Janta Ki Awaz
लेख

अमर शहीद उधम सिंह जी की जयंती – जरा याद करो कुर्बानी

अमर शहीद उधम सिंह जी की जयंती  – जरा याद करो कुर्बानी
X

देश की आजादी के लिए हंसते-हंसते अपनी जान कुर्बान करने वाले शहीदों की एक लंबी फेहरिश्त मौजूद है। हम भारतवासियों को को कम से कम उनकी जयंती और शहादत दिवस पर अवश्य याद करना चाहिए, उनके प्रति श्रद्धा सुमन अर्पित करना चाहिए। सरदार उधम सिंह स्वतंत्रता संग्राम के एक ऐसे ही जांबाज नौजवान थे जिन्होंने हंसते-हंसते मौत को गले लगाया था। उधम सिंह का जन्म आज ही के दिन यानी 26 दिसंबर 1899 को पटियाला में हुआ था।

उधम सिंह ने 13 अप्रैल 1919 को हुए जधन्य जलियावाला बाग नरसंहार को अपनी आंखों के सामने घटित होते देखा था और वहां की मिट्टी को हाथों में लेकर बदला लेने की कसम खाई थी। जलियावाला कांड का बदला उनके जीवन का लक्ष्य बन गया था। वे लगातार ताक में रहे और आखिर 21 साल बाद 13 मार्च 1940 को उन्हें सफलता मिली। उन्होंने इंग्लैड की ज़मीन पर रायल सेंट्रल एशियन सोसाइटी की मीटिंग के दौरान भरी सभा में जलियावाला कांड के दोषी माइकल ओ डायर को गोली मारकर ढेर कर दिया था। वे एक किताब के अंदर रिवाल्वर छुपाकर ले गए थे। वे चाहते तो इस घटना को अंजाम देने के बाद वहां से निकल सकते थे लेकिन वे अपनी रिवाल्वर लहराते वहीं खड़े रहे। अपनी गिरफ्तारी दी और फांसी के फंदे पर झूल गए। दरअसल वे भारतीयों के आत्म-सम्मान को झकझोरना चाहते थे। उनके अंदर आजादी की आकांक्षा को जागृत करना चाहते थे।

उधम सिंह क्रांतिकारियों के संपर्क में रहते थे और अमर शहीद भगत सिंह को अपना गुरु और आदर्श मानते थे। उधम सिंह का जन्म पटियाला में एक साधारण परिवार में हुआ था। उनके पिता टहल सिंह एक रेलवे क्रासिंग के चौकीदार थे। लेकिन मात्र सात वर्ष की आयु में माता-पिता का साया उधम सिंह के सर से उठ गया। बड़े भाई मुक्ता सिंह के साथ उनका प्रारंभिक जीवन केंद्रीय खालसा अनाथालय में गुजरा। 1917 में बड़े भाई का भी देहांत हो गया। उधम सिंह दुनिया में अकेले रह गए। भाई के देहांत के एक साल बाद 1918 में उन्होंने मैट्रिक किया और अनाथालय छोड़ दिया। इसके एक साल बाद 13 अप्रैल 1919 को उनके जीवन को झकझोरने वाली घटना घटित हुई। वह बैसाखी का दिन था जब जनरल डायर के आदेश पर जलियावाला बाग के सभी दरवाजे बंद कर दिए गए और बाग में मौजूद निहत्थे लोगों पर अंधाधुंध गोलियां बरसाई गईं। देखते-देखते वहां हजारों लोगों की लाशें बिछ गईं। उनमें मासूम बच्चे, महिलाएं, बूढ़े, नौजवान सभी आयुवर्ग के लोग शामिल थे।

उधम सिंह भी बाग में मौजूद थे। उन्होंने अपनी आंखों के सामने इस भीषण अमानुषिक नरसंहार को देखा। उनका खून खौल उठा था और उन्होंने उसी समय बाग की मिट्टी उठाकर बदला लेने की कसम खाई थी। हालांकि भारी सुरक्षा के बीच रहने वाले डायर को मारना इतना आसान नहीं था। लेकिन वे इसी धुन में लगे रहे। उधम सिंह ने 1920 ईं में अमेरिका की यात्रा की। वहां बब्बर खालसा आंदोलन से जुड़े लोगों से मिले। भारत लौटने के बाद अमृतसर पुलिस ने उन्हें बिना लाइसेंस के पिस्तौल के साथ पकड़ा और चार साल के लिए जेल में डलवा दिया। जेल से छूटने के बाद भी पुलिस उनके पीछे लगी रही। कुछ दिनों तक वे नाम बदलकर अमृतसर में रहे। 1935 में कश्मीर में वे भगत सिंह की तस्वीर रखने के कारण संदेह के आधार पर गिरफ्तार कर लिए गए। 30 के दशक में वे इंग्लैंड चले गए और बदला लेने के सही मौके की ताक में रहने लगे। अंततः उन्हें 10 साल बाद मौका मिला। उन्होंने माइकल ओ डायर को गोली मारकर ढेर कर दिया। अदालती कार्यवाही के बाद 31 जुलाई 1940 को लंदन में ही उन्हें फांसी की सजा दे दी गई। उधम सिंह के क्रांतिकारी जज्बे को देशवासियों की तरफ से क्रांतिकारी सलाम।

Next Story
Share it