"शंखनाद"
कागज़ के आंकड़ों से क्या इतिहास बदल दोगे ?
घृणित अंश से क्या शौर्य परिभाष बदल दोगे ?
हम साधित हैं ,संयमित हैं ,व्यथित अपंग नहीं ,
कुत्तो की झुंड से सदियों के रंगे खास बदल दोगे ??
मैं कहता हूँ वार करो , आज ही आर पार करो
ये हर रोज का छिपा वार क्यों , खुला इकरार करो
मलेक्षो संग तुम हरम करो , करम की परवाह नहीं
ये भूमि कोई आम नहीं ,नपुंसक ना विचार करो ।
तुम किस भ्रम में अटके हो ? भारत से क्या हट के हो ?
तुम्हे पूज्य धरा ने सिंचा हैं फिर क्यों गैरो संग मटके हो ?
देशहित से बड़ा कोई मान नहीं ,सम्मान नहीं ,पहचान नहीं ,
जाती के दंश में डूबे तुम , क्यों देते व्यर्थ के झटके हो ?
सुनो ! सुनो ! इक बात सुनो , मेरी तुम औकात सुनो
ये जहर का किस्सा छोड़ चलो, मिलकर एक सौगात बुनो ,
विखंडन की कीमत पर ,कभी तुम होगे बुलंद नहीं ,
कुछ पाने की चाहत में कटने को मत खैरात चुनो ।।
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संदीप तिवारी 'अनगढ़'
"आरा"