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भोजपुरी कहानिया

एक कहानी सीधे मोतीझील से......... "देवी"

एक कहानी सीधे मोतीझील से......... देवी
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दिन के डेढ़ बज के पौने तीन मिनट हो रहे हैं पर अबतक आलोक पाण्डेय के मुह में एक बून्द पानी भी नही गया है।सुबह से एक भी अलमारी नही बची जिसमे रखी सभी फाइलों का अंग अंग न छटका दिया हो,पर अभी तक उन्हें वह कागज नही मिला जिसे वे खोज रहे हैं। आज इतने सालों बाद इंटरमीडियट के एडमिट कार्ड की क्या आवश्यक्ता पड़ गयी इसकी भी एक लंबी कहानी है जो किसी और समय सुनियेगा, अभी तो आलोक पाण्डेय ने अलमारी के पुराने कागजों का वही हाल किया है जो सुब्रमण्यम स्वामी भ्रष्ट नेताओं का करते आये हैं।
खोजते खोजते आलोक पाण्डेय की नजर एक पुरानी डायरी पर पड़ती है। डायरी को देख कर अचानक आलोक पाण्डेय के चेहरे पर ठीक वैसी ही मुस्कान फ़ैल गयी जैसी आठ महीने पर तनख्वाह मिलने की आहट पाते हीं बिहार के नियोजित शिक्षकों के चेहरे पर मुस्कान फ़ैल जाती है।
याद आता है आलोक पाण्डेय को, एक जमाने में यह डायरी उनकी जान हुआ करती थी। इस डायरी को वे अपने हृदय से उसी प्रकार चिपका कर रखते जिस प्रकार एक हारा हुआ सांसद अपने हृदय में कुर्सी की याद और चाहत चिपका कर रखता है। बबिता से प्यार के दिनों में आलोक पाण्डेय अपने सारे प्रेम पत्र इसी डायरी में लिखते थे। प्रेमपत्र को प्रेयसी तक पंहुचा पाने की हिम्मत कभी नही हुई, इसलिए कागज पर लिखने से कोई फायदा नही था। पर आलोक पाण्डेय डायरी में ही अपनी भावनावों को उकेर कर अपने दिल को तसल्ली दे लेते थे।
मुस्कुराते हुए डायरी पर जमी धूल झाड़ते हैं आलोक पाण्डेय और जाने किस भावना से प्रेरित हो कर एकाएक चूम लेते हैं। डायरी खोल कर पहला पन्ना देखते हैं, शायद पहला प्रेम पत्र....
मुस्कुराते हुए पढ़ते हैं आलोक पाण्डेय....
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" आदरणीय बबिता जी.... सादर परनाम।
अब हाल क्या बताएं, बस इतना समझिए कि आपके प्रेम में हम आग में पकाये हुए बैगन की तरह झँउसा कर किसी तरह इस उम्मीद में जी रहे हैं कि कभी तो आपको चोखा खाने का मन करेगा। और आपके लिए रोज घंटाहवा पीपर पर दो लोटा जल चढ़ाते हैं कि आपका अद्भुत सौंदर्य बना रहे। अब आपके सौंदर्य का क्या कहें, जबसे आप को देखे हैं तबसे लगता है जैसे आँख में मोतियाबिन हो गया है। जहां जाते हैं आँख के आगे आपका ही चेहरा छाया रहता हैं। उस दिन रामखेलावन बो भौजी बकरी चरा रही थी तो उनके चेहरे में हमको आपका चेहरा दिखने लगा। फिर क्या था, टप से जा कर उनको आई लव यु कहिये तो दिए... अब ई मत पूछियेगा कि उसके बाद क्या हुआ, बस इतना जानिए कि तबसे सरेह की ओर निकलना छोड़ दिए हैं।
और सुनिए, पांच दिन पहले कि बात है हमारे बगइचा के जर्दवा आम पर सबसे ऊपर पहिलका आम पका था, हम सोचे कि उ तोड़ कर आपको गिफ्ट देंगे इसलिए पेड़ पर चढ़ गए। आम तो तोड़ ही लिए थे पर उतरते समय पैर थोडा फिसल गया और हमारा सर निचे और पैर उपर। एक तो अपने अंग अंग में पीर भर गयी थी ऊपर से घर आने पर बाबू जी बीस पचीस सटका बेंवत दिए। ऊपर से दंड मिला कि घर में घुसना नही है।
