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तबादला पर तबादला

तबादला पर तबादला
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महाराष्ट्र में ठाकरे सरकार का कामकाज शुरू हो चुका है. अन्य सरकार की तरह ठाकरे सरकार ने भी पदभार संभालते ही तबादले पर तबादले का खेल शुरू कर दिया. जब भी कोई नई सरकार आती है, तब पूर्व अधिकारियों को इसका-उसका समर्थक बताकर उनका तबादला किया जाता है. इस तरह के तबादलों से प्रशासनिक कामकाज प्रभावित तो होता ही है, साथ ही साथ अफसरों की मानसिकता पूरी तरह सरकार विरोधी बनने में देर नहीं लगती.

महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव के बाद फिर एक बार भाजपा और शिवसेना की सरकार बनने की संभावना थी. लेकिन शिवसेना ने अंतिम समय में जोर का झटका धीरे से देते हुए कांग्रेस और एनसीपी से हाथ मिलाया और खिचड़ी सरकार बना डाली. शिवसेना की ओर से मुख्यमंत्री की कमान स्वयं उद्धव बालासाहेब ठाकरे के संभालने से कांग्रेस और एनसीपी ने महाविकास आघाड़ी को न सिर्फ समर्थन दिया बल्कि उसमें शामिल होकर सत्ता में भागीदार भी हो गए. ठाकरे सरकार ने आते ही उन योजनाओं को ब्रेक लगाने का काम किया, जो उस वक्त के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के कार्यकाल में कार्यान्वित हुई थी. सबको लगा था कि मेट्रो-3 रद्द होगी, आरे में कारशेड नहीं बनेगा, लेकिन ठाकरे सरकार ने सोच के विपरीत क्रिया शुरू कर दी है. मेट्रो कारशेड को लेकर बनाई गई समिति की रिपोर्ट उनके पास पहुंच चुकी है. मेट्रो-3 काम का जायजा लेने स्वयं पर्यावरण मंत्री आदित्य रश्मि उद्धव ठाकरे के जाने से इसका मार्ग प्रशस्त हुआ है. महाराष्ट्र में एेसी कई सारी योजनाएं हैं, जो फडणवीस सरकार के दृष्टिकोण से सही हैं, लेकिन ठाकरे सरकार अपने चश्मे से उसमें सुधार लाना चाहते हैं, तो किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए. कोस्टल रोड की योजना को तेज गति मिल चुकी है और मेट्रो के अन्य मार्गों को रोकने का कोई सवाल ही उत्पन्न नहीं होता. यानी ठाकरे सरकार सरकारी कामकाज में बिना रुकावट बने आगे बढ़ चुकी है.

विकास कामों के अलावा इस पर देखरेख करनेवाले उन अधिकारियों का तबादला आनन-फानन में किया जा रहा है. जब ठाकरे सरकार बनी तब माना जाता था कि फलां-फलां अधिकारी दो-चार रोज में बदले जाएंगे. ठाकरे सरकार ने धीरे से उन्हें हटाया और जनाक्रोश से भी बच गए. कुछ एेसे अधिकारी भी हैं जिनके तबादले से आंशिक हायतौबा मचा था, लेकिन अधिक शोर नहीं हो पाया. इसके बावजूद तबादलों के चलते मौजूदा चलनेवाले विकास कामों या प्रशासनिक कामकाज, इससे कोई समझौता नहीं होना चाहिए.

एेसा न हो कि कल पुराने अधिकारी ही ठीक थे, यह कहने की नौबत न आ पड़े. तबादले प्रशासनिक आवश्यकता एवं मांग पर होते रहते हैं. तबादले होने भी चाहिए, लेकिन इन तबादलों में राजनीति कम सामाजिक दृष्टिकोण अधिक होना चाहिए. ठाकरे सरकार ने आनन-फानन में बड़े पैमाने पर जो तबादले किए हैं, उससे सरकारी अधिकारियों में डर का माहौल है. फडणवीस सरकार के कार्यकाल में पुराने अधिकारियों को मंत्रियों के कार्यालय में न लेने का जारी किया हुआ फरमान ठाकरे सरकार ने रद्द कर दिया. यानी कहीं न कहीं तो ठाकरे सरकार अधिकारियों के बीच संतुलन बनाने का प्रयास कर रही है. ताकि तबादलों के चलते अधिकारियों में रोष उत्पन्न न हो और उससे कामकाज प्रभावित न हो इसका भी ख्याल रखा जा रहा है.

हमारा तर्क है कि जरूरत न हो, वहां पर तबादले नहीं होने चाहिए, भले ही वह अधिकारी उनका विरोधी ही क्यों न हो. एेसे अधिकारियों के साथ संतुलन बनाकर कामकाज करने की चुनौती ठाकरे सरकार को स्वीकारनी चाहिए.

लेखक : अनिल गलगली





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