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भोजपुरी कहानिया

"तिरिया चरितर"

तिरिया चरितर
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"त्रिया चरित्रम्,पुरुषस्य भाग्यम्,दैवो न जानाति कुतो मनुष्यः"

पंडिताई एगो विशिष्ट ज्ञान ह या ना पर इ एगो मनोविज्ञान जरूर ह, इ सोच पंडित भोला नाथ हमेशा मानेले। काहे से कि उ कवनो गुरुकुल में त पंडिताई के शिक्षा ना लेहले पर पुरखा लोग से मिलल थोड़ा बहुत ज्ञान अउरी एहि मनोविज्ञान के बल पर उ अपना पंडिताई के डंका बजवले बाड़े। बड़ से बड़ मनई उनका लगे आपन भागी बचवावे आवेला अउरी बुरा समय से निकले के पूजा पाठ खातिर।

उ निमन से जानेले कि अगर भाग बाचे के चीज रहित, अउरी अनुष्ठान से ओके बदलल जा सकित त जवार के एतना नामी पंडित भईला के बाद भी अपना पुरखन से विरासत में मिलल मड़ई पर महल ना पिटवा देते। पर परयास कईल आदमी के काम ह अउरी उ उहे करेले। हां चुकि पूजा पाठ अउरी लोग के भागी बाचल उनकर काम ह त उ एकरा पीछे छुपल मनोविज्ञान के निमन से सीख लेले बाड़े। कवना आदमी के कईसे बात करे के बा इ गुण उनका बड़ा निमन से आवेला। उ जानतारे कि एगो धन सपंदा से भरल आदमी बुरा दिन के उपाय ना पूछे आवेला बल्कि उ पंडित के दान दक्षिणा चढ़ावे अउरी आशिर्वाद लेवे आवेला जबकि जीवन में हताश परेशां आदमी ओईसे मुक्ति के उपाय पूछे आवेला।

कवना आदमी के कवना मार्ग से मुक्ति मिलेला, अब उनसे भी निमन केहू जानेला। उ मनई के हालत देख के उपाय बतावेले। अब इ नाकि ओकरा घर में भूजि भांग भी ना होखे अउरी ओके १ महीना के महायज्ञ के उपाय बता देस। जइसन मनई ओइसन उपाय। रउवा इ कही सकेनी की ऐ मामला में भोलानाथ जी ईमानदारी से काम लेनी।

जीवन के एहि भँवर में त फँसि के देवा आजु पंडी जी से ओईसे निकले के राहता खोजे आवतारे। आज कई दिन से उनकर मेहरारू अठान कठान डलले बाड़ी स्मार्ट फ़ोन खातिर। हर मेहरारू के शौक होला कि ओहु के लगे उ सामान होखे जवन ओकरा अगल बगल के मेहरारू कुल के लगे होला। इंदु के अगल बगल वाली सगरी मेहरारू कुल के लगे स्मार्ट फ़ोन बा अउरी जब उ मुँह बना बना के आपन फोटो खिचेली सं त इंदु के देहि के खून जर जाला। इ कईसन अन्याय बा. भगवान जेके रूप देले बाड़े ओकरा लगे फोटो खिंचे वाला फ़ोन ना अउरी बनचर जइसन मुह वाली कुल चोन्हा चोन्हा के फोटो खिचतारी सन.

बात अगर फोटो ले ही रहित तबो संतोख हो जाइत पर जब उ खेसरीया अउरी सोनाली के गाना फुल वॉल्यूम में बजावतारी सन त अइसे लागता जईसे इंदु के ही चिढ़ावतारी सं। इंदु इंदु सोनाली के बड़का फैन हई। उनकर गाना बड़ा भाएला उनके। अब उहो आखरी चेतावनी दे देले बाड़ी देवा का या त घर में मोबाइल आई नात उनकर पौरा घर से बहरी जाई। इंदु अतना बुरबक नईखी कि आपन अउरी देवा के स्थिति नईखी जानत पर कबो कबो आदमी वो मानसिक अवस्था में पहुच जाला जब ओकर इच्छा, जीवन के सच्चाई पर बीस पड़े लागेला। उ हर चीज से आँखि बंद क के बस उ पावे चाहेला जवन ओकर मन मांगे ला. इंदु भी वो अवस्था में पहुच गईल बाड़ी।

देवा बढ़ई के काम करेले अउरी एक बार विदेश भी जाके हो आयिल बाड़े पर जे एकदम गहिर गिरल होखे ओकरा सतह में आवे में बहुत समय लागेला। आजुवो उनका लगे बी पी एल कार्ड बा अउरी अबे ऐ कॉर्ड से मुक्ति पावे में उनका बहुत समय लागि। उनका गरीबी के ही कारण उनकर शादी बड़ा देर से भईल। इंदु के बाबूजी के गरीबी उनके देव जइसन उमिर दराज आदमी से शादी करे पर मजबूर के देहलस नात उनका जइसन सुनर लईकी उनका टोला में दूसर ना रहे। अब अयीसन सुनर मेहरारू के केहू सपनो में खो सकेला। नाजी ना। उनका अभियो रामदेव के खीसा याद बा। उन्ह के शादी तनी लेट से भईल रहे अउरी कुछ दिन बाद मेहरारू से खटपट होखे लागल फेरु एक दिन बाद उनकर मेहरारू टोला के ही सुभाषवा के साथे भाग गईल। हम कवनो हालात में इ नौबत ना आवे देब। पर करि त का।

