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समय का सदुपयोग ही सफलता की कुंजी

समय का सदुपयोग ही सफलता की कुंजी
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वासुदेव यादव
समय व परिश्रम का सही उपयोग ही सफलता की कुंजी है। समय का चक्र अपनी गति से चल रहा है। अक्सर इधर-उधर कहीं न कहीं, किसी न किसी से ये सुनने को मिलता है कि क्या करें ? समय ही नहीं मिलता। वास्तव में हम निरंतर गतिमान समय के साथ कदम से कदम मिला कर चल ही नहीं पाते और पिछड़ जाते हैं। समय जैसी मूल्यवान संपदा का भंडार होते हुए भी हम हमेशा उसकी कमी का रोना रोते रहते हैं, क्योंकि हम इस अमूल्य समय को बिना सोचे समझे ही खर्च कर देते हैं।
आजकल विकास की राह में समय की बरबादी ही सबसे बडा शत्रु माना जाता है। एक बार हाथ से निकला हुआ समय कभी वापस नहीं आ सकता है। हमारा बहुमूल्य वर्तमान क्रमशः भूत बन जाता है, जो कभी वापस नहीं आता। सत्य कहावत है कि बीता हुआ समय और बोले हुए शब्द कभी वापस नहीं आ सकते।
संत कबीर दास जी ने कहा है कि-
काल करै सो आज कर, आज करै सो अब।
पल में परलै होएंगी, बहुरी करोगो कब।।
सच ही तो है, किसी भी काम को कल पर नहीं टालना चाहिए क्योंकि आज का कल पर और कल का काम परसों पर टालने से काम अधिक हो जायेगा। बासी काम, बासी भोजन की तरह अरुचिकर हो जायेगा। समय जैसे बहुमूल्य धन को सोने-चाँदी की तरह रखा नहीं जा सकता क्योंकि समय तो गतिमान है, वह तो चलता ही रहता है। इस पर हमारा अधिकार तभी तक है। जब हम इसका सदुपयोग करें अन्यथा ये नष्ट हो जाता है। समय का उपयोग धन के उपयोग से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि हम सभी की सुख-सुविधा इसी पर निर्भर है। पं. चाणक्य के अनुसार- आजकल जो व्यक्ति जीवन में समय का ध्यान नहीं रखता, उसके हाथ असफलता और पछतावा ही लगता है। समय जितना कीमती और वापस न मिलने वाला तत्व है, उतना उसका महत्व हम लोग प्रायः नहीं समझते। परन्तु जो लोग इसके महत्व को समझते हैं वे विश्व पटल के इतिहास पर सदैव विद्यमान रहते हैं।

ऐसी कहावत प्रचलित है कि ईश्वरचन्द्र विद्यासागर समय के बडे पाबंद थे। जब वे कॉलेज जाते तो रास्ते के दुकानदार अपनी घडियां उन्हें देखकर ठीक करते थे। "गैलेलियो दवा बेचने का काम करते थे। उसी में से कुछ समय निकाल कर विज्ञान के अनेक आविष्कार कर दिये।" इसका आशय यह है कि प्रत्येक विकासशील एवं उन्नतशील लोगों में एक बात समान है- ''समय का सदुपयोग''। समय का प्रबंधन प्रकृति से स्पष्ट समझा जा सकता है। समय का काल चक्र प्रकृति में नियमित है। दिन-रात, ऋतुओं का समय पर आना-जाना है। यदि कहीं भी अनियमितता होती है तो विनाष की लीला भी प्रकृति सीखा देती है। समय की उपेक्षा करने पर कई बार विजय का पासा पराजय में पलट जाता है। उदाहरण के तौर पर नेपोलियन ने आस्ट्रिया को इसलिए हरा दिया कि वहाँ के सैनिकों ने पाँच मिनट का विलंब कर दिया था, लेकिन वहीं कुछ ही मिनटो में नेपोलियन बंदी बना लिया गया क्योंकि उसका एक सेनापति कुछ विलंब से आया। वाटरलू के युद्ध में नेपोलियन की पराजय का सबसे बडा कारण समय की अवहेलना ही थी। कहते हैं खोई दौलत फिर भी कमाई जा सकती है, भूली विद्या पुनः पाई जा सकती है, किन्तु खोया हुआ समय पुनः वापस नहीं लाया जा सकता, सिर्फ पश्चाताप ही शेष रह जाता है।
वर्तमान में समय के गर्भ में लक्ष्मी का अक्षय भंडार भरा हुआ है, किन्तु इसे वही पाते हैं जो इसका सही उपयोग करते हैं। जापान के नागरिक ऐसा ही करते हैं, वे छोटी मशीनों या खिलौनों के पुर्जों से अपने व्यावसायिक कार्य से फुरसत मिलने पर नियमित रूप से एक नया खिलौना, टार्च, मोबाईल, घड़ी या मशीनें बनाते हैं। इस कार्य से उन्हें अतिरिक्त धन की प्राप्ति होती है। उनकी खुशहाली का सबसे बडा कारण समय का सदुपयोग ही माना जा रहा है। गुरू स्वामी रामदास कहते थे कि-''जो मनुष्य वक्त का सदुपयोग करता है, एक क्षण भी बरबाद नहीं करता, वह बड़ा सौभाग्यशाली होता है।"

समय तो उच्चतम शिखर पर पहुँचने की सीढ़ी ही है। जीवन का महल समय की, घंटे-मिनटों की ईंट से बनता है। प्रकृति ने किसी को भी अमीर गरीब नहीं बनाया। उसने अपनी बहुमुल्य संपदा यानि की चौबीस घंटे सभी को बराबर बांटे हैं। मनुष्य कितना ही परिश्रमी क्यों न हो परन्तु समय पर कार्य न करने से उसका श्रम व्यर्थ चला जाता है। वक्त पर न काटी गई फसल नष्ट हो जाती है। असमय बोया बीज बेकार चला जाता है। जीवन का प्रत्येक क्षण एक उज्जवल भविष्य की संभावना लेकर आता है। क्या पता जिस क्षण को हम व्यर्थ समझ कर बरबाद कर रहे हैं। वही पल हमारे लिए सौभाग्य की सफलता का क्षण हो। आने वाला पल तो आकाश कुसुम की तरह है। इसकी खुशबु से स्वयं को सराबोर कर लेना चाहिए।फ्रैंकलिन ने कहा है तुम समय बरबाद मत करो, क्योंकि समय से ही जीवन बना है।
अंततः ये कहना अतिशयोक्ति न होगी कि, वक्त, समय और सागर की लहरें किसी की प्रतिक्षा नहीं किया करती है। हमारा कर्तव्य है कि हम समय का पूरा-पूरा उपयोग कर, ताकि अपनी मंजिल को नियत समय के अंदर ही पा सकें।
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