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पेट में गैस बनने के कारण और उसका नेचुरोपैथी उपचार – प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव

पेट में गैस बनने के कारण और उसका नेचुरोपैथी उपचार – प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव
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आधुनिक जीवन शैली और खान-पान की विसंगतियों की वजह से पेट में गैस बनना एक आम समस्या के रूप में उभर कर आई है । शहरी हों, या ग्रामीण, शिक्षित हों या अशिक्षित, सभी इससे पीड़ित हैं । ऐसा क्यों है ? सबसे पहले आइये, उन कारणों पर विचार कर लें, जिसकी वजह से आज एक बड़ी आबादी इससे प्रभावित है । आइये सबसे पहले उन कारणों पर विचार कर लेते हैं, जिनके कारण गैस बनती है।

पेट में गैस बनने के कारण

1. अधिक भोजन करना – नेचरोपैथी के अनुसार अगर कोई व्यक्ति भूख से अधिक भोजन करता है, तो वह गैस की बीमारी का शिकार हो सकता है। कारण साफ है कि अधिक भोजन करने की वजह से पूरा भोजन पच नहीं पाता। जो भोजन पच नहीं पाता, वह सड़ने लगता है, जिसकी वजह से गैस बनती है।

2. निश्चित समय पर भोजन न करना – जो लोग निश्चित समय पर भोजन नहीं करते हैं, वे भी गैस के शिकार हो जाते हैं। भोजन के पाचक रस एक निश्चित समय पर रिलीज होते हैं, जब उस समय पर भोजन नहीं होता है, तो वे रिलीज होकर शरीर को नुकसान पहुँचाते हैं और देर से भोजन करने पर वे पूरी तरह पच नहीं पाते हैं, इस कारण वे सड़ते हैं, और गैस की बीमारी बनने लगती है ।

3. तीखा या चटपटा भोजन करना – नेचरोपैथी के अनुसार जो व्यक्ति ज्यादा तीखा और चटपटा भोजन करता है, वह भी गैस का शिकार हो जाता है ।

4. एक ही स्थान पर देर तक बैठना – प्राय: यह देखा गया है कि जो व्यक्ति एक ही स्थान पर देर तक बैठता है, वह गैस का शिकार हो जाता है ।

5. बेढंग जीवनशैली – आधुनिक काल में युवाओं की शैली बेतरतीब हो गई है। न उनके खाने का समय है, न सोने का, न नहाने का, न और गतिविधियों का। ऐसे लोग भी गैस के शिकार हो जाते हैं ।

6. स्थूल शरीर – नेचरोपैथी के अनसूयर स्थूल काया के व्यक्ति में भी गैस का प्रकोप अधिक पाया जाता है ।

7. मानसिक चिंता – जो लोग अधिक चिंतित रहते हैं, वे भी गैस के शिकार हो जाते हैं ।

8. गरिष्ठ भोजन – सुपाच्य भोजन की जगह गरिष्ठ भोजन करने वाले भी गैस के शिकार हो जाते हैं। उनका भोजन निश्चित समय में नहीं पच पाता है। इसलिये वह अनेक विकृतियाँ पैदा करता है ।

9. शराब पीना – जिस व्यक्ति की शराब पीने की कोई लिमिट नहीं होती है। वे लोग भी गैस के शिकार पाए जाते हैं ।

10. भोजन को चबाकर न खाना – आज की भागमभाग जीवन शैली के कारण लोग भोजन को अच्छी तरह चबा कर नहीं खाते हैं। जिसकी वजह से वह ठीक से नहीं पचता है। जो पचता नहीं है, वह सड़ता है, इस कारण गैस बनती है।

11. वायरल फीवर – नेचरोपैथ में की गई जांच के अनुसार ऐसा भी पाया गया है कि अगर रोगी की हिस्ट्री वायरल फीवर की रही है, तो वह गैस के रोग का शिकार हो गया है।

12. इंफेकशन – जिन व्यक्तियों में इन्फेक्शन पाया जाता है, वे भी कुछ समय के बाद गैस के शिकार हो जाते हैं ।

13. पथरी, ट्यूमर, अल्सर आदि – ऐसा पाया गया है कि जिन लोगों को पथरी, ट्यूमर या अल्सर होता है, वे भी गैस के शिकार हो जाते हैं।

14. बैक्टीरिया – कई बार जांच में यह भी पाया गया है कि गैस की उत्पत्ति विशेष प्रकार के बैक्टीरिया की वजह से हुई है । यानि अगर कोई व्यक्ति बैक्टीरिया से संक्रमित होता है, तो उसे गैस की बीमारी हो सकती है ।

15. एसिडिटी – जिस व्यक्ति को एसिडिटी की शिकायत होती है, वे भी गैस के शिकार हो जाते हैं। ऐसा पाया गया है कि पेट की गैस बनने के पीछे एसिडिटी अधिक जिम्मेदार है ।

16. बदहजमी – कई बार यह पाया गया है कि जिसको बदहजमी की शिकायत होती है, वे भी पेट की गैस के शिकार हो जाते है ।

17. फूड प्वायजनिंग – अगर किसी व्यक्ति को बार – बार फूड प्वायजनिंग होती है, तो वह भी गैस रोग का शिकार हो जाता है ।