मोबाइल कम से कम ५ हज़ार में आई। ऊपर से अबे शादिय के कर्ज बा २५ हज़ार अउरी ओकर सूद चपले बा। ऐ जाड़ा पाला के दिन में काम भी कबो कभार मिलता। वइसे त उ फेरु विदेश जाए के दरखास लगा देले बाड़े पर पुरनका कंपनी वाला वीजा खातिर अब तब ना कईले बा।

ढेर पढ़ल लिखल त नईखन पर तबो उ इ मानेले कि सब ग्रह नक्षत्र के फेर ह अउरी अहि कुल से मुक्ति के रह्ता खोजे पंडी जी की किहा चलल बाड़े। सबेरे से बिना खईले पियले कई जगह कर्जा खातिर भटकले ह पर काम ना बनल ह। अब शायद कुछु पंडी जी से उपाय मिलो। रही रही के रामदेव बो भौजाई के चेहरा इयाद आ जाता। अगर इंदु फरमाईश पूरा ना होइ त शायद उन्ह के हाल रामदेव भाई के ही होइ।

पंडीजी के पलानी में पहुँच के उ उनकर गोड़ लागतारे। पंडी जी खाना खाके अब सूते खातिर आ गईल बानी। राति के ८ बजता अउरी सब जानता की गांव में ठंढी पाला में लोग सूत जाला। पंडीजी के त वइसे भी मंदिर खोले खातिर ४ बजे भोरे उठे के पड़ेला। पंडी जी के लालटेन मद्धिम आंच में जरतिया।

पंडी जी आशिर्वाद देतानी अउरी देवा आपन परेशानी बता देतारे। पंडी जी जानेनी की सामने वाला पहिला ही वाक्य में प्रभावित हो जाए के चाही।
""त्रिया चरित्रम्,पुरुषस्य भाग्यम्,दैवो न जानाति" पंडी जी संस्कृत के श्लोक पढ़ देतानी।
देवा के कुछ अर्थ त नईखे बुझात पर लागता कि पंडी जी कुछ गहिराह बात कहले बानी।

बाबू देवा कहल बाकि मेहरारू के चरितर अउरी पुरुष के भागी के बारे में भगवन भी ना जानेले। कब भाग्योदय हो जाई इ केहू नईख जानत ऐ वजह से तू निराश मत होख। तहार भी समय बदली। हम तहके कुछ पूजा पाठ बता देतानी उ करिह अउरी महीना दू महीना में तहार दिन बदल जाई। देवा के चेहरा मुरझा जाता। एइजा एक दिन पर बनल बा अउरी पंडी जी महीना के उपाय बतावतानी। फेरु अपना के संतोख देत मने मन कहतारे कि पन्डिजियो भी का सकेनी। जवन लिखल होइ तवने ने बताएब। पर उनका अपना समस्या से मुक्ति के रहता नईखे मिळत। तबही पंडीजी आपन कुरता उतार तानी अउरी जेब में राखल चाभी के गुच्छा झन से निचे गिर जाता। देवा समझ जातारे कि इ त मंदिर के चाभी ह। पंडी जी वापस चाभी के जेब में रखके कुर्ता खूटी में टांग देतारे। देवा पंडी जी के गोड़ लाग के बाहर निकल जातारे। लेकिन जईसे जईसे उनके पाँव आगे बढ़ता उनका आँखि सामने मंदिर के चाभी नाचता।

अब उनका दिमाग में एगो अयीसन बात चलता जेके उनका जइसन आदमी सोच सकेला, इ बात के विस्वास गांव में केहू नईखे क सकत। कहल जाला कबो कबो जीवन के भवर में फसल निमन से निमन आदमी आपन विवेक खो देला अउरी पाप करे पर मजबूर हो जाला। देवा के साथै भी इहे होता। मंदिर में अष्टधातु के मूर्ति बाड़ी सन। सबसे छोट मूर्ति भी ३० हज़ार से कम के ना होइ। मूर्ति निकाल के बेच देस त एक झटका में इंदु के फरमाईश अउरी कर्जा सब उतर जाई अउरी बाद में जब पईसा होइ त उहे मूर्ति खरीद के फेरु चुपके से मंदिर में रख दिहे। देवा के कदम वापस पंडी जी पलानी के ओरी मुड़ी जाता। उ पलानी के पास पहुच के दम साध के बईठ जातारे। कुछ देर के इन्तजार के बाद पंडी जी के खर्राटा के आवाज आवे लागता। फेरु उ धीरे से पलानी में घुस जातारे। लालटेन अभियो ओहि आंच में जरता पर इ आपन मुह बांधले बाड़े। उ धीरे से जेब में हाथ डालके चाभी निकाल लेतारे अउरी दबे पाव बाहर आ जातारे। उनकर कोशिश कामयाब हो गईल बा। आधा काम हो गईल बा आधा बाकि बा। पर अभी हो सकेला की केहू जागल होखे। मंदिर में गईला पर धराईला के डर बा। तनी अउरी राति हो जाई तब बाकि काम कईल ठीक रही। तले चल के खाना पीना क आई इहे सोच के उ घर के ओरी मुड़ जातारे।