अब आप हमारी पीड़ा क्या समझियेगा ए बबिता जी, पर यह आपका प्रेम ही है कि चार दिन से भुसउल में सो रहे हैं। लेकिन चार दिन से माल गोरु के बीच में रह कर भी आपका प्रेम कम नही हुआ और हमने सजा को मौका बना लिया। रात को जब सब लोग सो जाते थे तो चुपके से निकल कर बखार के पेंदी में छेद कर के एक बोरा गेंहू निकाल लेते और रातो रात नकछेद साह बनिया के दुकान में सेल कर आते। इस तरह चार रात में चार बोरा गेहूं बेच के साढ़े आठ सौ रुपया बटोर लिए हैं आपके लिए गिफ्ट खरीदने खातिर। आप क्लास रूम के दिवाल पर कोयला से अपनी पसंद की चीज का नाम लिख दीजियेगा हम आपके लिए उहे सामान गिफ्ट खरीदेंगे।
ढेर का लिखें ए बबिता, लेकिन एगो शिकायत है तुमसे। हम त दिन भर तुम्हारे आगे पीछे हुए रहते हैं पर आज तक तुम हमारी ओर एकबार उलट के भी नही ताकी हो। एक बेर हमारी ओर ताक दोगी त का गठबंधन का सरकार गिर जायेगा। तुमको तकाने के लिए कितना खल बेखल का डरेस पहन के आये पर कवनो फायदा नही हुआ। तुमको हरा दुपट्टा ओढ़े देखे तो लगा कि कहीं हरा तुम्हारा फेबरेट कलर होगा त उसी समय हम भी हरिहर पैजामा सिलवा लिए। पर हाय रे किस्मत! जिसके लिए हरिहर पैजामा पहिर के जोकर बने उसने एक बार भी आँख उठा के नही देखा। जिस तरह हम थेथर बन के जी रहे हैं उ सुन के त कोई बिहार का नेता भी लजा जाय।
लेकिन हम बुझते हैं कि हमारा हाल काहे ख़राब है। तुमको पाने के लिए गोपालगंज वाला पंडीजी से उपाय पूछे तो बता दिया कि हलुमान जी का बरत करो। 7 मंगल निर्जला भुखने के बाद बुझाया कि साला बिहारी पंडित धोखा दे दिया। हलुमान जी त अपने बाल ब्रम्हचारी, उनका पूजा करने वाले के प्रेम का पत्ता कांग्रेस नियर साफ नही होगा त का भाजपा नियर आकाश में उड़ेगा। खैर अब किसुन कन्हैया को पूजता हूँ, उम्मेद है कि तुम जल्दिये ताकोगी।
ढेर का लिखें.... अपना ख्याल रखना, और कवनो बिहारी के फेर में मत पड़ना। ससुरा बड़ी चुहाड़ होता है सब। टाइम से सात बार खाना खाना, याद रखना कि हम भी तुम्हारा ही मुह देख कर जी रहे हैं।
तुम्हारा.....
आलोक पाण्डेय
रतसड़, बलिया
आलोक पाण्डेय पत्र पढ़ कर सर उठाते हैं तो देखते हैं की अर्धांगिनी कमरे में घुस रही है। सट से डायरी छुपाते हैं पर अर्धांगिनी पूछ पड़ती हैं, ई कइसन डायरी है जी?
-कुछु नही, उ हम एक बार शोध किये थे कि गीतगोबिंद लिखने के समय जयदेव जी कालिदास के कुमारसंभवम् से केतना नक़ल मारे थे। हेँ हेँ हेँ.... उहे डायरी है।
- हेंहेंआइये मत। आपकी डायरी के सभी इकतीसों पत्र लगभग 100 बार पढ़ चुकी हूँ। मुस्कुराती हुई कहती हैं अर्धांगिनी, मुझे तो गर्व् होता है कि मेरे पति के कलेजे में इतना प्रेम भरा है जितना किसी जनसेवक के कलेजे में भ्रस्टाचार भी नही होगा। पर समझ में नही आता कि मेरे सामने यह प्यार कहाँ चल जाता है..., मैं कोई एक सामान मांग दूँ तो आपके घुटने में अपेंडिस् हो जाता है।
मुस्कुराते हुए कहते हैं आलोक पाण्डेय- जानती हो नीतू, जब मंडन मिश्र की पत्नी ने संकराचार्य से....,..
- हटिये भी..., लगे प्रवचन झाड़ने.....
अर्धांगिनी चली गयीं हैं। आलोक पाण्डेय के मुह से निकलता है- तुम सचमुच देवी हो नीतू, मेरी लक्ष्मी।
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सर्वेश तिवारी श्रीमुख फ्रॉम मोतीझील
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