भारतीय समाज को समझने के लिए ग्रामीण अध्ययन आवश्यक : प्रो. आशीष सक्सेना

वैश्वीकरण के इस दौर में भी भारतीय समाज को समझने के लिए गाँव का अध्ययन महत्वपूर्ण हैं। हम गांव के माध्यम से ही भारतीय समाज को समझ सकते हैं। इसके लिए आवश्यक है, कि समाजशास्त्र पुनः ग्रामीण चिंतन पर अपने अध्ययनों को केंद्रित करें, क्योंकि भारत की अर्थव्यवस्था कृषक समाज पर आधारित है। ग्रामीण क्षेत्र में परिवर्तन की प्रक्रियाओं के बाद भी गाँव एक विचारधारा के रूप में विद्यमान है, किंतु समाजशास्त्रीय अध्ययन के क्षेत्र में सन 2000 के बाद महत्वपूर्ण अध्ययन नहीं हुए जैसा कि 60 या 70 के दशक में हुए। आज आवश्यकता बदलते परिदृश्य के अध्ययन की है, इसलिए आवश्यक है कि ग्रामीण समाज के अध्ययन पर जोर दिया जाए।
उक्त वक्तव्य प्रो. आशीष सक्सेना, अध्यक्ष समाजशास्त्र विभाग, इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय, प्रयागराज ने समाजशास्त्र विभाग और यूजीसी-एचआरडी सेंटर, दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर द्वारा "रीसेंट ट्रेंड्स इन सोशल साइंसेज: पर्सपेक्टिव्स एन्ड मेथड्स" विषय पर आयोजित 14 दिवसीय पुनश्चर्या पाठ्यक्रम के अंतर्गत "इमरजिंग ट्रेंड्स इन विलेज स्टडीज इन इंडिया" विषय पर आयोजित विशेष व्याख्यान में दिया।
अपनी बात आगे बढ़ाते हुए प्रो. सक्सेना ने कहा कि कृषक समाज ही वस्तुतः हमारा ग्रामीण समाज है। वर्तमान सरकारें आज के ग्रामीण समाज को केंद्रित कर विकास योजनाओं का क्रियान्वयन कर रही हैं तो समाजशास्त्रियों को भी इस मुद्दे पर सचेत होकर ग्रामीण समाज विशेषकर कृषक समाज के अध्ययनों पर जोर देना होगा।
कार्यक्रम में अतिथि का स्वागत और विषय प्रवर्तन करते हुए प्रो. मानवेन्द्र प्रताप सिंह, अध्यक्ष, समाजशास्त्र विभाग, दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर ने कहा कि 50 और 60 के दशक में बड़े पैमाने पर समाजशास्त्र ग्रामीण अध्ययनों की ओर उन्मुख था और इन्हीं अध्ययनों से प्राप्त परिणामों के आधार पर ग्रामीण सामाजिक संरचना के अनुरूप देश में विकास की योजनाएं बनाई गईं। ग्रामीण समाज का अध्ययन आज भी उतना ही महत्वपूर्ण है, इसीलिए दी.द.उ. गोरखपुर विश्वविद्यालय का समाजशास्त्र विभाग ग्रामीण अध्ययनों पर विशेष रूप से बल प्रदान करता है।
तृतीय सत्र में प्रो. संगीता पाण्डेय, समाजशास्त्र विभाग, दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय ने "चेंजिंग पैराडाइम एंड इमर्जेंस ऑफ़ ग्रीन सोशल थ्योरी" के अंतर्गत तीन पैराडाइम डी.डब्ल्यू.डब्ल्यू., एच.ई.पी. एवं एन.ई.पी. की प्रमुख मान्यताओं को स्पष्ट करते हुए ग्रीन सोशल थ्योरी पर चर्चा किया और कहा कि किसी भी सिद्धांत का निर्माण मानवता के अनुरूप होना चाहिए। हमारी चिंता के केन्द्र में मानव ही नहीं बल्कि समस्त जीवधारी (स्पीशीज) हैं। ग्रीन थ्योरी के द्वारा ही संपोषणीयता को आधार मानकर संगठनों और संस्थानों को व्यवस्थित करना होगा। ग्रीन थ्योरी वर्तमान पीढ़ी के वर्तमान संदर्भ तक सीमित नहीं रखती बल्कि आने वाले पीढ़ियों को भी समायोजित करती है।
कार्यक्रम समापन के पश्चात अतिथियों का आभार ज्ञापन प्रो. हिमांशु पाण्डेय, निदेशक, एच.आर.डी. सेंटर ने किया। इस दौरान देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों के शिक्षक प्रतिभागियों की उपस्थिति रही।
प्रो. मानवेन्द्र प्रताप सिंह