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बे-बस मजदूर पर बस की राजनीति : कितनी हकीकत, कितना फसाना – प्रोफेसर (डॉ.) योगेन्द्र यादव

बे-बस मजदूर पर बस की राजनीति : कितनी हकीकत, कितना फसाना – प्रोफेसर (डॉ.) योगेन्द्र यादव
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लॉक डाउन के माध्यम से जहां पिछले पचास से अधिक दिनों से लॉक डाउन के कारण देश की जनता ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील के बाद खुद को अपने-अपने घरों में बंद किए हुए है। वहीं प्रवासी मजदूरों के जन्मभूमि प्रेम ने एक बार फिर सरकार को सोचने और नए सिरे से रणनीति बनाने में मजबूर कर दिया । सरकार और प्रशासन की तमाम अपीलों को नजरंदाज करते हुए एकाएक सड़कों पर लाखों प्रवासी मजदूरों की भीड़ के आगे प्रदेश सरकारों द्वारा की गई तैयारियां नाकाफी साबित हुई । भूखे-प्यासे हजारों किलोमीटर गरम तवे की तरह जलती सड़क पर फफोले से भरे पैरों की कल्पना मात्र से रूह काँप जाती है। उनकी दशा देख- सुन कर किसी का भी हृदय द्रवित हो सकता है। पूरे भारत के सभी संवेदनशील व्यक्ति अपनी सामर्थ्य के अनुसार उनकी सेवा कर रहे हैं। अपने घरो के लिए निकले लाखों मजदूरों के रहने-खाने और रात्रि विश्राम की संतोषजनक व्यवस्थाएं की जा रही थी कि तभी कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी की उत्तर प्रदेश की एक अपील ने राजनीतिक भूचाल ला दिया। इसे लेकर भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस में वैचारिक संग्राम छिड़ गया । दोनों ओर से आरोप – प्रत्यारोप लगाए जाने लगे । मीडिया से लेकर आम आदमी तक दो धड़ो में बंट गया ।

आइये सबसे पहले यह समझते हैं कि इस प्रकरण की शुरुआत कैसे हुई ? इस पूरे प्रकरण को लेकर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के बीच में नौ पत्रों का आदान-प्रदान हुआ। प्रियंका गांधी वाड्रा ने पहला पत्र 16 मई को लिखा। उन्होने पैदल चल रहे गरीब बेसहारा मजदूरों के लिए 500 बस गाजीपुर (दिल्ली-यूपी बार्डर) और 500 बसें नोएडा बार्डर से चलाने का प्रस्ताव प्रस्तुत किया ।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 18 मई को उनके इस प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। तभी से लेकर भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के बीच में गरीब मजदूरों के नाम पर राजनीति शुरू हुई । 19 मई को प्रियंका गांधी के निजी सचिव संदीप सिंह ने अपर मुख्य सचिव गृह अवनीश कुमार अवस्थी को फिर पत्र लिख कर यह जानकारी दी कि कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ता 11.05 बजे से उत्तर प्रदेश के बॉर्डर के समीप ऊंचा नागला के पास बसों के साथ खड़े हैं। आगरा प्रशासन बसों को उत्तर प्रदेश की सीमा में प्रवेश देने की अनुमति नहीं दे रहा है। संदीप सिंह ने इससे पूर्व भेजे गए अपने पत्र में अवनीश अवस्थी को बताया था कि राजस्थान, दिल्ली से नोएडा और गाजियाबाद पहुंच रही है। बसों के परमिट दिलाने की प्रक्रिया चल रही है, इसमें कुछ समय लग सकता है । इसलिए उनका अनुरोध है कि तब तक उत्तर प्रदेश सरकार यात्रियों की सूची आदि अपडेट करके प्रियंका गांधी कार्यालय भेज दें ।

कांग्रेस और भाजपा की इस राजनीति में अपने को दरकिनार होने से बचाने के लिए समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने ट्वीट के माध्यम से अपने विचार प्रस्तुत किए । उन्होने बिना कांग्रेस का पक्ष लिए भाजपा सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार बसों के फ़िटनेस सर्टिफिकेट के बहाने प्रवासी मज़दूरों को सड़कों पर उत्पीड़ित कर रही है । भाजपा सरकार ख़ुद अपने फिटनेस का सर्टिफिकेट दे कि इस बदहाली में क्या वो देश-प्रदेश चलाने के लायक है । अब कहाँ हैं पूरी दुनिया में भारत की उज्ज्वल होती छवि का ढिंढोरा पीटनेवाले । उन्होने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनकी सरकार की काबिलियत पर ही सवालिया निशान लगा दिये । अपने दूसरे ट्वीट में उन्होने लिखा कि आम जनता को ये समझ नहीं आ रहा है कि जब सरकारी, प्राइवेट और स्कूलों की पचासों हज़ार बसें खड़े-खड़े धूल खा रही हैं, तो प्रदेश की सरकार प्रवासी मज़दूरों को घर पहुँचाने के लिए इन बसों को सदुपयोग क्यों नहीं कर रही है । ये कैसा हठ है? बस की जगह बल का प्रयोग अनुचित है । अपने इस ट्वीट में उन्होने स्कूल कालेजों की बसों का हवाला देकर कटाक्ष किया ।

समाजवादी पार्टी के प्रमुख राष्ट्रीय महासचिव प्रोफेसर राम गोपाल ने अपने ट्वीट में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री से अपील करते हुए लिखा कि मुख्यमंत्री योगी जी, जो श्रमिक कई राज्यों की सीमाओं को पार करके उत्तर प्रदेश की सीमा पर आगये हैं ,उनकी विवशता पर रहम करें और इन्हें बेरोकटोक अपने घर पहुँचाएँ। मजबूर मज़दूर लोगों के साथ मानवता प्रदर्शित कर राज धर्म का पालन करें। लेकिन भारतीय जनता पार्टी, केंद्र सरकार और प्रदेश सरकार ने उनके इस ट्वीट को नोटिस नहीं किया ।

