी परिस्थिति के दास होला। जवन शंकर गाँव के एको आदमी से पहिले पईसा ना लेले रहले अब उ ओ लोग से पईसा लेत रहले कहीं जाए खातिर। हमरा से भी बच के रहस की कहीं हम उनका गाडी से जाए के ना कहि दी हालांकि हमार त पैदालिया गाडी ही जिदाबाद रहे।
दू महिना ले शंकर कोच निक से चलल पर फेरु उहे स्थिति हो गईल। हर हफ्ता उ बिगड़े लागल। दस दिन रोड पर चले अउरी बीस दिन गैरज में बने जाऊ।
पता चलल कि इंजन में उनका साथे धोखा हो गईल रहे अउरी गलत इंजन गाडी में लाग गईल रहे।
समझदार आदमी समय रहते चेत जाला पर मुर्ख ना। हम एकदिन उनके राय देहनी कि का ऐ गाडी के चक्कर में पडल बाड़। एके बेच द अउरी कलकत्ता में ही जाके कवनो नौकरी पकड़ ल। अभी जवान बाड़ पेंशन भी मिलता । बच्चन के अच्छा से पढ़ाव। भाग्य में फेरु गाडी होई त हो जाई। पर उनके हमार बात बुरा लागल।
"बाबा ऐ गाँव के वीरेंदर पाण्डेय के नीचा हमही देखवानी। रउवा चाहतनी की अब हम फेरु से उनके उचा क दी। "उ खिसिया के कहलस।"
आगे कुछ समझावल बेकार रहे। पर कुछ ही दिन में समय ओके समझ देहलस। आर्थिक तंगी के कारन मेहरारू जाके नईहर बईठ गईल अउरी एने वीरेंदर पाण्डेय जमीं पर लिहल पईसा लेबे खातिर दबाब डाले लागले। हार पाछ के शंकर के उ जीप वीरेंदर पाण्डेय के देबे के पडल। रातो रात जीप अउरी एक बीघा जमीं बेच के शंकर कलकत्ता के रास्ता धईले। बड़का बने के नशा उनके कहीं के ना छोड्ले रहे। "
कही के फतिंगन बाबा चुप हो गईनी।
"फेरु शंकर कोच के का भईल बाबा ?" निकेश्वा पूछलस।
"होखे के का रहे। उडती चिरई के हरदी लगावे वाला वीरेंदर पाण्डेय के भी हरदी शंकर कोच के वजह से लाग गईल। लाख मरम्मत के बाद भी ओकर उहे हाल रहे पर समय रहते उ चेत गईले अउरी एक साल के अन्दर उ जीप मुनिरका के बेच देहले। कुछ साल ले उ मुनिरका के दुआर पर खड़ा रहे। "
""फेरु?"
"फेरु उ शंकर कोच सूबेदार तिवारी खरीद लेहले अउरी आज भी उनका लगे बा। "
"पर हमनी के त नईखे लउकल आजले ? " सब लईका पूछल सन।
"अरे जवन उनकर दुआर पर झमडा लागल बा ओही कोच पर त बा। टायर ट्यूब सब सड गईल बा अउरी बाकी चारो ओर बॉस से घेरायिल बा अहिसे ना पता चलेला।" कहि के बाबा चुपा गईनी।
"अउरी शंकर के का भईल ?"
" अब उ कलकत्ता बस गईल बाड़े। गाँव से जाके सिक्यूरिटी गौर्ड बन गईले, फेरु मेहनत क के ओयिजा घर बना लेहले। लईका कुल के भी शादी हो गईल अउरी ओयिजा के हो के रही गईले। एक बार हमके चिठ्ठी भेज ले रहले अउरी हमार बात ना माने खातिर माफ़ी मंगले रहले। पीढ़ा रख के उच बनला के परिणाम उनका मिल गईल रहे।"
"बड़ा बढ़िया सीख देहनी बाबा आजु।" सब लईका कहलसन "दूसरा के देखादेखी आदमी के ना करे के चाही। जेतना चादर होखे ओतना ही पैर फयिलावे के चाही। गाडी घोडा से केहू बड ना बनेला। बड ओकर करम बनावेला।"


धनंजय तिवारी
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