ओने सबेरे से ही इंदु के हाल ख़राब बा। सबेरे से भूखे प्यासे निकलल बाड़े। पता ना खईले की ना। मांग से बढ़के मोबाइल नईखे नु। का हो गईल जे मोबाइल नईखे पर रहनदार आदमी त बानू। बाकि के टोला के आदमी लोग खान उनकर आदमी पियक्कड़ त नईखे नु। आज ले देवा कभी उनके उरेब नइखन बोलले। ओतना मान जान बहुत कम ही लोग करेला अपना मेहरारू के। अब उ अपना के कोस तारी की कवना घडी में इ जिद करुवी। उनका खातिर स्मार्ट फोन से बढ़ उनकर आदमी बा। फेरु कवनो अनिष्ट के सोच के कॉपी जाता। उ सगरी देवी देवता लोग के गोहरावतारी। सौकड़ो भखौती मांग तारी। बस एक बार देवा घरे आ जास. उ माफ़ी मांग लिहे अउरी कबो जिद ना करीहे। एहि सब में उ खाना भी नईखी बनवले आजु।

आखिर उनके मन के बात पूरा होता अउरी देवा घर में आवतारे।
एक दू दिन में मोबाइल आ जाई उ चहक के इंदु के बतावतारे।
पर अइसे इंदु के कवनो ख़ुशी नईखे होत बल्कि उनका के चिंता घेर लेता। घर में एको फूटी कौड़ी नईखे अउरी इनका लगे कवनो काम भी नईखे। फेरु फ़ोन ख़रीदे के पईसा कहा से आई। फेरु मन में बाउर बाती आवे लागता कि कही कवनो गलत काम त नईखन करे जात इ।
"साच साच बता द पईसा कहा से आई। तू कवनो गलत काम त नईख करे जात। हमके मोबाइल नाही तहार सलामती चाही। का बात बा ? बताव हमार किरिया" इंदु आपन किरिया धरा देतारी।

देवा त एकदम सन्न रही जातारे। केहू नईखे सोच सकत कि उ उहे इंदु हई जवन सबेरे मोबाइल खातिर घर छोड़ी के जाए वाला रहुवी अउरी अब उनका सलामती खातिर कुछु करे खातिर तैयार बाड़ी।

उनका पंडीजी के कहल बात इयाद आ जाता। तिरिया चरितर के देव भी न जानी सकेले।
उ इंदु से झूठ नईखन बोल सकत। इंदु से सगरी बात बता देतारे। कुछ देर खातिर चुप्पी छा जाता अउरी फेरु दुनु परानी एक दूसरा के धरि के रोवे लागता। सारा गिला शिकवा दूर हो जाता अउरी देवा के मन से पाप के बोझ उतर जाता। मन ही मन उ भगवन से माफी माँगतारे अउरी कहतारे की निमन भईल ह कि हम घरे आ गईनी ह नात इ चोरी के पाप के प्रायश्चित त सात जनम ले ना होइ।
एहि बीच बिरजू भाई चिल्लात उनका पलानी में घुसतारे। बॉम्बे से देवा खातिर फ़ोन आईल बा। उ फ़ोन लेके बतियावे तारे अउरी फेरु उनका ख़ुशी के ठेकान नईखे। पुरनका कंपनी के बॉस के फ़ोन रहल ह। उनकर वीजा मिल गईल बा अउरी अब ३५ हज़ार पगार पर उनकर नौकरी पक्का हो गईल बा दुबई में। बिरजू भाई बधाई देके चल जातारे। देवा के अपना भागी पर भरोस नईखे होत कुछ देर ले। उ इंदु के अकवारी में भर लेतारे अउरी पंडी जी के कहल बात दुहराव तारे -"तिरिया चरित्रम्,पुरुषस्य भाग्यम्,दैवो न जानाति ...."

इंदु छोड़ा के अंदर चल जातारी खाना बनावे अउरी उ चल देतारे वापस पंडी जी के जेब में चाभी रखे पर भरी रास्ता इहे दोहरावतारे -"त्रिया चरित्रम्,पुरुषस्य भाग्यम्,दैवो न जानाति..."


धनंजय तिवारी
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