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प्रतिबंधों से विश्व को धमका रहा अमेरिका (धीरेन्द्र कुमार दुबे)

प्रतिबंधों से विश्व को धमका रहा अमेरिका    (धीरेन्द्र कुमार दुबे)
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बीते वर्ष अर्जेंटीना में हुई जी-20 शिखर वार्ता के दौरान चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग और डॉनल्ड ट्रंप ने एक मीटिंग में फैसला किया कि एक-दूसरे के खिलाफ जो कर लगाने की घोषणाएं वे पिछले कुछ महीनों से कर रहे थे, उन पर एक मार्च, 2019 तक रोक लगा दी जाए। ट्रंप का कहना है कि अमेरिका और चीन के बीच व्यापार घाटे (जो कि 375 अरब डॉलर है) को कम करने के लिए चीन को अमेरिका से अधिक वस्तुएं आयात करनी चाहिए। इसके साथ अमेरिका ने चीन की बड़ी हाई-टेक कंपनियों पर यह कहकर प्रतिबंध लगाया है कि इन्होंने ईरान और उत्तर-कोरिया के साथ अपने व्यापारिक संबंध तोड़े नहीं हैं। यह जानते हुए कि अमेरिका और चीन एक-दूसरे पर आर्थिक रूप से निर्भर हैं, ट्रंप प्रशासन ने चीन पर आर्थिक युद्ध थोपने का मन बना लिया है।• ताकत का प्रदर्शन

पिछले 11 दिसंबर को चीन की बड़ी कंपनी हुआवी, जो कि एपल और माइक्रोसॉफ्ट का मुकाबला करती है, की टॉप ऑफिसर को अमेरिकी प्रशासन के इशारे पर कनाडा में यह कह कर गिरफ्तार कर लिया गया कि उनकी कंपनी ने ईरान के विरुद्ध लगाए प्रतिबंधों का उल्लंघन किया है। दरअसल 2014 में चीन ने एक फंड बनाने की घोषणा की थी ताकि सेमीकंडक्टर उद्योग में चीन 2025 तक पूरी तरह आत्मनिर्भर बन सके। अमेरिकी उप राष्ट्रपति माइक पेंस ने 4 अक्टूबर, 2018 को दिए एक भाषण में मांग की कि चीन को अपनी 'मेड इन चाइना 2025' आर्थिक योजना को समाप्त कर देना चाहिए। पेंस की मानें तो इस योजना से चीन 'दुनिया के अति आधुनिक उद्योगों जैसे रोबॉटिक्स, बायो टेक्नॉलजी और कृत्रिम बुद्धिमत्ता का 90 प्रतिशत हिस्सा नियंत्रित कर लेगा।' अमेरिका इन उद्योगों पर अपना एकछत्र प्रभुत्व जमाए रखना चाहता है। जहां तक अमेरिका की सैन्य ताकत का सवाल है, वह अपने बजट का 60 फीसद युद्ध की तैयारियों के लिए सुरक्षित रखता है। ट्रंप ने अपने से पहले राष्ट्रपति ओबामा की तरह मुखौटा नहीं लगा रखा। अपने कार्यकाल के अंतिम वर्ष 2016 में ओबामा ने 26171 बम विभिन्न देशों पर गिराए, जो कि प्रति घंटा 3 बम के बराबर है जिससे अधिकतर साधारण नागरिक मारे गए। फ्रांस और ब्रिटेन की मदद से ओबामा ने लीबिया को यह कहकर तबाह किया कि इसके नेता (गद्दाफी) के पास 'मासूमों' को कत्ल करने की योजना तैयार थी। जिन लोगों ने ओबामा की कार्ययोजनाओं का पर्दाफाश करने की सोची उनपर, विशेषकर जूलियन असांज और एडवर्ड स्नोडेन पर मुकदमे चलाए गए। ट्रंप ने ओबामा की छवि नहीं ओढ़ी। वह जो हैं, एकदम स्पष्ट हैं।

