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नवार्ण मन्त्र रहस्य : प्रेम शंकर मिश्र

नवार्ण मन्त्र रहस्य : प्रेम शंकर मिश्र
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"ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाये विच्चे"

साधक जन ये जाने की इस मन्त्र का अर्थ क्या है ।

एक एक वर्ण का अर्थ लिख रहा हूँ ।

ऐं -------- यह ज्ञान प्रदात्री सरस्वती का बीज मन्त्र है । गुरु बीज मन्त्र भी है । इसे वाक् बीज भी कहते है । वाणी की अधिदेवता अग्नि है, सूर्य तेज रूप अग्नि ही है । सूर्य से ही दृष्टि मिलती है । दृष्टी सत्य की पीठ है । यही सत्य परब्रह्म हैं । इस प्रकार "ऐं" का उदय अग्नि है मणिपूर आयतन वाक् शक्ति का विशुद्धचक्र विकास जिह्लाग्र भाग है । इस मन्त्र का जापक विद्वान् हो जाता है ।

सरस्वती राहस्योपनिषद् , योग शिखोपनिषद् ग्रंथो मै इस बीज मन्त्र के विस्तार , प्रयोग एवं महत्त्व को देखा जा सकता है।

एषा सरस्वती देवी सर्वभूत गुहाशया ।

य इमां वैखरी शक्तिंयोगी स्वात्मनि पश्यति ।

स वाक् सिद्धम् वाप्नोति सरस्वत्या: प्रसादत: ।।

ह्रीं :----- यह माया का बीज मन्त्र है । इसका उदय आकाश से है । ह्रीं का सम्बन्ध श्रीं से है । वैसे तो ऐं, ह्रीं ,क्लीं तीनो ही सर्व कामप्रद बीज है । सभी का सभी चक्रों से सम्बन्ध है ।

अ + इ = ए, ए +अ = ऐ ।

अकारो सर्वावाक् सैवा स्पर्शनतरस्थोश्माभिर्व्यज्यमाना वह्वि नाना रूपा भवति (ऐतरेय) । अकार विशुद्ध सहस्त्रार में भी है । इसी अकार से ही सभी वर्ण बने है । ॐ में अकार ही मुख्य हैं ।

क्लीं :---------- इस बीज में पृथ्वी तत्व की प्रधानता सहित वायु तत्व है । क = जलपीठ मूलाधार आयतन , काम संकल्प जनक होने से स्वाधिष्ठान , अनाहत तथा आज्ञाचक्र से सम्बंधित है । और वाक् शक्ति का सम्बन्ध संकल्पों से होता है । अतः क्लीं का संबंध " ऐं " से है । क+ ल्+ ई + नाद बिंदु । क - जल है तो प्राण है । सुखार्थक है , प्राण ही वायु है , वायु का कारण आकाश है । प्राण स्वयं ब्रह्म है । कं, खं, प्राण तीनो ही ब्रह्मवाचक है ।

लं से पृथ्वी , पृथ्वी से अन्न , अन्न से मन , मूलाधार पृथ्वी है । अतः क जल से प्राण तप ल पृथ्वी से मन एवं प्राण + मन का विकास आज्ञाचक्र है । यही आनन्द का स्थान है । " आनन्दों ब्रह्मेति व्यजानत" प्राण का निवास ह्रदय है । प्राण ही परमात्मा है । परमात्मा ही प्रेम स्वरुप हैं । 'ह्रद्देशेsर्जुन तिष्ठती' ' सर्वस्य चाहं ह्रदि संनिविष्ट ' से सिद्ध ही है । ' आदित्यो वै प्राणा:' आदि प्रमाणों से सिद्ध है कि उक्त तीनो बीज परमात्मा वाचक है ।

चामुण्डा:------- माँ के आठ रूप ब्राह्मी, माहेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, वाराही, नारसिंही, ऐन्द्री, चामुण्डा नामो से उल्लेखित है । प्रव्रती का अर्थ चंड था निवृर्ति का अर्थ मुंड है । ये दोनों भाई है जो काम और क्रोध के रूप मै भी माने जाते है । पाणिनिजी के " चडी कोप तथा मुडी खण्डने " धातुओं से इसकी निष्पत्ति हुई है । इसकी संहारक शक्ति का नाम ही चामुण्डा है । जो स्वयं प्रकाशमान है । वे किसी आधार को लेकर प्रकाशित नहीं है, इसलिए इनका कोई वाहन भी नहीं बतलाया गया है । भगवान नारायण के सत्व गुण से प्रकट एवं सदैव विद्यमान रहने वाली शक्ति ही पराम्बा है ।

विच्चे :-------- विच्चे का अर्थ समर्पण या नमस्कार है अर्थात् ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती तथा सम्पूर्ण संकल्पों की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी और सम्पूर्ण कर्मो की स्वामिनी महाकाली स्वरुप में सच्चिदानन्द रूप ही है । उनके इस अभिन्न रूप को नमस्कार है । नमस्कार का अर्थ समर्पण है । व्याकरण में सम्प्रदान चतुर्थी का यही अर्थ है । इसी से नमः के यो में चतुर्थी का यही अर्थ है । इसी से नमः के यो में चतुर्थी होती है ।

संक्षेप में उक्त तीनो बीज ( ऐं ह्रीं क्लीं ) परमात्मा के वाचक है । सभी आकृतियां सत् तत्व में (काली रूप ) , सभी प्रितियां चित् तत्व में (महालक्ष्मी और सभी प्रितियां आनन्द तत्व ( महासरस्वती) में ही विवर्त है ।

यह है नवार्ण मन्त्र (ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडाये विच्चे ) का रहस्य । इसे गुरु की आज्ञा से विधि पूछकर विधिवत पुरुश्चरण करने से सभी प्रकार का लाभ प्राप्त किया जाता हैं ।

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