सीतापुर के जाने माने स्तंभकार, जगदीश शुक्ला के निधन पर विशेष ...: आराध्य शुक्ल
BY Anonymous24 March 2018 6:24 AM GMT
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Anonymous24 March 2018 6:24 AM GMT
1988 की एक गर्म दोपहर बिसवां के तत्कालीन चेयरमैन रहे अब्दुल अतीक खान का एक अनुचर मुझे बुलाने आया ,उस दौर तक मै कई साप्ताहिक पत्रो में लेखन का काम करता था,चेयरमैन साहब के उस छोटे से कमरे में 2 लोग बैठे हुए थे उनका परिचय कराते हुए मुझसे कहा गया कि निस्पक्ष प्रतिदिन समाचार पत्र सीतापुर से शुरू होने वाला है आप बिसवां से उसकी ज़िम्मेदारी संभाले,मेरे लिए ये एक बड़ा अवसर था क्युकि ये वो वक़्त था जब मै लखनऊ से आते वक़्त बस स्टेशन पर शाम को प्रतिदिन देखता था और अपने पापा की मार्फ़त उसके संपादक जगदीश शुक्ल के बारे में काफी कुछ जानता था,बहरहाल प्रतिदिन से जुड़ाव हुआ और धीरे धीरे शुक्ला जी से मुलाकात और नज़दीकियां शुरू हुई,यंहा तक कि उसके स्थानीय संपादक यश चोपड़ा और शुक्ल जी का मैं सबसे विश्वासपात्र बन गया कोई भी महत्वपूर्ण रिपोर्टिंग होती तो मुझे ही भेजा जाता,सफ़र चलता रहा 1999 में नौकरी में आने के बाद तत्कालीन जिलाधिकारी विनोद शंकर चौबे ने पोलियो अभियान के एक मिशन पर हमें रामपुर मथुरा भेजा ,तो वंहा पहली बार जाने का एक उत्साह ये भी था कि उस ज़मीन का जा कर दर्शन करू जंहा शुक्ल जी ने जन्म लिया और सफलता के इन सिखरो को स्पर्श किया
शुक्ल जी के शिक्षक पिता अपनी जन्मभूमि मिसरिख को छोड़कर नौकरी के लिए रामपुर मथुरा गए फिर वंही के होकर रह गए ,एक छोटे से गाँव टिकथा को उन्होंने अपना ठिकाना बनाया ,घाघरा की लहरो के उन्ही किनारो के बीच 50 के दशक में शुक्ल जी का जन्म हुआ,ये वो दौर था जब ये इलाका काले पानी से कम नही था,नतीज़न प्रारम्भिक शिक्षा के बाद शुक्ल जी की शिक्षा आगे न हो सकी ,युवा होते ही पी आर डी जवान के रूप में उन्होंने अपनी सेवाएं देनी शुरू की और यही उनके रोज़गार का जरिया थी,,,,
लेकिन उस नवज़वान् की आँखों में एक अलग ही सपना पल रहा था जिसमे अभावो से जूझते लोगों की वेदना भी थी और शोषण का शिकार लोगो का दर्द भी शायद जनसेवा का सबसे सटीक जरिया अखबार ही हो सकता था जरा कल्पना करिये आज से 60 वर्ष पूर्व रामपुर जैसे गांज़री इलाके से अखबार की शुरवात,सिलसिला एक साप्ताहिक पत्र :शांतिदीप:से आरम्भ हुआ और महमूदाबाद होते हुए ये सफ़र सीतापुर मुख्यालय तक पंहुचा यंहा हरगोविंद वर्मा और के जी त्रिवेदी का साथ मिला जिसके बाद तेवरो में और पैनापन आया ,ये वो काल था जब डॉ अम्मार रिज़वी प्रदेश की सियासत के प्रखर सूर्य थे ,उनके यंहा महमूदाबाद में हुई एक