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भोजपुरी कहानिया

चून्नू बाबू................. रिवेश प्रताप सिंह

चून्नू बाबू................. रिवेश प्रताप सिंह
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तिवारी जी दलान को लांघ कर लाठी पटकते गरिआते, बखरी में दाखिल हुए तो सब मेहरारू आपन काम-धाम छोड़कर टप्प से खड़ी हो गयी। कहाईन तो सील-बट्टा छोड़कर भागी। दरअसल पंडित जी क्रोध पर काबू न धर पाये और उनके श्रीमुख से उत्सर्जित एक सौ अस्सी किलोमीटर प्रतिमिनट की दर से बरसती गालियां, चून्नू बाबू को चौकन्ना कर गयीं। चून्नू बाबू सेकेंड के चौथे हिस्से में चादर फेंक कर हिरन के माफिक एक्के टाप में पांच फीट की चहारदिवारी टाप गये। तिवारी जी दौड़े तो जरूर, लेकिन चहारदिवारी की ऊचांई ने तिवारी जी को धोती पहिन कर चढ़ने से मना कर दिया हालांकि एक लाठी चहारदीवारी पर गिराये लेकिन तब तक चून्नू रफ़्तार धर चुके थे। मतलब यह समझें कि तिवारी जी चहारदीवारी के भीतर लाठी चहारदीवारी के सिर पर उनकी गालियाँ चून्नू से भी तेज दौड़ के बराबर गरिया रहीं थीं। लेकिन चून्नू उसको बालू की तरह झाड़ कर अरहर के खेत को खमसते भागे..... इनके चरण पाद की ध्वनि खुले में शौच की पोल खोल दी खेत में निपटान करने वाली महिलाएं उनके नथुनों और मुख से निकलते तीव्र वायु और पैरों की तीव्रतम ध्वनि और आवृत्ति को नीलगाय समझ कर लोटा लेकर भागीं।
उधर तिवारी जी घुसे तो थे क्रोध में लेकिन लौटे तो अपमान भी साथ हो लिया। चून्नू की अम्मा पूछीं अरे का हुआ भिनसहरवैं काहें ऐतना अगियाये हैं।
तिवारी जी झेंपते हुए बोले, अरे एक तो बेहुदवा सुर्ती खा रहा है उपर से हमरो चुनौटी नहीं छोड़ रहा। एक बीड़ा सुर्ती बचाकर रक्खे थे कि सुबह मैदान होने जायेंगें लेकिन अवरवा पहिले निवाला छीन लिया।
पंडिताइन मुंह बना कर बोंली जाईं आप दूनों बाप-पूत एक्के पानी के हैं।

चून्नू का न तो यह पहला अपराध था और न तिवारी जी का पहला आक्रमण, यह दोनों घटनाएँ साप्ताहिक कार्यक्रम का हिस्सा हैं। हालांकि अभी भी चून्नू अन्जान हैं कि बाबूजी किस बात पर तमतमाए हैं लेकिन इतना तो विश्वास है कि कौनो सही बात पर ही लाठी उठी होगी।
चून्नू उन्तीस बरीस के हो गये, हाईस्कूल पास होने के बाद से ही खूब दौड़ और वर्जिश करते थे। पण्डित जी अपने सामने दंड-बैठक मरवाते, चना-गुड़ खिलवाते। रोज दो लीटर दूध फिक्स था अगर घर पर गाय भैंस नहीं लग रही तो उठौना दूध आता।

तिवारी जी को पूरा विश्वास था कि चून्नू बाबू फौज या पुलिस-दरोगा जरूर हो जायेंगे लेकिन चार-छह भर्ती से छटने के बाद चून्नू बाबू आरामतलबी के शिकार होने लगे। सुबह छह बजे तक बिस्तर पर मड़िया मारने लगे। दौड़,पांच किलोमीटर से घटा कर पांच सौ मीटर चौराहे तक कर लिये। दूध से दिमाग हटाकर सटर-सटर चाय पीने लगे। पहिले जंघिया की डोरी खींच कर बांधते तो एक बित्ता नीचे झूलता लेकिन दू बरीस में कमर चक्रवृद्धि ब्याज की दर से ऐसा बढ़ा कि गांठ मारने के बाद बमुश्किल एक इंच बचता है। तिवारी जी के लिये चून्नू की तोंद जैसे सौत बन गयी हो,तोंद देखते ही दू रोटी अपने थाली में छोड़कर हाथ धोकर गरियाते उठ जाते हैं।
पहिले चून्नू बाबू में इतनी कुलत न थी जितनी तोंद निकलने के बाद आयी। गुटखा के लिये दर्जनों बार पिटे फिर उसको छोड़कर सुर्ती मसलने लगे।
सब काम-धाम छोड़कर, परधानी के काम में अड़ंगा, तहसील पर शिकायत करना, घंटो पंचायत करना यह दिनचर्या बन गयी। वैसे ऐसी बातों से तिवारी जी को बहुत गुरेज नहीं था लेकिन पिछले हफ्ते से जो आधी रात को मिसकॉल आने के बाद, लोटा लेकर खेत भागते हैं यह बात तिवारी जी को बहुत सालने लगी। कुछ कह तो सकते नहीं लेकिन मध्य रात्रि के शौच के पीछे के चक्रव्यूह से बहुत व्यथित थे। एक-दो बार पीछा भी किये लेकिन, चून्नू बाबू एक्के मिनट के हेरफेर में ऐसा अरहर में ढूक जाते हैं कि खोजना मुश्किल था।

इसलिए जुगाड़ में लगे हैं कि कोई वरदेखुआ आये और अबकी लगन पीट दें लेकिन चून्नू बाबू के लतेरपन से वरदेखुआ चढ़ते नाहीं और तिवारी जी कोफ्त खाकर रह-रह कर लाठी लेकर ताड़ते और गरिआते रहते।

एक दिन सांझ को तिवारी जी चून्नू को बुलाकर समझाये- बाबू तुम्हारी जो चाल है उस पर बियाह और मेहरारू सपना में ना मिली.... बेटा कछु काम-धाम करो कि हमरे जीयत भर तूमरे कपार मौर धरा जाये नहीं तो हम ना रहेंगे तो मजबूरन सन्यासी होवे के पड़ी बेटा।

कसम से बाबूजी की इ बात उनकी लाठी से भी दमदार निकली,बाबू दूसरे हफ्ते ही बंगलौर पकड़ लिये। महीनों ठोकर खाने के बाद सुनने में आया की कोई बड़ी कम्पनी में सुपरवाइजर हैं बाहर हजार महीना पर, अबकी तनिक मोटा के आये हैं लेकिन पण्डित जी अबकी उनकी तोंद पर गुस्सा नहीं रहे क्योंकि ऐही तोंद पर बंका वाली पार्टी चढ़ी है। मनमाफिक दुल्हन और लेनदेन के साथ बिआह फिटिया लिये तिवारी जी॥
अबकी छुट्टी में तान के सो रहे हैं चून्नू बाबू लेकिन तिवारी जी क्रोध मुक्त अखबार बांच रहे हैं।

मगन हैं कि अन्त भला तो सब भला।

रिवेश प्रताप सिंह
गोरखपुर
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