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नागरिकता संशोधन कानून का किसी भी धर्म से जुड़े भारतीय नागरिक से कोई लेनादेना नहीं है

नागरिकता संशोधन कानून का किसी भी धर्म से जुड़े भारतीय नागरिक से कोई लेनादेना नहीं है
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इस कानून का किसी भी धर्म से जुड़े भारतीय नागरिक से कोई लेनादेना नहीं है। जो लोग इसका विरोध कर रहे हैं वे भी इससे भलीभांति परिचित हैं। यह किसी भी भारतीय नागरिक को अनुच्छेद 14 के अधिकार से वंचित नहीं करता। ऐसा प्रतीत होता है कि विरोध करने वाले इस बात से कुपित हैं कि यह कानून पाक, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के मुस्लिम नागरिकों का निषेध करता है। क्या कोई भी राष्ट्र दूसरे देशों के नागरिकों को संवैधानिक गारंटी सुनिश्चित करने के लिए बाध्य है?

अनुच्छेद 14 युक्तियुक्त वर्गीकरण के लिए भी आधार प्रदान करता है

भले ही नागरिकता कानून का संशोधन छह समुदायों की बात करता हो, लेकिन असल में ये किसी धर्म विशेष के अनुयायियों से अधिक सताए गए लोगों के समूह हैं। सुप्रीम कोर्ट के और भी ऐसे निर्णय हैं जिनके अनुसार अनुच्छेद 14 युक्तियुक्त वर्गीकरण के लिए भी आधार प्रदान करता है। इन समुदायों को राहत पहुंचाने के केंद्र के निर्णय का दो कारणों से स्वागत किया जाना चाहिए। पहला तो यह कि भारत सदियों से ही सताए हुए वर्गों की शरणगाह रहा है। 12वीं शताब्दी में पारसियों का आगमन इस परंपरा की उम्दा मिसाल है।

चीन से भारत में आए तिब्बती शरणार्थियों के लिए देश के कई हिस्सों में बसावट

वहीं चीन के हमले के बाद 1959-60 के दौरान तिब्बत से तकरीबन 80,000 से अधिक शरणार्थियों का रेला भारत आया। उसके बाद से भारत में तिब्बती शरणार्थी लगातार आते रहे। धर्मशाला और कर्नाटक सहित देश के कई हिस्सों में उनकी बसावट के लिए केंद्र सरकार ने विशेष प्रावधान किए। भारत ने तिब्बती शरणार्थियों के मामले में जो किया उससे यही आभास हुआ कि इस्लामिक देशों से आने वालों को लेकर भी यही दस्तूर कायम रहेगा। यानी उन्हें भी देश के विभिन्न हिस्सों में बसाया जाएगा।

नए आव्रजकों के लिए एक मियाद तय कर दी गई

चूंकि इस संशोधन में 31 दिसंबर, 2014 की तारीख के रूप में एक मियाद तय कर दी गई है तो नए आव्रजकों को लेकर जताई जा रही चिंता पूरी तरह आधारहीन है। भविष्य में भारत आने वालों को इसका लाभ नहीं मिलेगा। इस तथ्य को भी अनदेखा किया जा रहा है कि यह संशोधन वर्ष 2015 और 2016 में आई केंद्र सरकार की कुछ अधिसूचनाओं का अनुवर्ती भी है।

31 दिसंबर, 2014 तक भारत आए हिंदू समुदायों को मिलेगी राहत

पहली अधिसूचना के अनुसार 31 दिसंबर, 2014 तक भारत आए इन छह समुदायों के लोगों पर पासपोर्ट अधिनियिम एवं विदेशी अधिनियम के दंडनीय प्रावधानों से राहत मिलेगी। यानी अगर उनके पास पासपोर्ट या अन्य दस्तावेज नहीं हैं तो उनके खिलाफ आपराधिक कार्रवाई नहीं की जाएगी। उनका प्रवेश एवं प्रवास नियमित माना जाएगा। इसके बाद केंद्र सरकार ने इन लोगों को दीर्घावधिक वीजा की सुविधा उपलब्ध कराई। इस लिहाज से नागरिकता कानून में संशोधन अनिवार्य हो गया था, क्योंकि इन अधिसूचनाओं के बावजूद नागरिकता कानून के तहत ये लोग अभी भी 'अवैध आव्रजक' बने हुए थे। जब तक यह संशोधन नहीं होता तब तक ये लोग भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन नहीं कर सकते थे।

बांग्लादेशी मुस्लिम विस्थापितों का हुआ वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल

असल मुद्दा यह नहीं कि ऐसा कानून अब क्यों लाया गया है, बल्कि सवाल यह पूछा जाना चाहिए कि यह काम पहले क्यों नहीं किया गया? आखिर कांग्रेस के लंबे शासनकाल में इन इस्लामिक देशों में इंडिक धर्मों के मतावलंबियों और ईसाइयों की दुर्दशा की ऐसी अनदेखी क्यों की गई? वहीं इतने वर्षों तक बांग्लादेशी मुस्लिम विस्थापितों को बढ़ावा देकर उन्हें वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल करने वाली कांग्रेस अब इस कानून का विरोध क्यों कर रही है?

कांग्रेस का रुख-रवैया मुस्लिम तुष्टीकरण से प्रेरित है

कांग्रेस का रुख-रवैया मुस्लिम तुष्टीकरण से ही प्रेरित है जबकि इसका उसे भारी खामियाजा ही भुगतना होगा। इतने लंबे अरसे तक देश की सत्ता पर काबिज रहने वाली पार्टी खुद के हाशिये पर चले जाने की हकीकत को पचा नहीं पा रही है। इस कानून के विरोधियों के लिए एकमात्र संवैधानिक विकल्प सुप्रीम कोर्ट है जहां वे इसे चुनौती दे सकते हैं। कांग्रेस पार्टी अपने मुख्यमंत्रियों को इस कानून को लागू न करने को लेकर जिस तरह उकसा रही है वह आग से खेलने जैसा ही है। इसके परिणाम भुगतने की जिम्मेदारी उसी की होगी।

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