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काशी के कण-कण में शिव, शूलटंकेश्वर महादेव:- प्रेम शंकर मिश्र

काशी के कण-कण में शिव, शूलटंकेश्वर महादेव:- प्रेम शंकर मिश्र
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वाराणसी: कहते हैं काशी के कण-कण में शिव है और यहां की महिमा भी अनंत है काशी को मंदिरों का शहर कहा जाता है और यहां गलियों से सड़क तक कई ऐसे मंदिर हैं जिनकी पौराणिकता और महत्त्व पुराणों में मौजूद है।

यह काशी के पुरातन मंदिरॊ मॆ सॆ एक है। इस मंदिर का उल्लॆख " काशी खंड" मॆ भी मिलता है यह मंदिर मंडुवाडीह स्टेशन से लगभग 10 कि॰मी॰ दूर वाराणसी के दक्षिणी छोर ग्राम- माधोपुर मे स्थित है। शिवलिंग से बने अति भव्य इस मंदिर के एक तरफ "गंगा नदी" है। गंगा नदी यहीं से उत्तरवाहिनी होकर वाराणसी नगर मॆ प्रवेश करती है।, जो अपनी मूल सुन्दरता, पवित्रजल से वाराणसी को शुद्ध करती है। इस मंदिर मे भगवान शिव, शिवलिंग रूप मे विरजमान है। इस मंदिर मे बाबा हनुमान ,माता पार्वती, गणेश जी, कार्तिकेय जी के साथ बाबा नन्दी भी बिराजमान हैं ।यहाँ पर लोग मांगलिक कार्य एवं मुंडन इत्यादि मे भोले नाथ के दर्शन कॆ लिये आतॆ है। मंदिर के अंदर हवन कुंड है, जहाँ हवन होते है। कुछ लोग यहाँ तंत्र पूजा भी करते है। सावन महीने के माह में यहां बहुत बड़ा मनमोहक मेला लगता है।

मंदिर के पुजारी बताते हैं इस मंदिर का नाम पहले माधव ऋषि के नामपर माधवेश्वर महादेव था। शिव की आराधना के लिए उन्होंने ही इस लिंग की स्थापना की थी। यह बात गंगावतरण से पूर्व की है। गंगा अवतरण के समय भगवान शिव ने इसी स्थान पर अपने त्रिशूल से गंगा को रोक कर यह वचन लिया था कि वह काशी को स्पर्श करते हुए प्रवाहित होंगी।

साथ ही काशी में गंगा स्नान करने वाले किसी भी भक्त को कोई जलीय जीव हानि नहीं पहुंचाएगा। गंगा ने जब दोनों वचन स्वीकार कर लिए तब शिव ने अपना त्रिशूल वापस खींचा। तब यहां तपस्या करने वाले ऋषियों-मुनियों ने इस शिवलिंग का नाम शूलटंकेश्वर रखा।

इसके पीछे धारणा यह थी कि जिस प्रकार यहां गंगा का कष्ट दूर हुआ उसी प्रकार अन्य भक्तों का कष्ट दूर हो। यही वजह है कि पूरे वर्ष तो यहां भक्त दर्शन को आते ही है लेकिन जिन भक्तों की यहां दर्शन से पूरी होने वाली मनोकामनाओं के बारे में पता है वो सावन के महीने में दूर दराज से आते है।

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