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रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए नेचरोपैथी सबसे अधिक कारगर – प्रोफेसर (डॉ.) योगेन्द्र यादव

रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए नेचरोपैथी सबसे अधिक कारगर – प्रोफेसर (डॉ.) योगेन्द्र यादव
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इस समय पूरा विश्व कोरेना महामारी संकट से गुजर रहा है । इसकी कोई कारगर दवा या वैक्सीन न होने की वजह से सम्पूर्ण विश्व लॉक डाउन की स्थिति में है। हमारे देश भारत में भी देश के प्रधानमंत्री ने लॉक डाउन घोषित कर रखा है। इस समय लॉक डाउन का चौथा चरण चल रहा है। करीब दो महीने से पूरा देश अपने-अपने घरों में सिमटा हुआ है । देश की सारी गतिविधियां बंद हैं । सभी को घरों मे रहने के निर्देश जारी किए गए हैं। अब चौथे चरण में जाकर कुछ छूट दी गई । विश्व स्वास्थ्य संगठन और हमारे देश के स्वास्थ्य विभाग द्वारा समय - समय पर जारी गाइड लाइन के अनुसार कोरेना संक्रमण से उस व्यक्ति के संक्रमित होने की संभावना कम होती है, जिसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रबल होती है । अगर अच्छी रोग प्रतिरोधक क्षमता का व्यक्ति कोरेना वायरस से संक्रमित हो गया, तो उसे जल्द ठीक होने की संभावना भी होती है । इसलिए विश्व स्वास्थ्य संगठन और भारत के स्वास्थ्य विभाग व प्रदेश सरकारों ने रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए गाइड लाइन जारी कर रखी है और साथ ही समस्त नागरिकों से यह अपेक्षा की है कि सभी लोग इस गाइड लाइन का अनुपालन करते हुए अपनी, अपने परिवार के सदस्यों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने की दिशा में काम करेंगे । भारत सरकार के आयुष मंत्रालय द्वारा रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए निम्नलिखित गाइड लाइन जारी की गई है –

इम्युनिटी बढ़ाने के 11 उपाय-

1 - पूरे दिन गर्म पानी पिएं।

2- रोजाना योगासनों का अभ्यास करें। कम से कम 30 मिनट तक प्राणायाम और योगासन करें।

3- खाना पकाने में रोजाना हल्दी, जीरा, धनिया और लहसुन जैसे मसालों का इस्तेमाल करें।

4- रोजाना सबेरे एक चम्मच (10g) च्यवनप्राश का सेवन करें। डायबिटीज से पीड़ित लोग शुगरफ्री ज्यवनप्राश खाएं।

5- तुलसी, दालचीनी, काली मिर्च, सौंठ और मुनक्का का काढ़ा बनाकर दिन में एक या दो बार सेवन करें। इसमें जरूरत के अनुसार गुड़ या नीबू का रस मिला सकते हैं।

6- हल्दी मिला दूध पिएं। 150ml गर्म दूध में आधा चम्मच हल्दी मिलाएं। ऐसा दूध दिन में एक या दो बार पी सकते हैं।

उपाय-

7- तिल तेल या नारियल तेल या घी को दोनों नासिका छिद्रों में लगाएं। ऐसा दिन में एक या दो बार सुबह या शाम को करें।

8- एक चम्मच तिल तेल या नारियल तेल को मुंह में भरें। इसे दो-तीन मिनट तक मुंह में ही घुमाएं इसके बाद उगल दें। इसके बाद गर्म पानी से कुल्ला करें। ऐसा दिन में एक या दो बार करें।

आयुष मंत्रालय द्वारा जारी गाइड लाइन का अगर हम विश्लेषण करें, तो यह कह सकते हैं कि यह गाइड लाइन पूरी तरह से नेचरोपैथ पर आधारित है। अपने यहाँ आने वाले पीड़ितों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए एक कुशल नेचरोपैथ इन सभी का उपयोग करता है।

जिस व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता जितनी प्रबल होती है, वह उतना ही स्वस्थ माना जाता है, और आमतौर पर वह किसी भी बीमारी का शिकार नहीं होता है। अगर शिकार हो गया, तो थोड़े ही दिनों के इलाज में फिर से स्वस्थ हो जाता है । अच्छी रोग प्रतिरोधक क्षमता के व्यक्ति को सीजनल बीमारियाँ होती ही नहीं हैं।

अब सवाल यह है कि ऐसी कौन सी चिकित्सा पद्धति है, जो रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए सबसे अधिक कारगर सिद्ध हो सकती है । तो निश्चित रूप से सबसे पहला नाम नेचरोपैथी चिकित्सा पद्धति का ही लिया जाता है । क्योंकि आमतौर पर सभी रोगियों को ठीक करने के लिए एक कुशल नेचरोपैथ सामान्य इलाज के साथ-साथ उसकी इम्यूनिटी पावर बढ़ाने की दिशा में भी काम करता है ।

जब कोई व्यक्ति उस रोगी के पास जाता है, तो बातचीत और अपनी जांच के द्वारा वह यह जानता है कि उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कैसी है। रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए वह दो तरफा इलाज करता है । एक तो मरीज के शरीर में जमा जहरीले तत्वों को बाहर निकालता है, और दूसरा स्वास्थ्यवर्धक पदार्थों का संचयन करता है ।

