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मुहर्रम माह : इंसानियत को जिंदा रखने का पर्व है मोहर्रम

मुहर्रम माह : इंसानियत को जिंदा रखने का पर्व है मोहर्रम
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अनवर खान की क़लम से कोटा,राजस्थान

मुस्लिम समुदाय का गमी पर्व, मुस्लिम समुदायों में इस माह का एक ख़ास महत्व होता है। ये माह किस तरह इंसानियत और ईमान को जिंदा रखते हुए खुद को क़ुर्बान करने तक की प्रेरणा देता है !

मोहर्रम इस्लामी साल का पहला महीना

इसे समझने के लिए सबसे पहले इसके इतिहास के पन्नों को देखना पड़ेगा, जब इस्लाम में खिलाफत यानी खलीफाओं का शासन था। मोहर्रम इस्लामी साल का पहला महीना है। इसे हिजरी संवत के नाम से भी जाना जाता है। हिजरी संवत का आगाज इसी महीने से होता है। अल्लाह के रसूल हजरत ने इस माह को 'अल्लाह का महीना' भी कहा है।

इसलिए मनाया जाता है मोहर्रम

एक वक्त ऐसा था जब बगदाद की राजधानी इराक में यजीद नाम क्रूर बादशाह का शासन हुआ करता था। लोग यजीद के नाम से खौफ खाते थे। साथ ही उसे इंसानियत का दुश्मन भी माना जाता था। ऐसे में पैगंबर मोहम्मद साहब के नवासे हजरत इमाम हुसैन ने जालिम यजीद के खिलाफ युद्ध का एलान कर दिया था।

सत्ता मद में मदहोश यजीद को यह गवारा न हुआ और उसने अपनी सत्ता कायम करने के लिए हुसैन और उनके परिवार वालों पर जुल्‍म किया और 10 मुहर्रम को उन्‍हें इबादत करते हुए धोखे से बेदर्दी से मौत के घाट उतार दिया।

इंसानियत को जिंदा रखने का पर्व है मोहर्रम

हुसैन रजि. का मकसद खुद को मिटाकर भी इस्‍लाम और इंसानियत को जिंदा रखना था। यह धर्म युद्ध इतिहास के पन्‍नों पर हमेशा-हमेशा के लिए दर्ज हो गया। हजरत हुसैन इराक के शहर कर्बला में यजीद की फौज से लड़ते हुए शहीद हुए थे। जिस महीने में हुसैन और उनके परिवार को शहीद किया गया था, वह मुहर्रम का ही महीना था। उस दिन 10 तारीख थी, मुहर्रम का महीना गम और दुख के महीने में तब्दील हो गया।

मोहर्रम खुशियों का त्‍योहार नहीं बल्‍कि मातम और आंसू बहाने का महीना है।

बाज लोग अलग अलग तरीको से अपनी आस्थाओ भावनाओं का इजहार कर हजरत इमाम हुसैन में अपनी श्रद्धा प्रकट करते है ।।

कई लोग हजरत इमाम हुसैन के रोजा मुबारक के प्रतीक के रूप में ताजिया बना निकालते है तो कई मरसिया पढ़ते हुए मातम का इजहार करते है !

मुहर्रम माह के दौरान शिया समुदाय के लोग मुहर्रम के 10 दिन काले कपड़े पहनते हैं। वहीं अगर बात करें मुस्लिम समाज के सुन्नी समुदाय के लोगों की तो वह मुहर्रम के 10 दिन तक रोज़ा रखते हैं। इस दिन हुसैन की शहादत को याद करते हुए सड़कों पर जुलूस निकाला जाता है और मातम मनाया जाता है।

घरों-मस्जिदों में होती है इबादत

मुहर्रम के दौरान कई जगह जलसों का भी आयोजन होता है जिन्हें यादगारे हुसैन नाम से आयोजित किया जाता है जिसमे बड़े उलेमाओ द्वारा हजरत इमाम हुसैन और उनके साथियों के साथ शहीद हुए खानदान के लोगो का जिक्र होता है --

कुल मिला मुहर्रम माह विकट हालातो में भी सब्र को सबसे बड़ा मानने की शिक्षा देता है राहे हक़ पर बातिल के आगे ना झुक खुद को क़ुर्बान करने तक का हौंसला देता है ।।

अनवर खान कोटा,राजस्थान





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