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वेद और उपनिषद वही पढ़ा सकता है जिसके संस्कार में वेद हो...

वेद और उपनिषद वही पढ़ा सकता है जिसके संस्कार में वेद हो...
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बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय को लेकर छिड़े विवाद में यह समझना सबसे आवश्यक है, कि प्रो. खान की नियुक्ति केवल संस्कृत पढ़ाने के लिए नहीं हुई है। उनकी नियुक्ति 'संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय' में हुई है। वह संकाय जिसमें धर्म पढ़ाया जाता है।

हिन्दू विश्वविद्यालय में संस्कृत के दो संकाय हैं। एक वह जिसमें संस्कृत भाषा पढ़ाई जाती है, दूसरा संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय, जिसमें वैदिक संस्कार सिखाये जाते हैं।

प्रो. खान की नियुक्ति यदि केवल मेघदूत और अभिज्ञान शाकुंतलम पढ़ाने के लिए हुई होती तो कोई विवाद ही नहीं होता। प्रशासन अब से भी उनकी नियुक्ति 'कला-संस्कृत संकाय' में कर दे तो कोई दिक्कत नहीं होगी। संस्कृत कोई भी पढ़ा और पढ़ सकता है, पर वेद और उपनिषद वही पढ़ा सकता है जिसके संस्कार में वेद हो...

धर्म को धारण किया जाता है। जिसने सनातन धर्म को धारण ही नहीं किया, वह धर्म पढ़ा कैसे सकता है? वेद और उपनिषद केवल पुस्तकें नहीं हैं, संस्कार हैं। प्रो. खान कितने भी बड़े विद्वान हों, उनमें सनातन संस्कार नहीं हैं।

कुछ लोग कह रहे हैं फिराक गोरखपुरी(रघुपति सहाय) भी तो उर्दू पढ़ाते थे। यहाँ यह समझना होगा कि फिराक साहब 'ग़ालिब और मीर' पढ़ाते थे, कुरान और हदीस नहीं। कोई मुश्लिम छात्र किसी हिन्दू से कुरान नहीं पढ़ेगा। यह बुरा भी नहीं है, धर्म का ज्ञान वही दे सकता है जिसके पास उस धर्म के संस्कार हों।

मक्का शहर में गैर मुश्लिमों का प्रवेश तक वर्जित है। पारसियों के अग्नि मन्दिर में गैर पारसियों का प्रवेश वर्जित होता है। फिर हिन्दू विश्वविद्यालय के छात्र यदि अपने धर्म में किसी गैर हिन्दू का प्रवेश नहीं चाहते, तो इसका विरोध क्यों?

संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय के सभी छात्र और प्रोफेसर श्रावण पूर्णिमा के दिन श्रावणी उपाक्रम करते हैं, जहाँ सभी आचार्य और छात्र गङ्गा स्नान कर के वैदिक रीति से ब्रम्हा से ले कर अब तक के सभी आचार्यों का तर्पण करते हैं। क्या प्रो.खान यह कर पाएंगे? कहाँ से लाएंगे वे शिखा-सूत्र? कैसे करेंगे रुद्राभिषेक?

बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय का धर्म संकाय वह पीठ है, जो एक बहुत बड़े क्षेत्र में सनातन से जुड़े विवादों में निर्णायक बनता है। यदि दो पंचांगों में किसी तिथि को ले कर मतभेद है, तो उसी संकाय का कहा सही माना जाता है। हिन्दुओं के पर्व-त्योहार वहीं से तय होते हैं। फिर उस स्थान पर किसी गैर हिन्दू का प्रवेश कैसे हो सकता है? क्या लोग यह चाहते हैं कि हिन्दुओं के पर्व-त्योहार का निर्धारण कोई मुस्लिम करे? यदि कल प्रो. खान यह कहें कि कार्तिक पूर्णिमा के स्नान का कोई महत्व नहीं, तो उनको कोई कैसे चुनौती दे सकता है? यह तो सीधे-सीधे सांस्कृतिक आक्रमण है।

धर्मनिरपेक्षता राजनैतिक मामलों में तो सही हो सकती है, धार्मिक विषयों में नहीं। यदि कोई व्यक्ति स्वयं को धर्मनिरपेक्ष कहता है, फिर वह धर्म के विषय में बोल कैसे सकता है? धर्म के विषय में निर्णय का अधिकार धार्मिकों को है, विधर्मियों या धर्मनिरपेक्षों का नहीं...

भारत या किसी भी देश में साम्प्रदायिक सद्भाव तभी बिगड़ता है जब लोग एक दूसरे के आंतरिक विषयों में दखल देते हैं। सद्भाव के लिए आवश्यक है कि हम एक दूसरे का सम्मान करें, न कि उनमें जबरदस्ती घुसने का प्रयास करें। जब भी हम दूसरे के आंतरिक विषयों में प्रवेश करते हैं, तो कहीं न कहीं हम सम्बन्धों को खराब करने का ही प्रयास करते हैं।

बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के कुछ छात्र पिछले पन्द्रह दिनों से अनशन पर बैठे हुए हैं। उनकी सुनी जानी चाहिए। वे संस्कारी लोग हैं, धर्म पढ़ने गए हैं, उनके अन्याय नहीं होना चाहिए।

सर्वेश तिवारी श्रीमुख

गोपालगंज, बिहार

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