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वह फील्ड में केवल एक खिलाड़ी बन कर नहीं, भारतीय स्वाभिमान का ध्वज बन कर उतरता था

वह फील्ड में केवल एक खिलाड़ी बन कर नहीं, भारतीय स्वाभिमान का ध्वज बन कर उतरता था
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बहुत पहले एक इंटरव्यू में वेस्टइंडीज के कथित महान बल्लेबाज विवियन रिचर्ड्स ने कहा था, " हम भारत में क्रिकेट खेलने नहीं आते हैं। हम भारत मे इसलिए आते हैं क्योंकि यहाँ की लड़कियाँ सुन्दर होती हैं।" यह भारतीय क्रिकेट टीम का वैश्विक अपमान था, जो किसी जमाने में वेस्टइंडीज, ऑस्ट्रेलिया जैसी टीमें हमेशा करती रहती थीं। पाकिस्तानी खिलाड़ियों द्वारा भारतीय खिलाड़ियों को गाली देने की कथाएँ भी खूब चर्चित रही हैं। ऑस्ट्रेलिया के पूर्व कप्तान स्टीव वा टॉस के समय अंपायर और विपक्षी कप्तान को इंतजार कराने के लिए जाने जाते थे। उस स्टीव वा को 2001 की टेस्ट सीरीज के एक मैच में टॉस के लिए दस मिनट इंतजार करा कर जब वह भारतीय कप्तान तिरछी कुटिल मुस्कान छोड़ते हुए बाहर निकला, तो उसदिन फील्ड में बैठे दर्शकों और रेडियो पर कमेंट्री सुन रहे करोड़ों स्रोताओं ने एक स्वर में कहा था, "भारतीय क्रिकेट का युग बदल चुका।"

जी हाँ! उन करोड़ों लोगों में एक हम भी थे, और भारतीय क्रिकेट का युग बदलने वाले उस महान बल्लेबाज का नाम था "दादा"!

दादा वो थे जो हाफ क्रिच में आ कर ऑफ साइड के ऊपर छक्का मारते थे, और हम वो थे जिसे यह याद होता था कि यह छक्का दादा का 128वाँ छक्का है। दादा वो थे जो मैच फँसने पर पैवेलियन में बैठ कर बार-बार अपने गले में लटके ताबीजों को चूम-चूम कर मन्नत मांगते थे, और हम वो थे जो मैच शुरू होते ही बरम बाबा से मन्नत मांगते थे कि आज यदि दादा की सेंचुरी लगी तो दस रुपये का लड्डू चढ़ाएंगे।

दादा अपने गगनचुम्बी छक्कों से अधिक अपने आक्रमक स्वभाव के लिए जाने गए। दादा अपने बल्ले से जितनी खूबसूरत कवर ड्राइव मारते थे, उससे अधिक खूबसूरती से विपक्षी टीम के मनोबल पर ड्राइव मारते थे।

दादा युग के महान खिलाड़ियों में सचिन, द्रविड़, लक्ष्मण आदि अपने शानदार खेल के कारण जाने गए, पर दादा अपने खेल से अधिक अपनी लंठई के लिए ख्यात हुए। लंठई ऐसी कि उनपर कई बार जानबूझ कर सचिन को रन आउट कराने का आरोप लगा। ये आरोप इस कारण सच लगते थे क्योंकि हर बार सचिन के आउट होने पर दादा मुह घुमा कर मुस्कुराते पाए गए। और वही दादा जब ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध संजय बांगर की गलती के कारण 82 रन पर आउट हो गए और भारत हार गया, तो दादा संजय बांगर का कैरियर खा गए।

पुराने दर्शकों को याद होगा कि कैसे श्रीलंका के विरुद्ध खेलते समय हर मैच में अनायास ही दो-तीन बार दादा के जूते का फीता खुल जाता था। फिर कैसे दादा श्रीलंकन विकेटकीपर कालूवितरना के पास जा कर उनसे फीता बाँधने का अनुरोध करते, और जब कालूवितरना झुक कर उनके फीते बाँधते तो दादा सर उठा कर खूब मुस्कुराते।

क्रिकेट के खेल में ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, पाकिस्तान, वेस्टइंडीज आदि देश तब अपनी अभद्रता और गालीबाजी के लिए जाने जाते थे, और भारत जाना जाता था अपनी सहनशक्ति, अपने गांधीवाद के लिए। वे दादा ही थे कि जिन्होंने टीम को सिखाया कि यदि कोई तुम्हारी माँ को गाली दे तो तुम उसकी नानी को गाली दो। यह दादागिरी थी।

2002 के एक मैच में भारत को हराने के बाद इंग्लैंड के कप्तान नासिर हुसैन ने जब दादा की ओर उंगली दिखाई, तो तीन महीने बाद दादा ने नेटवेस्ट ट्राफी के फाइनल की जीत के बाद नासिर हुसैन के सामने टीशर्ट लहरा कर जो उत्तर दिया, वह क्रिकेट का ही नहीं विश्व खेल जगत का इतिहास है। भारत को महेंद्र सिंह धोनी ने दो-दो बार विश्व कप की जीत पर झूमने का अवसर दिया है, पर जिसने 2002 की वह जीत देखी है वह जानता है कि वह अबतक की सबसे शानदार जीत थी। नेटवेस्ट की जीत सूखते आसाढ़ की पहली बारिश जैसी थी, जिसमें सब नहा उठे थे। आज भारत की टीम जिस आक्रमक स्वभाव के लिए जानी जाती है, वह दादा की देन है।

मैं धोनी का प्रशंसक इसलिए भी हूँ कि उन्होंने दादा को उनके अंतिम मैच में शानदार विदाई दी थी। तब धोनी ने मैच के अंतिम ओवरों में दादा को सम्मान देते हुए उन्हें कप्तानी सौंप दी थी। दादा भारत के पहले नियमित कप्तान थे जिन्हें फील्ड में पूरे सम्मान के साथ बिदाई दी गयी थी। उसदिन पूरी टीम ने दादा को अपने कंधे पर बैठा कर फील्ड का चक्कर लगाया और राजसी विदाई दी । दस नवम्बर दो हजार आठ का वह दिन, उसके बाद मैंने कभी कोई मैच पूरा नहीं देखा।

दादा का यह बड़ा फैन उनके बारे में बस एक बात समझ नहीं पाया, कि आखिर दर्शक दीर्घा में नगमा को देख कर दादा बोल्ड क्यों हो जाते थे।😊

आज दादा का बड्डे है। बहुत बहुत बधाई उन्हें... हम जैसे करोड़ों लोगों के हीरो सौरभ गांगुली को जन्मदिन की अनंत शुभकामनाएं।

सर्वेश तिवारी श्रीमुख

गोपालगंज, बिहार

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