पेट की गैस की बीमारी जाँचने के लिए एक कुशल नेचरोपैथ उसके निम्न लक्षणों की जांच करता है ।

लक्षण :

1. पेट फूलना – अगर व्यक्ति का पेट फूला होता है, तो नेचरोपैथ इस निर्णय पर पहुंचता है कि इसे गैस की बीमारी हो सकती है ।

2. बार-बार गैस बनना – अगर किसी व्यक्ति को बार – बार बनने की शिकायत रहती है, तो भी उसे गैस की बीमारी होने की संभावना होती है ।

3. पेट में असहनीय दर्द होना – अगर किसी व्यक्ति के पेट में असहनीय दर्द होता रहता है, तो भी एक नेचरोपैथ उसके गैस होने की जांच करता है ।

4. पास की गई गैस में तेज बदबू होना – अगर किसी व्यक्ति द्वारा पास की गई गैस बदबूदार होती है, तो निश्चित ही वह गैस बीमारी का शिकार हो गया है ।

5. खट्टी डकारें आना – अगर कोई व्यक्ति खट्टी डकार की शिकायत करता है, तो निश्चित रूप से वह गैस से पीड़ित है ।

6. आंती टूटना – अगर किसी व्यक्ति को आंती टूटती है, पर उसमें कुछ निकलता नहीं है, तो उसे भी गैस की बीमारी होती है ।

7. भूख कम लगना – अगर किसी व्यक्ति को भूख कम लगती है, तो उसके पीछे भी गैस उत्तरदायी हो सकती है ।

8. हिचकी आना – अगर किसी को बार – बार हिचकी आती है, इसका मतलब वह भी गैस रोग का शिकार है ।

9. पेट में ऐंठन होना – अगर किसी के पेट में बार-बार ऐंठन होती है, तो उसका कारण पेट की गैस हो सकती है ।

10. मल का रंग बदलना – अगर किसी व्यक्ति के मल का रंग बदल गया हो, तो उसका कारण पेट की गैस हो सकती है ।

11. मल के साथ खून आना – अगर किसी व्यक्ति को मल के साथ खून आता हो, तो उसका भी कारण पेट की गैस ही होती है ।

उपचार – एक कुशल नेचरोपैथ बातचीत और टेस्ट करके गैस के कारणों और लक्षणों को जानने के बाद ही उपचार शुरू करता है । रोगी को ठीक करने के लिए वह एक साथ कई दिशाओं में काम करता है। पहला वह मरीज की दिनचर्या को व्यवस्थित करता है। नियमित व्यायाम कम से कम तीस मिनट तक पेट और गैस में आराम देने वाले योग कराता है । साथ ही पेट की सफाई के लिए षष्ट नेति का उपयोग करता है। उसे नियमित समय पर उपयुक्त मात्रा में प्राकृतिक आहार देता है। पाचन क्रिया प्रबल हो जाए, इसके लिए नाना प्रकार के आहारो का प्रयोग करता है ।

ज़्यादातर यह पाया जाता है कि अधिक अम्लता और एसिडिटी के कारण गैस की समस्या होती है। अपच भी उसका एक प्रमुख कारण है । इसलिए वह रोगी को विशेष विधियों से तैयार नीबू रस पीने के लिए देता है । हींग, काली मिर्च, धनिया की पत्ती, अजवाइन, दालचीनी, लहसुन, खड़ा धनिया, इलायची, पुदीना, सेव का सिरका, ग्रीन टी, छाछ आदि का विभिन्न रूपों में करता है। इसके साथ-साथ सभी नेचरोपैथ अपनी विशेषज्ञता और अनुभव के अनुसार कई इलाज करता है। इससे मेटाबोलिज़म मजबूत होता है, पाचन तंत्र के साथ पाचन क्रिया भी ठीक हो जाती है । पंच कर्म का भी उपयोग लाभकारी लाभकारी सिद्ध होता है । यह एक आम बीमारी है, लेकिन समय रहते सावधानी न बरती जाए, तो यह एक दिन बड़ी बीमारी का भी रूप ले सकती है। अगर कोई तनावग्रस्त होता है, तो उसके तनाव के कारणों को जानकार उनका निवारण करता है । क्योंकि तनाव से शरीर में पाचक रसों का स्राव कम हो जाता है, जिससे अपच की समस्या जन्म लेती है। अपच के कारण ही पेट में गैस बनती है। अधिक वजन के कारण छोटी आंत के अंदर गैस भर जाती है। जिसका असर पाचन क्रिया पर पड़ता है। इसलिए वजन भी संतुलित करने का प्रयास करता है । एलोपैथी दवाओं का अधिक सेवन से वजन बढ़ जाता है। इसलिए उसके असर को कम करता है । गैस से पीड़ित व्यक्ति को उतना पानी पिलाता है, जितनी उसके शरीर को जरूरत होती है ।

इसके साथ-साथ गैस से पीड़ित व्यक्ति को जिस कारण से पेट गैस का रोग होता है, उसका निवारण करता है। परहेज के रूप में अधिक मसालेदार, तले-भुने, बासी, खाद्य पदार्थ खाने की मनाही करता है। गैस की बीमार व्यक्ति अगर एक से तीन महीने नियमित रूप से इलाज कराता है, तो वह बिलकुल पहले जैसा ठीक हो जाता है ।

प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव

पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट

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