एक कुशल नेचरोपैथ पीड़ित व्यक्ति की दिनचर्या को व्यवस्थित करता है। वह उसे भोर में उठाता है, और बासी मुंह ही एक गिलास गरम पानी पीने को देता है। और उससे कहता है कि वह उसे चाय की तरह मुंह में थोड़ी देर रखने के बाद पेट के अंदर जाने दे । इसके बाद उसकी क्षमता के अनुसार टहलने के लिए प्रेरित करता है । इससे लाल रक्त कणिकाओं में प्रचुर मात्रा में आक्सीजन संग्रहीत हो जाती है। इसके बाद उम्र के अनुसार व्यायाम और योग – प्राणायाम कराता है। इस क्रिया में करीब आधे घंटे समय लगता है । इससे शरीर में विद्यमान जहरीले पदार्थ निकलते ही हैं, शरीर की सारी मांसपेशियाँ और सभी अंग ठीक से काम करने लगते हैं। थोड़ी देर आराम करने के बाद रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए एक कुशल नेचरोपैथ पीड़ित व्यक्ति को ठंडे और गरम पानी से स्नान करवाता है। जिससे जहां एक ओर शरीर के सारे रंध्र साफ हो जाते हैं, वहीं पसीने के रूप में इन रंध्रों में जमा जहरीले पदार्थ भी बाहर निकल जाते हैं। जो एक स्वस्थ मनुष्य के लिए बहुत जरूरी होता है । इसके बाद वह पीड़ित व्यक्ति के शरीर के मांग के अनुसार अंकुरित अनाज और रात में भिगोए गए सूखे मेवे या उससे बने खाद्य पदार्थ नाश्ते में देता है। इसके बाद में या पहले एक गिलास प्राकृतिक उत्पादों तुलसी, दालचीनी, काली मिर्च, सौंठ और मुनक्का का काढ़ा आदि को एक निश्चित अनुपात में मिला कर सुबह –शाम काढ़ा पीने को देता है । इसमें वह अदरक का उपयोग जरूर करता है । अदरक शरीर को भी गर्म रखता है। इसमें प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट, आयरन, कैल्शियम और आयोडिन आदि तत्व अच्छी मात्रा होते हैं । जिससे रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ने के साथ शरीर से जहरीले पदार्थ निकालने में मदद मिलती है । जिससे पीड़ित खुद को ऊर्जावान और समर्थ अनुभव करता है । अगर किसी व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक कम है, तो उसे एक चम्मच च्वयनप्राश या अपने यहाँ निर्मित आंवले के चूर्ण और कुछ अन्य प्राकृतिक चीजों का मिश्रण खाने के लिए देता है। जो काफी बलवर्धक होती है । जिन लोगों को डायबिटीज़ होती है । उन्हें गुण या चीनी नहीं देता है। इसके बाद एक कुशल नेचरोपैथ दोपहर में सम्पूर्ण भोजन देता है। जिसमें उसकी शरीर की मांग के हिसाब से सभी खाद्य पदार्थों का संपुट होता है । एक कुशल नेचरोपैथ पीड़ित व्यक्ति के भोजन में किसी न किसी रूप में पालक का उपयोग करता है । इसमें विटामिन सी और ए प्रचुर मात्र में पाया जाता है । खाने में किसी न किसी रूप में इसका नियमित सेवन करने से इम्यूनिटी पावर बढ़ती है । एक कुशल नेचरोपैथ रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए कच्चे सलाद के साथ नीबू का उपयोग करता है । नींबू में विटमिन सी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है । जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता वृद्धि करने में सहायक होता है । साथ ही कई तरह के संक्रमण से भी रोगी को बचाता है ।

अपराहन में एक गिलास मौसमी फलों का रस या मौसमी फल खाने को देता है । रात में हल्का भोजन देता है और साथ में हल्दी मिला हुआ एक गिलास दूध पीने के लिए देता है। इसके साथ रात को सोते समय एक कुशल नेचरोपैथ अपनी देख रेख में एक – एक बूंद गाय का घी पीड़ित व्यक्ति के नासा छिद्रों में डालता है। यह क्रिया अगर सावधानी से नहीं की गई, तो नुकसान हो सकता है। इसलिए नाक में घी की बूंदे नेचरोपैथ की देख या बताए गए तरीके से ही डालना और उसके बाद के बताए गए ऐतिहात को सावधानीपूर्वक पालन करना चाहिए । इसके अलावा एक कुशल नेचरोपैथ इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए गिलोय और अश्वगंधा चूर्ण का उपयोग भी निश्चित मात्रा में करता है ।

इस प्रकार हम देखते हैं कि किसी भी व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए या एक स्वस्थ व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता को मेंटेन करने के लिए नेचरोपैथ से अधिक अच्छी कोई पद्धति नहीं है । इसलिए अगर किसी व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो, या वह अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता को मेंटेन रखना चाहता हो, तो उसे अपने नजदीक के किसी कुशल नेचरोपैथ से संपर्क करना चाहिए और उसके द्वारा बताए गए मार्ग पर चल कर अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाना या मेंटेन रखना चाहिए ।

प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव

पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट

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