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किराये की कोख़ से जुड़े कुछ अनसुलझे सवाल - डॉ. मनीष पाण्डेय

किराये की कोख़ से जुड़े कुछ अनसुलझे सवाल - डॉ. मनीष पाण्डेय
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डॉ. मनीष पाण्डेय

किराये की कोख के व्यावसायिक उपयोग पर रोक लगाने सम्बंधी विधेयक को कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की अध्यक्षता में गठित मंत्री समूह की सिफारिशों के आधार पर तैयार इस विधेयक से देश में किराये की कोख के जरिये बच्चा पैदा करने की मौजूदा प्रवृत्ति पर भी लगाम लगाने का प्रयास किया गया है। हाल के कुछ वर्षों में भारत में किराये की कोख(सरोगेसी) के माध्यम से संतान पाने की प्रवृत्ति बढ़ी है। शाहरुख़ खान, आमिर खान और बिना विवाह के तुषार खान का सरोगेसी की सहायता से बच्चा पाने की घटना उनके सेलिब्रिटी होने के कारण चर्चा में थी लेकिन ऐसे बहुत से दंपत्ति हैं जो पैसे के बलबूते जैविक रूप से सक्षम होते हुए भी अपनी सुविधा और कष्ट से बचने के लिए सरोगेसी का दुरुपयोग करने लगे हैं। मंत्री समूह ने भारत को सरोगेसी का हब बनने पर भी चिंता व्यक्त की है। तमाम विदेशी भी क्लीनिकों के माध्यम से भारत में सरोगेसी का अनुचित उपयोग कर रहे हैं जिसपर रोक का प्रावधान करते हुए नेशनल सरोगेसी बोर्ड का प्रस्ताव भी विधेयक में दिया गया है। व्यावसायिक दुरुपयोग रोकने के साथ ही सरोगेसी के सामाजिक परिणामों पर भी गंभीरता से विचार करने की ज़रूरत है।भारतीय समाज बदलाव के बड़े निर्णायक और अनियमित दौर से गुजर रहा है, जहां तमाम पुरानी संस्थाएं और रीति रिवाज अपनी प्रासंगिकता खो रहे हैं या फिर उन्हे समाज नए से परिभाषित और स्वीकार कर रहा है| महाभारतकालीन नियोग और गर्भ प्रत्यारोपण प्रथा आज फिर से प्रासंगिक हो रही है,जिसे हाल तक का सभ्य समाज वर्जित मानता था| कोई भी सामाजिक प्रतिमान या मूल्य समय और समाज के सापेक्ष होता है और उसके बदलाव के साथ संबन्धित विचार प्रासंगिक अथवा गैर प्रासंगिक हो जाते हैं| भारतीय समाज भी इसका अपवाद नहीं है| सरोगेसी ऐसा ही एक मुद्दा है, जिसे समाज में लगातार स्वीकृति मिल रही है| यह स्वीकृति अनायास नहीं बल्कि जैविकीय समस्याओं के दबाव का परिणाम है| उदाहरण भी मौजूद है कि जब महाभारतकालीन कुरु साम्राज्य पर वंशविहीन होने का संकट खड़ा होता है, तब आज़ के विक्की डोनर की तरह महर्षि वेदव्यास से राजपरिवार की बहुएँ सहायता लेती हैं|आज़ पुनः यह परिघटना कानून और धीरे-धीरे समाज द्वारा मान्यता पा रही है| सोरोगेट टूरिज़्म की नई अवधारणा सामने गई है| कारण बहुत स्पष्ट है, दुनिया भर में परिवार नियोजन पर बहुत ध्यान दिया जाता है, लेकिन बंध्यापन का समाधान बहुत कम है| आज़ दुखद वैज्ञानिक सच्चाई है कि अनेकों उत्कट तनाव एवं पर्यावरण प्रदूषण के बीच जीने वाले बहुत से युवा जोड़े सफल सहवास क्षमता के बावजूद संतान उत्पादन में असमर्थ होते जा रहे हैं| लिहाज़ा उनकी कामना पूर्ति के लिए असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्निक नाम की तकनीकी से लैस फ़र्टिलिटी क्लीनिकों का इन

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