अब सवाल यह पैदा होता है कि साधारण सी दिखने वाली प्रियंका गांधी की यह अपील राजनीतिक बवंडर में कैसे परिवर्तित हो गई। यह तो सही है कि न तो भाजपा और न ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ही यह चाहते थे कि सरकार के काम में कोई राजनीतिक दल श्रेय लेने की दृष्टि से दखल दे । दूसरी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को यह लगा कि इतनी बसों की व्यवस्था प्रियंका गांधी या पूरी कांग्रेस उत्तर प्रदेश में उनकी सरकार रहते हुए कैसे कर सकती हैं ? इसलिए उन्होने प्रियंका गांधी से उन्होने बसों की लिस्ट मांग ली । प्रियंका गांधी के निज सचिव की ओर से जो बसों की लिस्ट जारी की गई, वे सभी बसें राजस्थान की थी। उस सूची की जब उत्तर प्रदेश के अधिकारियों ने जांच की तो उसमें कुछ आटो और कुछ एंबुलेंस के नंबर मिले । साथ ही ड्राइवरों और क्लीनरों की जो लिस्ट प्रस्तुत की गई, उसकी भी जानकारी अपूर्ण थी। उत्तर प्रदेश सरकार या भारतीय जनता पार्टी जानती है, कि अव्यवस्थाओं को लेकर सवाल करना विपक्ष का अधिकार है। जब तक विपक्ष अव्यवस्थाओं को लेकर सवाल उठा रहे थे, तब तक वे चुप थे। जैसे ही एक हजार बसों का प्रकरण आया । उन्होने उसकी पूरी जानकारी और उसे चलाने वाले ड्रायवरों के लाइसेन्स आदि आवश्यक कागजात मांग लिए । बसों की परमिट और अन्य कागजात भी ।

इस प्रकरण ने जब तूल पकड़ लिया तो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस पर खुल कर राजनीति करने लगे। कहीं इसका लाभ उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार न मार ले जाए, इसलिए कांग्रेस के प्रवक्ताओं ने खुल कर अपनी प्रमुख महासचिव प्रियंका गांधी का पक्ष लिया। तमाम कोशिश की कि जनता को यह समझ मे आ जाए कि सरकार नहीं चाहती कि अपने घरों के लिए जा रहे प्रवासी मजदूरों को बसों से भेजा जाये । लेकिन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश के बाद उत्तर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू सिंह को पुलिस ने राजस्थान उत्तर प्रदेश बार्डर से हिरासत में ले लिया है।

इस दौरान उत्तर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और पुलिस अधिकारियों के बीच जम कर बहस हुई । अजय कुमार लल्लू ने कहा कि बॉर्डर पर हमारी 1000 बसें तैयार हैं। हमें जाने दीजिए, ताकि प्रवासी मजदूरों को उनके घरों तक पहुंचाया जा सके। यह कहते हुए कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अपने समर्थकों के साथ बीच सड़क में धरने पर बैठ गए थे। पुलिस ने सख्त कार्रवाई करते हुए उन्हें वहाँ से टांगकर किसी सुरक्षित स्थान पर ले गई। दूसरी ओर लखनऊ के आरटीओ ने कांग्रेस के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू व प्रियंका गांधी के निजी सचिव संदीप सिंह पर धोखाधड़ी का लिखित आरोप मढ़ते हुए हजरतगंज कोतवाली में अपराध संख्या 145/20 आईपीसी की धारा 420, 467, 468 के तहत एफआईआर दर्ज करा दी । उनका आरोप है कि, बसों की सूची की जांच में ऑटो, एंबुलेंस व बाइक के नंबर मिले। वहीं कुछ बसों के नंबरों की पुष्टि नहीं हो पाई। कुछ चोरी की बसें होने की भी आशंका है। यह कार्रवाई मुकदमा हुई है।

इसके बाद संघर्ष की कमान अपने हाथ में लेते हुए कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने ट्वीट कर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और उनकी सरकार पर हमला बोला । उन्होने अपने ट्वीट में लिखा कि यूपी सरकार ने हद कर दी है। अब राजनीति परहेजों के परे करते हुए त्रस्त और असहाय प्रवासी भाई बहनों की मदद करने का मौका मिला तो दुनिया भर की बाधाओं को सामने रख दिया गया। योगी जी इन बसों पर आप चाहें तो भाजपा का बैनर लगवा दीजिए। अपने पोस्टर बेशक लगवा दीजिए लेकिन हमारे सेवाभाव को मत ठुकराइए। इस राजनीति खिलवाड़ में तीन दिन बर्बाद हो चुके हैं। इन तीन दिनों हमारे देशवासी सड़कों पर चलते हुए दम तोड़ रहे हैं।

अगर हम इस प्रकरण पर राजनीति से बाहर रख चिंतन करते हैं, कांग्रेस और भाजपा दोनों को माध्यम मार्ग अपनाना चाहिए । जिन बसों के कागजात ठीक थे, उतनी बसे लेकर मजदूरों को उनके गंतव्य तक पहुंचाना चाहिए था। या समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने जो एक सुझाव स्कूली बसों का दिया है, उस पर विचार करना चाहिए । भूखे-प्यासे प्रवासी मजदूरों पर किसी को भी राजनीति नहीं करना चाहिए। उसके भले के लिए जो हो सकता है, अपनी क्षमता के अनुसार उनकी मदद करना चाहिए ।

प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव

पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट

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