ओबामा की ही विदेश नीति को बढ़ाने के लिए ट्रंप ने जॉन बोल्टन को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार नियुक्त किया है। मध्य-पूर्व के देशों में आपसी युद्ध की स्थिति बरकरार रहे, इसकी गारंटी हैं बोल्टन, जो इजरायल और सऊदी अरब की सिफारिशों पर ही अमेरिका की विदेश नीति तैयार करते हैं। यही कारण है कि सऊदी अरब राजकुमार की नीतियों का पर्दाफाश करने वाले पत्रकार जमाल खशोगी की राजकुमार के इशारे पर इस्तांबुल में हुई हत्या पर ट्रंप चुप रहे। यह जघन्य अपराध अगर किसी भी अन्य राष्ट्र ने किया होता तो अमेरिका ने हाय-तौबा मचा दी होती, पर यहां प्रतिबंध तो दूर, अमेरिका सऊदी अरब को अरबों डॉलरों की मिसाइलों और बमों की सप्लाई जारी रखे हुए है जिनका इस्तेमाल सऊदी अरब यमन के निर्दोष नागरिकों की हत्या में कर रहा है। इसी तरह इजरायल द्वारा गाजा में निर्दोष फिलिस्तीनियों की हत्या का कोई जिक्र वाइट हाउस में नहीं होता। बीते साल नवंबर में गाजा पर बमबारी से कई मासूम फिलिस्तीनियों की हत्या की गई। फिर भी इजरायल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू के खिलाफ एक शब्द नहीं कहा गया जबकि सीरिया के राष्ट्रपति बशर-अल-असद को जंगली खूंखार जानवर के रूप में पेश किया जाता है।

2018 की एक बड़ी घटना थी ट्रंप और किम जोंग उन की मुलाकात। दो-तीन माह एक-दूसरे पर कीचड़ उछालने के बाद उत्तर कोरिया के किम जोंग और ट्रंप एक दूसरे से सिंगापुर में मिले, बातचीत के बाद दोनों में नाभिकीय कार्यक्रम पर सहमति बनी। इस वार्ता से एक संदेश विश्व भर के राजनीतिक हलकों में यह पहुंचा कि बिना नाभिकीय ताकत बने आप अमेरिका को वार्ता के लिए राजी नहीं कर सकते। रूस और चीन के बीच सैन्य समझौते के बाद अमेरिका की नींद उड़ी हुई है। विश्व एक नए शीत युद्ध की ओर अग्रसर है। एक ओर अमेरिकी गुट है तो दूसरी ओर चीन और रूस का गुट। फासिज्म का खतरा लैटिन-अमेरिका और एशियाई देशों तक सीमित नहीं रहा, इस वर्ष बड़े साम्राज्यवादी देशों में भी इसके संकेत दिखाई दे सकते हैं। हालांकि कुछ देश जैसे कि बॉलिविया, निकारागुआ, वेनेजुएला, क्यूबा, इक्वाडोर, जहां अब भी वामपंथी रुझान की सरकारें सत्ता में हैं, अमेरिकी नीतियों का विरोध कर रहे हैं।• खतरे में डॉलर

इस साल मार्च तक इंग्लैंड को ब्रेग्जिट लागू करना है। यूरोपियन यूनियन को फिक्र है कि कहीं बाकी देश भी धीरे-धीरे अलग न हो जाएं। ढाई दशक पहले शुरू हुई भूमंडलीकरण की व्यवस्था पर काले बादल छा रहे हैं। अमेरिका अब संरक्षणवाद की ओर झुक रहा है। उस पर कुल कर्ज 69 लाख करोड़ डॉलर का है जिससे आगामी वर्षों में डॉलर की अविश्वसनीयता बढ़ने वाली है। जापान और चीन में समझौता हो चुका है कि व्यापार में वे डॉलर के स्थान पर एक-दूसरे की मुद्राओं का लेन-देन करेंगे। ब्रिक्स देश भी इस पर राजी हैं। अमेरिका में 2008 में हुई आर्थिक मंदी जल्द ही वापस लौट सकती है। बहरहाल समस्याएं तो हैं, पर उनसे निपटने की इच्छाशक्ति कमजोर नहीं पड़ी है।

ओबामा ने दुनिया भर में जो कुछ मुखौटा लगा कर किया था, ट्रंप वही सब खुलेआम कर रहे हैं!

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