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मुरादाबाद बिलारी..मुहम्मद उस्मान ने बताई लिबास की अहमियत!लिबास पहनावा या परिधान भी कहता है बहुत कुछ!

मुरादाबाद बिलारी..मुहम्मद उस्मान ने बताई लिबास की अहमियत!लिबास पहनावा या परिधान भी कहता है बहुत कुछ!
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खुदा की बनाई तमाम मखलूक में इंसान के अशरफ या श्रेष्ठ होने की एक वजह यह भी है कि उसने लिबास का इस्तेमाल शुरू किया।इन्सान ने लिबास को पहले अपनी शर्मगाह छुपाने, मौसमों के नुकसानदेह असरात से बचाने, लड़ाई में हिफाजत या जिस्म की ज़ीनत या आराइश के लिए पहना, बाद में अलग अलग मौका और पहनने वालों के हिसाब से लिबास अपनी बनावट और रंग ढ़ंग के जरिए लिबास खास हो गया।लिबास को बच्चों, बड़ों, औरतों, मर्दों के अलावा मज़हब या औहदों के हिसाब रिवायती पहचान मिली और समाज के जिस हिस्से से जो लिबास जुड़ गया आमतौर पर समाज ने उस लिबास को बदलना कुबूल नहीं किया।
अगर हम गौर करें तो बिंदी, मंगलसूत्र, सिंदूर, चूड़ी, मेहंदी बगैरा सुहागन औरतों की, दाढ़ी, जटा, जाफरानी कपड़े मज़हबी लोगों की, कुर्ता टोपी नेताओं और समाजसेवियों की, पगड़ी इज़्ज़त की, ज़ेबर मालदारी की और वर्दियां पुलिस या फौज़ की इलाका़ई तौर पर निशानी बन गए।छोटे बच्चों और दुल्हन को रंगीन चमकीले या भड़काऊ कपड़े पहनाकर घरवालों या शौहर को उनकी तरफ माइल किया जाता है लेकिन कुंवारी लड़कियों को सादा लिबास में समाज पसंद करता है।वैसे भी बदन का ढ़ंकना उसे अपना बताता है और उघाड़ना बदन पर दूसरों का हक तस्लीम करता है इसीलिए बदन दिखाऊ लिबास को बदचलनी और अश्लीलता की पहचान माना गया है।
जिस तरह पर्देदार लिबास या हिजाब औरतों को इज्जत की हिफाजत करने में मददगार होता है वैसे ही मज़हबी लोगों की दाढ़ी जटा सन्यासी कपड़े दूसरों की टोकाटाकी के डर से बहुत से गलत कामों को करने से रोकने में मददगार होते हैं।अच्छा लिबास या लिफाफा सोने को मिट्टी और मिट्टी को सोना बना कर पेश करने का हुनर अपने पास रखता है। सफेद रंग सबसे ज्यादा पाक साफ होने की वजह से सादगी और सच्चाई का निशान बन गया इसीलिए बेवा और मय्यत के कफन बगैरा के लिए सफेद लिबास समाज ने कुबूल कर लिया क्योंकि इन लोगों को अपने रंगीन पहनावे से किसी दुनिया वाले को अपनी तरफ माइल करने का मकसद बाकी नहीं रहता है।
इंसान ने भले ही जाफरानी या भगवा लिबास को कुर्बानी या त्याग, पीले लिबास को खुशी, काले को दुख, लाल को खतरे और हरे को रजामंदी की निशानी मानता हो लेकिन इन्सान के लिए हर ज़ाहिरी और कीमती लिबास से ज़रूरी उसके तक़्बे यानी सद कर्मों का लिबास है।जिस इन्सान के पास तक़्बा और परहेजगारी ना हो वो कितना ही अपने बदन को ढ़ंक कर रखे नंगा ही माना जाता है।.... रिपोर्ट वारिस पाशा जनता की आवाज से बिलारी मुरादाबाद
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