टूटना नाखून ही है...रिवेश प्रताप सिंह
ऐसे मुठ्ठी भर लोग हर कालखंड में पैदा होते हैं कि जब पूरा देश एक स्वर में डूबा हो तो उस वक्त उनके होठ, जिह्वा, तालु और कंठ में कुछ वक्राकार तरंगें मचलने लगतीं हैं। देश जिस वक्त श्रद्धांजलि में झुका रहता है तो उस वक्त वो आलोचना के पहाड़ पर बैठकर आलोचना के पत्थर लुढ़काते रहते हैं। दरअसल ऐसे लोग न तो लोकप्रिय होते हैं और न हकी किसी के प्रिय...
भोजन में एक-आध हरी मिर्च के सेवन करने के बाद मुंह से जब सी-सी की आवाज़ निकलती है तो हरि मिर्च को यह गलतफहमी हो जाती है कि पूरे भोजन में मेरा ही बोलबाला रहा क्योंकि मुंह से मेरी ही तो जयकार हो रही है... वो अलग बात है कि खाने वाले को सिर्फ यही अफसोस रहता है कि काश इस नामुराद को मुंह न लगाया होता तो भोजन का आनन्द कुछ और ही होता।
आज अटल जी के देहावसान के बाद पूरा देश शोक में डूबा है...हर देशवासी अपनी निश्चल भावनाओं को उनकी श्रद्धा में समर्पित कर रहा है..॥लेकिन आज भी कुछ मुट्ठी भर लोग... अपने व्यक्तित्व की वक्रता के साथ हाजिर हो गये। वे अटल जी के सागर जैसे विराट व्यक्तित्व और विशाल सार्वजनिक जीवन से सिर्फ कमियाँ ढूंढॅ रहें हैं।
सच तो यह है कि ऐसे लोग यदि ग्राम प्रधान भी चुन लिए जायें (वैसे यह भी उनके वश का नहीं) तो वे ग्राम के एक हज़ार व्यक्ति मे से पचास व्यक्ति को भी संतुष्ट नहीं कर पायेंगे. शौचालय वितरण में नाकों चने चबाने पड़ जायेंगे। ऐसे लोग अपने परिवार के सात सदस्यों के बीच, परिवार के आँखों की किरकिरी हैं। बगल का पट्टीदार उनके जान का दुश्मन बना बैठा है...लेकिन उन्हें अपने काबिलियत पर इतना गुमान की दुनिया श्रद्धांजलि में सिर झुकाये बैठी है और ये मुट्ठी भर लोग अपने नाखून से हीरा खुरचने का असफल प्रयास कर रहे हैं।
सनद रहे ! टूटना नाखून ही है॥
रिवेश प्रताप सिंह