लॉकडाउन में सरकार व्यस्त, अपराधी मस्त – प्रोफेसर (डॉ.) योगेन्द्र यादव
इस समय पूरी मानव जाति अपने अस्तित्व को बचाने के लिए संघर्ष कर रही है। विश्व के अन्य सभी देशों की तरह भारत में भी लॉक डाउन लगा हुआ है । इस समय चौथे चरण का लॉक डाउन चल रहा है। जिसमें थोड़ी सी ढील दी गई है । इससे जनता राहत महसूस कर रही है। जो इलाके रेड जोन में नहीं हैं, वहाँ स्थित कल-कारखानों को भी खोल दिया गया है। सभी सोशल डिस्टेन्सिंग का पालन करते हुए अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर रहे हैं । उत्तर प्रदेश सरकार और उसका पूरा प्रशासन जहां मजदूरों को उनके घरों तक पहुँचाने और 14 दिनों के लिए उन्हें क्वारंटाइन करने की जद्दोजहद में व्यस्त है। वहीं दूसरी ओर उत्तर प्रदेश में हत्याओं का सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले रहा है। जबसे लॉक डाउन लागू हुआ है, तबसे अभी तक सौ से अधिक हत्याएं हो चुकी हैं । साथ ही अन्य प्रकार की वारदातों का सिलसिला भी जारी है । इस कारण प्रदेश की जनता एक ओर कोरेना संक्रमण से खौफजदा है, तो दूसरी ओर हो रही आपराधिक वारदातों की वजह से भयभीत है। इस लेख के मूल कथ्य पर आने के पहले आइये, उत्तर प्रदेश की कुछ घटनाओं पर विचार कर लेते हैं ।
एटा जिले में लॉकडाउन के बीच एक ही परिवार के पांच लोगों की हत्या हुई । सुबह अपने घर के अंदर सभी मृत पाए गए। मृतकों में बच्चेओ भी शामिल थे। बाद में जब पुलिस ने छानबीन की तो पता चला कि उनकी बहूँ ने पूरे परिवार को जहर देकर मार डाला । संभल जिले के बहजोई में गोलगप्पे खाने के बाद पैसे मांगने पर युवक ने गोलगप्पे वाले की कनपटी पर गोली मारकर उसकी हत्या कर दी। इसके बाद वह तमंचा लहराते हुए भाग गया। बहजोई थाना क्षेत्र में 33 घंटे के भीतर इस प्रकार तीसरी हत्या हुई । संभल जिले में समाजवादी पार्टी के नेता और उनके बेटे की गोली मारकर हत्या कर दी गई। विवाद के बाद दो बदमाशों ने उन पर गोलियां चलाईं, जिसमें पिता-बेटे की मौत हो गई।
पुलिस अधीक्षक के अनुसार ''बहजोई थाना क्षेत्र के शमशोई गांव में मनरेगा के तहत सड़क बन रही थी और उसे लेकर दोनों पक्षों के बीच विवाद हुआ और कहासुनी के बीच गोलियां चलीं।
अयोध्या जिले में इनायतनगर थाना क्षेत्र के पलिया में पंचायत के दौरान मामूली कहासुनी के बाद अचानक चली गोली से ग्राम प्रधान सहित दो लोगों की मौत हो गई। घटना के पीछे पुरानी चुनावी रंजिश भी बताई जा रही है।
प्रयागराज के यमुनापार में कोरांव थाना क्षेत्र के निश्चिंतपुर गांव में चार बीघा जमीन के विवाद में तीन सगे भाइयों की लाठी-डंडे और पत्थरों से पीट-पीट कर हत्या कर दी गई। हमलावर पट्टीदारों ने दो महिलाओं को भी पीट कर मरणासन्न कर दिया।
कानपुर के घाटमपुर में साढ़ थानाक्षेत्र के हरीपुर गांव निवासी को अज्ञात वाहन ने उसे टक्कर मार दी। जिससे उसकी मौके पर ही मौत हो गई। मृतक के परिजनों ने हत्या किए जाने की आशंका जताई। उसके सिर और छाती में चोट के निशान मिले हैं।
शामली के थाना कैराना क्षेत्र में दो युवतियों की हत्या कर उनके शव खेत में फेंक दिये गए। उनके सिर पर वार कर हत्या उनकी हत्या की गई । गला दबाए जाने के भी निशान हैं। बहलोलपुर में लालगंज कोतवाली के पंडित का पुरवा खरगपुर निवासी एक छात्र का बेरहमी से कत्ल करने के बाद हत्यारों ने शव जंगल में फेंक दिया था। उसका गला काटने के साथ ही चेहरे पर भी धारदार हथियार से प्रहार किए गए थे। धारदार हथियार से उसका गला रेतने के साथ ही उसके कान, आंख, जबड़े पर पर भी प्रहार किया गया था। लॉकडाउन के बीच फर्रुखाबाद में अलग-अलग स्थानों पर हुई दो हत्याओं से शहर थर्रा उठा । घर के बंटवारे को लेकर बड़े भाई ने छोटे भाई को गोलियों से भून डाला । वहीं दूसरी ओर एक पुराने विवाद में किन्नर की गोली सरकार हत्या कर दी गई ।
इसी तरह से बेखौफ होकर अपराधियों ने बेखौफ होकर सैकड़ों हत्याओं को अंजाम दिया। कोरेना संक्रमण के कारण लगे हुए लॉक डाउन और हजारों की संख्या में प्रवासी मजदूरों अपने घरों की ओर जाने वाली घटनाओं के बीच ये सभी घटनाएँ और अपराध दब कर रह गए हैं। पुलिस प्रशासन समस्त व्यवस्थाओं के संचालन में लगा हुआ है। जिसकी जानकारी ऐसे लोगों को है। इसी कारण अपराधी और अपराधी मानसिकता के लोग भयमुक्त होकर वारदातों को अंजाम दे रहे हैं ।
