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बढ़ते शहरीकरण के कारण जंगल कटे, हाथी मनुष्य पर आक्रमक हो गये

बढ़ते शहरीकरण के कारण जंगल कटे, हाथी मनुष्य पर आक्रमक हो गये
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असम, झारखण्ड समेत ऐसी कई जगहें, जो जंगल के करीब हैं उन जंगलों में बड़ी संख्या में हाथी या यूं कहें कि झुंड में हाथी पाये जाते है। यदि विगत कई वर्षों में आप गौर करें, तो आप पायेंगे कि जंगल से सटे शहरों में हाथी समूह के आतंक की घटना खूब बढ़ी हैं।शहर में घुसकर हाथी के झुंड का आतंक मचाना अब आम बात है। आये दिन हाथी का मनुष्य जाति पर आक्रमण, सुनने और देखने को मिलता है। गांव में घुसकर आदमियों समेत घर, खेत, खलियान आदि में हाथी समूह द्वारा बुरी तरह तांडव की घटनाएं अखबारों में छापी जाती हैं।

हाथी के बढ़ते आतंक एवं आक्रामक व्यवहार पर जो शोध किये गये उसमें चौंकने वाले तथ्य सामने आये। शोध में यह पाया गया कि बढ़ते शहरीकरण के कारण जंगल कटे, मानव समुदाय अपने स्वार्थ पूर्ति हेतु जंगल के परिधि में भीतर की तरफ कदम बढ़ाने लगा.. अपने लाभ के लिये हाथी को फायदे के रूप में देखना, उसको अपने वश में लाने के लिए उसके साथ दुर्व्यवहार आम बात हो गई। हाथी दांत को हासिल करने के लिए मनुष्यों द्वारा अत्याचार की घटना बढ़ी जिसके फलस्वरूप हाथियों को मानव प्रजाति से ही चिढ होने लगी, हाथी समूह मनुष्याकृति से ही नफरत करने लगा।

बात सिर्फ इतनी तक ही नहीं थी. हाथी मस्तिष्क पर मनुष्यों के व्यवहार ने इस कदर का नकारात्मक प्रभाव स्थापित किया कि हाथी के संततियों में भी अनुवांशिक स्थानान्तरण द्वारा नफरत एवं बदले की भावना का स्थानान्तरण होने लगा. जिसका परिणाम यह हुआ कि एक नवजात हाथी पैदा होते ही मनुष्याकृति के प्रति बदले की भावना लेकर धरती पर आने लगा. हाथियों के बच्चों के भीतर जेनेटिक ट्रासमिशन से 'बदले और नफरत' की भावना..उसको मनुष्य जाति का दुश्मन बना दिया.

यहां समझने वाली महत्वपूर्ण बात यह है कि आप केवल हाथी का सूढ़ सहलाकर या गन्ना खिलाकर हाथी को अपना साथी नहीं बना सकते। यदि आपने हाथी के साथ पूर्व में दुर्व्यवहार किया है तो आपको भुगतना भी पड़ेगा। क्योंकि जब भी दुर्व्यवहार का कोई पुराना चित्र हाथी के मस्तिष्क पर प्रहार करेगा तो आप उसके क्रोधाग्नि के शिकार होंगे संभव है कि आप उसके पैरों तलें कुचले भी जायें।

जीववैज्ञानिक यह भी बताते हैं कि बदला लेने में नागिन के बाद हाथी का ही नम्बर आता है।

रिवेश प्रताप सिंह

गोरखपुर

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