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मोहम्मद उस्मान ने बयान की शबे बरात की फजीलत!

मोहम्मद उस्मान ने बयान की शबे बरात की फजीलत!
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शबे बरात की फज़ीलत:- आने वाली रात इस्लामी साल के माह शाबानुल मुअज़्ज़म की पन्द्रहवीं रात है जिसे शब ए बरात कहा जाता है। शब ए बरात का मानी रिहाई या आज़ादी की रात इसलिए है क्यूंकि इस रात में बेशुमार गुनाहगार बंदे खुदा की बारगाह में सच्चे दिल से तौबा करने के बाद इबादत करके दोज़ख से रिहाई या आज़ादी हासिल करने में कामयाब हो जाते हैं।

इब्ने असाकर की रिवायत के मुताबिक पांच खास रातों (जुमे की रात, रजब माह की पहली रात, ईदुल फित्र की रात, ईदुलअज़हा की रात और शबे बरात) में मांगी गई दुआ रद्द नहीं होती है।इन रातों के साथ रमज़ान माह के आखरी अशरे की ताक़ (अविभाज्य) रातों में आने वाली क़द्र की रात को जो हज़ार माह से अफज़ल है छुपे होने की वजह से शामिल नहीं किया गया है।

शबे बरात में रहमते खुदाबंदी की तजल्ली आसमाने दुनिया में सूरज छुपने से लेकर वक्ते फज़र शुरू होने तक रोज़ी, रिज़्क, माल, औलाद, शिफा और तमाम तरह की भलाई मांगने वालों को मांगे से सिवा देने का ऐलान करती है।इस रात में बंदों के सालाना आमालनामे दफ्तरे आमाल में जमा करने व आइंदा साल मरने और पैदा होने वाले लोगों के नामों की फेहरिस्त बनाने का हुक्म भी फरिश्तों को दिया जाता है।इसी वजह से मोमिन बंदे इस रात में गुनाहों से तौबा और इबादत करके अपने आमाल नामे इबादत पर शुरू और इबादत पर बंद करने की कोशिश करते हैं।

इस रात में क़बीला बनु क़ल्ब की बकरियों के बालों की गिनती के बराबर गुनाहगारों का तौबा के ज़रिये बख्शा जाना और नबी ए करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम का जन्नतुल बक़ी क़ब्रिस्तान में जाना हदीस से साबित है।

किताब रोज़ुल इफ्कार में शाबान माह की 15 वीं रात में दो रकअत नफल पढ़ने का अज्र हज़रत ईसा को सफेद पत्थर के अंदर 400 बरस तक इबादत करने वाले आबिद की इबादत से अफज़ल बताया गया है।इसके अलावा इस माह में रखे जाने वाले तीन रोज़ों को पिछले गुनाहों का कफ्फारा बताया गया है।अल्लामा सुबकी के मुताबिक जुमे की रात की इबादत हफ्ते भर के, शबे बरात की इबादत साल भर के और शबे क़द्र की इबादत ज़िन्दगी भर के गुनाहों का कफ्फारा बन जाती है।

रिवायत में है कि हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने शाबान की तेरहवीं रात में अपनी उम्मत की शफाअत खुदा से चाही तो खुदा ने तिहाई उम्मत की, चौदहवीं रात में उम्मत की शफाअत चाही दो तिहाई उम्मत की और पन्द्रहवीं रात में उम्मत की शफाअत चाही तो पूरी उम्मत की शफाअत मंज़ूर कर ली सिवाए उनके जो खुद ही रहमते इलाही से दूर हो गुनाह के कामों में लग जाते हैं।

शबे बरात में जहां एक तरफ बेगिनती गुनाहगारों की आम माफी का ज़िक्र है वहीं दूसरी तरफ खुदा का शरीक ठहराने वाले, वाल्दैन के नाफर्मान, बुग्ज हसद कीना रखने वाले, क़ातिल, जल्लाद, नजूमी, फहश गाने बजाने वाले, शराबी, ज़ानी, मग़रूर, नाजायज़ वसूली करने वाले और रिश्तेदारों से ताल्लुक तोड़ने वाले लोगों को इस रात में भी रहमत से महरूम रहना बताया गया है।पता चला रहमत से महरूम लोगों के काम किस दर्जा बुरे हैं।शबे बरात हमें एक दूसरे से हुकूक व गलतियों की माफी मांगते हुए हर बुरे काम से तौबा करने के बाद ज़्यादा से ज़्यादा इबादत के पैगाम पर अमल करना भी सिखाती है।

रिवायत में है कि एक मर्तबा शबे बरात में जिब्रील फरिश्ते ने हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से सजदे में रखा सर उठवा कर कहा "मैंनें आज पहले आस्मान के दरवाज़े पर तैनात फरिश्ते को रुकू करने वालों, दूसरे आस्मान के दरवाज़े पर तैनात फरिश्ते को सजदा करने वालों, तीसरे आस्मान के दरवाज़े पर तैनात फरिश्ते को दुआ करने वालों, चौथे आस्मान के दरवाज़े पर तैनात फरिश्ते को खौफे खुदा रखने वालों, पांचवें आस्मान के दरवाज़े पर तैनात फरिश्ते को भलाई करने वालों, छठे आस्मान के दरवाज़े पर तैनात फरिश्ते को सवाल करने वालों और सातवें आस्मान के दरवाज़े पर तैनात फरिश्ते को अस्तगफार करने वालों की मुरादें पूरी होने का ऐलान करते देखा और सुना है"।

जिस तरह मोमिनों के लिए खुदा ने ईदुल फित्र और ईदुल अज़हा दो ईदें दी हैं उसी तरह फरिश्तों के लिए भी शबे क़द्र और शबे बरात दो ईदें इनायत की हैं।यह रात सिर्फ जागने की रात नहीं बल्कि इबादत और तौबा करने की रात है इसलिए इस रात में जितना ज़्यादा हो अल्लाह की इबादत करें या ज़िक्र की महफिल में शरीक हों।अगली सुबह को रोज़ा रखें लेकिन हर्गिज़ भी हुल्लड़बाजी, स्टंटबाजी, आतिशबाजी वगैरह गैर शरई या हराम कामों में शरीक न हों।ऐसा करने से बेहतर है कि आप इशां की नमाज़ बा जमात पढ़ कर सो जाएं और फिर फजर की नमाज़ बा जमात अदा कर लें तो यह भी पूरी रात इबादत में ही शुमार होगा।यहां पर यह बात भी बहुत ज़्यादा काबिले गौर है कि जिस रात भर की इबादत या ज़िक्र बगैरा से नमाज़ ए फज्र की जमात छूटती हो ऐसी शबेदारी भी न की जाए।

अल्लाह हम सबको शबे बरात की बरकतों से फैज़याब फर्माये।आमीन..... रिपोर्ट वारिस पाशा जनता की आवाज से बिलारी मुरादाबाद

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