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दुर्गा का अवतार :आयरन लेडी - इंदिरा गाँधी

दुर्गा का अवतार :आयरन लेडी - इंदिरा गाँधी
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डॉ प्रमोद कुमार शुक्ला

भारतीय इतिहास की आयरन लेडी और अटल जी के शब्दों में देवी दुर्गा का अवतार इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान का इतिहास ही नहीं, भूगोल भी बदल दिया।

इतिहास के पन्नों में सन 1971 को पलटे तो पाते हैं कि इंदिराजी के इरादे पक्के थे, युद्ध का माहौल बनता जा रहा था सवाल ये था कि पहला हमला कौन करेगा। पाकिस्तान भारत की तैयारी का अंदाजा नहीं लगा पाया 3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी विमानों ने भारत के कुछ शहरों पर बमबारी करने की गलती कर दी। हमले की खबर मिलते ही इंदिरा सीधे मैप रूम पहुंची, जहां उन्हें हालात का ब्यौरा दिया गया।उस वक्त रात के 11 बज चुके थे। सेना के अफसरों से बैठक के बाद इंदिरा ने कैबिनेट बैठक बुलाई और फिर विपक्ष के नेताओं से मुलाकात कर उन्हें भी पूरे हालात की जानकारी दी। आधी रात हो चुकी थी जब इंदिरा ने ऑल इंडिया रेडियो के जरिए पूरे देश को संबोधित किया।

इंदिरा ने भारतीय सेना को ढाका की तरफ बढ़ने का हुक्म दे दिया।वहीं भारतीय वायुसेना ने पश्चिमी पाकिस्तान के अहम ठिकानों और हवाई अड्डों पर बम बरसाने शुरू कर दिये।भारत की तीनों सेनाओं ने पाकिस्तान की जबरदस्त नाकेबंदी की थी । 3 दिसंबर के हमले का जवाब भारत ने आपरेशन ट्राइडेंट शुरु करके दिया था ।चार दिसंबर, 1971 को आपरेशन ट्राइडेंट शुरू हुआ । भारतीय नौसेना ने भी युद्ध के दो मोर्चे संभाल रखे थे।एक था बंगाल की खाड़ी में समुद्र की ओर से पाकिस्तानी नौसेना को टक्कर देना और दूसरा पश्चिमी पाकिस्तान की सेना का मुकाबला करना।5 दिसंबर को भारतीय नौसेना ने कराची बंदरगाह पर जबरदस्त बमबारी कर पाकिस्तानी नौसैनिक मुख्यालय को तबाह कर दिया। पाकिस्तान पूरी तरह घिर चुका था। इसी बीच इंदिरा ने बांग्लादेश को मान्यता देने का एलान कर दिया

इंदिरा की इस घोषणा का मतलब था कि बांग्लादेश अब पाकिस्तान का हिस्सा नहीं बल्कि एक स्वंत्रत्र राष्ट्र होगा। भारत ने युद्ध में जीत से पहले ही ये फैसला इसलिए किया जिससे युद्धविराम की स्थिति में बांग्लादेश का मामला यूनाइटेड नेशन्स में लटक न जाए। उधर अमेरिका ने पाकिस्तान की मदद के लिए अपनी नौसेना का सबसे शक्तिशाली सातवां बेड़ा बंगाल की खाड़ी की तरफ भेज दिया जिसके जवाब में इंदिरा ने सोवियत संघ के साथ हुई संधि के तहत उन्हें अपने जंगी जहाजों को हिंद महासागर में भेजने के लिए कहा। इस तरह से दो महाशक्तियां अप्रत्यक्ष रूप से इस युद्ध में शामिल हो चुकी थीं। इंदिरा गांधी ने फैसला लिया कि अमेरिकी बेड़े के भारत के करीब पहुंचने से पहले पाकिस्तानी फौज को आत्मसमर्पण के लिए मजबूर करना होगा,जिसके बाद थल सेनाध्यक्ष जनरल सैम मानेक शॉ ने तुरंत पाकिस्तानी फौज को आत्मसमर्पण की चेतावनी जारी कर दी।

पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तान की सेना के कमांडर जनरल ए ए के नियाजी ने अमेरिका और चीन के दम पर सरेंडर से इंकार कर दिया, उस वक्त तक भारतीय सेना ढाका को 3 तरफ से घेर चुकी थी। 14 दिसंबर को भारतीय सेना ने ढाका में पाकिस्तान के गवर्नर के घर पर हमला किया, उस वक्त वहां पाकिस्तान के सभी बड़े अधिकारी गुप्त मिटिंग के लिये इकट्टा हुये थे । इस हमले से पाकिस्तानी फौज के हौसले पस्त हो गए।जनरल नियाजी ने तुरंत युद्ध विराम का प्रस्ताव भिजवा दिया,लेकिन भारतीय थलसेनाध्यक्ष सैम मानेकशॉ ने साफ कर दिया कि अब युद्ध विराम नहीं बल्कि सरेंडर होगा। मेजर जनरल जे एफ आर जैकब को इसकी जिम्मेदारी सौंपी गई। इसके बाद कोलकाता से भारत के पूर्वी कमांड के प्रमुख लेफिटेनेंट जेनरल जगजीत सिंह अरोड़ा ढाका पहुंचे। अरोडा और नियाज़ी एक मेज़ के सामने बैठे और 16 दिसंबर 1971 को दोपहर के 2.30 बजे सरेंडर की प्रक्रिया शुरू हुई।

पाकिस्तानी कमांडर नियाजी ने पहले लेफ्टिनेंट जनरल अरोड़ा के सामने सरेंडर के कागज पर दस्तखत किए और फिर अपने बिल्ले उतारे। सरेंडर के प्रतीक के तौर पर नियाजी ने अपना रिवॉल्वर जनरल अरोड़ा के हवाले कर दिया. पाकिस्तान के सरेंडर के साथ ही प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ये एलान कर दिया। भारत ने सिर्फ 14 दिन में पाकिस्तानी फौज को हथियार डालने के लिए मजबूर कर दिया और इस तरह इंदिरा ने पाकिस्तान को तोड़ दिया उसके दो टुकड़े कर दिए।

डॉ प्रमोद कुमार शुक्ला

समन्वयक ,राजीव गांधी स्टडी सर्कल ,गोरखपुर

संपादक (विचार), पूर्वा स्टार ( राष्ट्रीय पत्रिका )

पूर्व अध्यक्ष , NSUI , JNU unit New Delhi

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