आइये इन घटनाओं के पीछे क्या कारण हैं ? इस पर विचार कर लेते हैं । इन अपराधों के पीछे जो कारण उभर कर आए हैं कि अपने-अपने घरों की ओर प्रवासी मजदूरों के लौटने और इस समय कोई काम न होने की वजह से पास पड़ोसियों से हुए छोटे-मोटे झगड़ों की चर्चा होना स्वाभाविक है । इसी चर्चा के दौरान परिवार का कोई सदस्य जब उसे प्रतिष्ठा का सवाल बना कर उस पर तू-तू मैं-मैं करने की कोशिश करता है, तो दूसरे पक्ष के लोग भी जब उसका प्रतिकार करते हैं, तब इस प्रकार की घटनाएँ घटित होती हैं । ऊपर जिन घटनाओं का मैंने उल्लेख किया है, उसमें से अयोध्या, प्रयागराज और संभल की घटनाएँ ऐसी ही हैं । जो लंबे समय से चले रहे जमीनी विवाद के कारण घटी । परिवार के अधिकांश लोगों द्वारा इकट्ठा होने के कारण संख्या बल और बाहूबल ने आग में घी का काम किया। और सबक सिखाने के लिए एक पक्ष ने दूसरे पक्ष पर हमला बोल दिया । अयोध्या की घटना पर जब दृष्टिपात करते हैं कि पंचायत के दौरान दोनों पक्षों ने हथियारबद्ध लोगों को बुलाया था। थोड़ी सी तू-तू, मैं-मैं की स्थिति बनते ही एक तरफ से शुरुआत हुई, जिसमे एक व्यक्ति मारा गया। फिर दूसरे पक्ष के लोगों ने दूसरे पक्ष के भी प्रमुख प्रतिद्वंदी को गोली मार दी ।
ऐसी घटनाओं का एक कारण सहजता के साथ सभी को लाइसेन्स देना भी है। उत्तर प्रदेश का कोई भी ऐसा गाँव नहीं होगा, जिस गाँव ने लाइसेंसी हथियार न हो । जो आम दिनों में उनके अहम को संतुष्ट तो करते ही हैं । लेकिन जैसे ही गाँव में कोई छोटी-मोटी बात शुरू होती है, दोनों पक्षों के लोग हथियार लेकर आ जाते हैं। उत्तर प्रदेश में एक कहावत है कि लोग लाइसेंसी असलहे के साथ-साथ कई अवैध असलहे भी रखते हैं । जब भी कोई वारदात होती है, तो वे ऐसे ही अवैध असलहे का उपयोग करते हैं ।
इसके अलावा कोरेना संकट के कारण ऐसे लोग भी अपने गाँव को लौट आए हैं, जो किसी लड़ाई झगड़ा हो जाने के बाद अपने-अपने घरों से दूर जाकर कहीं कमा-खा रहे थे। अब वे अपने घर लौट आए हैं, ऐसे में जब वे लोग उनके सामने पड़ रहे हैं, जिन लोगों के खिलाफ उनकी मारपीट हुई थी, तो लोग उसे देखते ही तिलमिला उठ रहे हैं और ऐसी घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं । इन सब आपराधिक वारदातों के लिए शराब की बिक्री भी उत्तरदायी है। जब तक शराब की दूकाने बंद थी, तब तक पूरे प्रदेश में शांति बनी रही। लेकिन जैसे ही सरकार ने शराब पर से बंदी हटाई, इस प्रकार की वारदातों की बाढ़ आ गई ।
उत्तर प्रदेश सहित पूरे देश में हुई आपराधिक वारदातों ने एक बार फिर समाजचिंतकों को सोचने को मजबूर कर दिया है । ऐसे समय जब कोरेना संक्रमण के कारण लोगों की संवेदनाए चरम पर हैं। इसके बावजूद छोटे-छोटे झगड़ों, जमीनी विवादों में लोग एक दूसरे के खून के प्यासे हो गए हैं । ऐसे में पुलिस और सरकार दोनों की दोहरी जवाबदेही बन गई है। जब सरकार और पुलिस प्रशासन को लॉक डाउन और कोरेना संक्रमण के साथ –साथ ऐसे लोगों पर भी अपनी दृष्टि जमाने की जरूरत है, जहां छोटे-मोटे विवाद हैं । अगर इस प्रकार के विवादों के संबंध के जरा सी उभरने की संभावना आती है तो पुलिस को सख्ती से पेश आकर उसे वहीं रोकने का प्रयास करना है । ऐसा नहीं है कि ऐसी वारदात होने के बाद पुलिस कार्रवाई नहीं कर रही है। वह कर रही है, लेकिन ऐसी कार्रवाई के तब कोई मायने नहीं रह जाते, जब इस प्रकार की घटनाएँ घटित हो जाएँ । इसलिए सरकार को सख्ती के साथ-साथ सामाजिक और मनोवैज्ञानिक पहलुओं पर भी ध्यान देना चाहिए । इसके साथ-साथ सरकार जब तक लॉक डाउन है, तब तक शराब की बिक्री पर रोक लगा दे, या ऐसे आपराधिक छवि के लोगों पर नजर रखे, शराब खरीद कर ले जा रहे हैं। हत्या की अधिकांश वारदाते शराब का सेवन करने के बाद ही की जाती हैं । लॉक डाउन के दौरान सरकार और पुलिस प्रशासन दोनों एक बार फिर से अपनी रणनीति पर विचार कर उसमें आवश्यक संशोधन करें । तभी इस प्रकार की आपराधिक वारदातों पर रोक लग सकती है ।
प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव
पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट