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ऐतिहासिक है रक्षाबंधन का इतिहास, भाई-बहनों को देते हैं रक्षा का वचन

ऐतिहासिक है रक्षाबंधन का इतिहास, भाई-बहनों को देते हैं रक्षा का वचन
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लखनऊ: 'बहना ने भाई की कलाई से प्यार बांधा है, प्यार के दो तार से संसार बांधा है।' 'भइया मेरे राखी बंधन को निभाना, भैया मेरे छोटी बहन को न भुलाना।' सुमन कल्याणपुरी और लता मंगेकशर द्वारा गाया गया रक्षाबंधन गीत भले ही बहुत पुराना न हो पर भाई की कलाई पर राखी बाँधने का सिलसिला सदियों पुराना है। हिन्दू श्रावण मास के पूर्णिमा के दिन मनाया जाने वाला यह त्यौहार भाई-बहन के प्यार का प्रतीक है। इस दिन बहनें जहां भाइयों की कलाई पर रक्षा का धागा बांधकर उनके सुख-समृद्धि एवं दीर्घायु की कामना करती हैं, वहीं भाई बहनों को रक्षा का वचन देते हैं।
रक्षा बन्धन का अर्थ है रक्षा के लिए कलाई पर बांधा गया सूत्र। यह रक्षा सूत्र कोई भी किसी के लिए बांध सकता है। सबसे पहले एक पत्नी ने अपने पति की कलाई रक्षा सूत्र बांध कर उसकी रक्षा की थी। इन राखियों में शुभ भावनाओं की पवित्र रिश्ता कायम होता है। यह धागा धन, शक्ति, हर्ष और विजय देने में पूरी तरह समर्थ माना जाता है। रक्षाबंधन का पर्व भाई और बहन के बीच प्यार के बंधन को मजबूत बनाती है एवं भावनात्मक बंधन को पुनर्जीवित करती है। इस दिन ब्राह्मण अपने पवित्र जनेऊ बदलते हैं और एक बार पुन: धर्मग्रन्थों के अध्ययन के प्रति स्वयं को समर्पित करते हैं।
यह सामाजिक और पारिवारिक एकबद्धता या एकसूत्रता का सांस्कृतिक उपाय रहा है। विवाह के बाद बहन पराये घर में चली जाती है। इस बहाने प्रतिवर्ष अपने सगे ही नहीं अपितु दूरदराज के रिश्तों के भाइयों तक को उनके घर जाकर राखी बाँधती है और इस प्रकार अपने रिश्तों का नवीनीकरण करती रहती है। भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में रक्षा बन्धन पर्व की भूमिका जन जागरण के लिये सहारा लिया गया। राष्ट्रकवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने बंग-भंग का विरोध करते समय रक्षाबन्धन त्यौहार को बंगाल निवासियों के पारस्परिक भाईचारे तथा एकता का प्रतीक बनाकर इस त्यौहार का राजनीतिक उपयोग किया था।
रक्षाबन्धन पर्व की शुरूआत कब से हुई इसके बारे में पुख्ता साक्ष्य उपलब्ध नहीं लेकिन यह सदियों पुराना त्यौहार है। भारतीय समाज में यह पर्व इतनी व्यापकता और गहराई से समाया हुआ है कि इसका सामाजिक महत्ता के साथ ही हमारी पौराणिक कथाओं, महाभारत में मिलता है और इसके अतिरिक्त इसकी ऐतिहासिक व साहित्यिक महत्ता भी उल्लेखनीय है। फिल्में भी इससे अछूते नहीं हैं। भविष्य पुराण में वर्णन मिलता है कि देव और दानवों में जब युद्ध शुरू हुआ तब दानव हावी होते नजर आने लगे। भगवान इन्द्र घबरा कर वृहस्पति के पास गये। वहां बैठी इन्द्र की पत्नी इंद्राणी सब सुन रही थी। उन्होंने रेशम का धागा मन्त्रों की शक्ति से पवित्र करके अपने पति के हाथ पर बांध दिया। संयोग से वह श्रावण पूर्णिमा का दिन था। लोगों का विश्वास है कि इन्द्र इस लड़ाई में इसी धागे की मन्त्र शक्ति से ही विजयी हुए थे। उसी दिन से श्रावण पूर्णिमा के दिन यह धागा बांधने की प्रथा चली आ रही है।
स्कन्द पुराण, पद्मपुराण और श्रीमछ्वागवत में वामनावतार नामक कथा में रक्षाबन्धन का प्रसंग मिलता है। भगवान विष्णु द्वारा राजा बलि के अभिमान को चकनाचूर कर देने के कारण यह त्योहार बलेव नाम से भी प्रसिद्ध है। मान्यताओं के अनुसार रसातल में जाने के बाद राजा बलि ने अपनी भक्ति के बल से भगवान को रात-दिन अपने सामने रहने का वचन ले लिया। भगवान के घर न लौटने से परेशान लक्ष्मी जी को नारद जी ने एक उपाय बताया। उस उपाय का पालन करते हुए लक्ष्मी जी ने राजा बलि के पास जाकर उसे रक्षा बांधकर अपना भाई बनाया और अपने पति भगवान बलि को अपने साथ ले आयीं। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी।
अनेक ग्रन्थ ऐसे हैं जिनमें रक्षाबन्धन के पर्व का विस्तृत वर्णन मिलता है। इनमें सबसे अधिक महत्वपूर्ण है हरिकृष्ण प्रेमी का ऐतिहासिक नाटक रक्षाबन्धन जिसका 1991 में 18वां संस्करण प्रकाशित हो चुका है। मराठी में शिन्दे साम्राज्य के विषय में लिखते हुए रामराव सुभानराव बर्गे ने भी एक नाटक की रचना की जिसका शीर्षक है राखी ऊर्फ रक्षाबन्धन। इतिहास के पन्नों में रक्षाबंधन की शुरुआत का सबसे पहला साक्ष्य रानी कर्मावती और सम्राट हुमायूं हैं। मध्यकालीन युग में राजपूत एवं मुस्लिमों के बीच संघर्ष चल रहा था। रानी कर्मावती चित्तौड़ के राजा की विधवा थीं। उस दौरान गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह से अपनी और अपनी प्रजा की सुरक्षा का कोई रास्ता न निकलता देख रानी ने हुमायूँ को राखी भेजी थी। तब हुमायूँ ने उनकी रक्षा कर उन्हें बहन का दर्जा दिया था। दूसरा उदाहरण अलेक्जेंडर और पुरू के बीच का माना जाता है। हमेशा विजयी रहने वाला अलेक्जेंडर भारतीय राजा पुरू की प्रखरता से काफी विचलित हुआ। इससे अलेक्जेंडर की पत्नी काफी तनाव में आ गईं थीं। उसने रक्षाबंधन के त्योहार के बारे में सुना था। सो, उन्होंने भारतीय राजा पुरू को राखी भेजी। तब जाकर युद्ध की स्थिति समाप्त हुई थी। क्योंकि भारतीय राजा पुरू ने अलेक्जेंडर की पत्नी को बहन मान लिया था।
इतिहास का एक अन्य उदाहरण कृष्ण एवं द्रौपदी को माना जाता है। कृष्ण भगवान ने राजा शिशुपाल को मारा था। युद्ध के दौरान कृष्ण के बाएँ हाथ की अँगुली से खून बह रहा था। इसे देखकर द्रौपदी बेहद दुखी हुईं और उन्होंने अपनी साड़ी का टुकड़ा चीरकर कृष्ण की अँगुली में बाँधा जिससे उनका खून बहना बंद हो गया। तभी से कृष्ण ने द्रोपदी को अपनी बहन स्वीकार कर लिया था। पचास और अस्सी के दशक तक रक्षाबन्धन हिंदी फिल्मों का लोकप्रिय विषय रहा। न सिर्फ 'राखी' नाम से बल्कि 'रक्षाबन्धन' नाम से भी कई फिल्में बनायीं गयीं। 'राखी' नाम से दो बार फिल्म बनी, एक बार सन 1949 में, दूसरी बार सन 1962 में, सन 62 में आई फिल्म को ए.भीम सिंह ने बनाया था, कलाकार थे अशोक कुमार, वहीदा रहमान, प्रदीप कुमार और अमिता। इस फिल्म में राजेंद्र कृष्ण ने शीर्षक गीत लिखा था 'राखी धागों का त्यौहार।' सन 1972 में एस.एम.सागर ने फिल्म बनायी थी 'राखी और हथकड़ी' इसमें आर.डी.बर्मन का संगीत था। सन 1976 में राधाकान्त शर्मा ने फिल्म बनाई 'राखी और राइफल।' दारा सिंह के अभिनय वाली यह एक मसाला फिल्म थी। इसी तरह से सन 1976 में ही शान्तिलाल सोनी ने सचिन और सारिका को लेकर एक फिल्म 'रक्षाबन्धन' नाम की भी बनायी थी। इस पर गाने भी खूब लिखे गये।
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