दावत का समाचार कुछ इस तरह से प्रकाशित हुआ कि रातो रात डीएम ने छापाखाना खुदवा कर सरायन नदी में प्रवाहित कर दिया गया और शुक्ल जी ज़िला बदर कर दिए गए ये दौर भी आपातकाल का दौर था ,बेघर शुक्ल जी ने लखनऊ में अपना ठिकाना बनाया और यंही से उनके जीवन का सूर्य उदय होना आरम्भ हो गया ,सांध्य दैनिक ,निस्पक्ष प्रतिदिन*का प्रकाशन आरम्भ हुआ ,ये पत्र उस दौर में यूपी से प्रकाशित होने वाला पहला सांध्य दैनिक था ,पत्र ने लखनऊ को अपना केंद्र बनाते हुए पूरे प्रदेश की जनसमस्याओं को मुखरित करने का काम किया ,पत्र का सूत्र वाक्य बन गया:न काहू से दोस्ती न काहू से बैर:और कुछ ही बरसो में वो लखनऊ की पत्रकारिता जगत का सबसे समानित चेहरा बन गए,और कुछ ही दिनों बाद वो दौर आया जब प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की सरकार बनी उस दौर में यादव जी के साथ शुक्ल जी के इतने निकटतम सम्बन्ध थे कि cm के आवास के पोर्टिको में मुलायम सिंह के अलावा सिर्फ शुक्ल जी की ही कार खड़ा करने का अधिकार था ,उन्होनो जनता दल के टिकट पर शुक्ल जी को स्थानिय प्राधिकारी क्षेत्र से एमएलसी का चुनाव लड़ने का भी अवसर दिया लगभग वो चुनाव शुक्ल जी जीत ही गए थे लेकिन cm के प्रधान सचिव रहे नृपेंद्र मिश्रा की एक साज़िश के रहते वो अंतिम पलो में चुनाव हार गए,,
इधर शुक्ल जी जनभावनाओं के प्रतिनिध स्वर बनते जा रहे थे ,कलम के साथ ही उन्होंने भ्रस्ट नौकरसाहि के विरुद्ध जनहित याचिकाओं की भी सुरवात की और तब सियासतदानों और नौकरसाहि का गठजोड़ तैयार हुआ जिसने शुक्ल जी का तरह तरह से उत्पीड़न शुरू किया लेकिन शुक्ल जी ने तो जीवन में कभी झुकना तो सीखा ही नही था वो न टूटे और न ही झुके,प्रतिदिन का सफ़र चलता रहा साथ ही पत्रिका आखिर कब तक का भी प्रकाशन शुरू हुआ लेकिन शुक्ल जी को लगा की जनसेवा के लिए पत्रकारिता के साथ सियासत भी जरूरी है उन्होंने 2004 से 2009 के बीच पूरे ज़िले में मृतप्राय पड़ी कांग्रेस को नयी ज़िन्दगी देने का काम किया जब लोग पार्टी का झंडा लगाने में भी शरमाते थे उन्होंने बड़ी बड़ी जसनसभये की लेकिन जब लोकसभा टिकट का मौका आया तो उनका पत्ता कट गया हालांकि उस दौर में सोनिया जी ने उन्हें खुद बुलाकर चुनाव न लड़ने की अपील की और समायोजन का आश्वाशन दिया लेकिन स्वाभिमानी शुक्ल जी नही माने यही नही जिस कालखण्ड में प्रदेश में मायावती की सरकार थी उनके कैबिनेट सेक्रेटरी सशांक शेखर सिंह शुक्ल जी के परम मित्र थे लेकिन बावज़ूद इसके उन्होंने nhrm घोटाला उजागर करने के अलावा बाबूसिंह कुस्वाहा और नसीमुद्दीन के खिलाफ खुलकर मुहीम चलायी यही नही आईएएस विजय शंकर पाण्डेय और बादल चैतेरज़ि के खिलाफ भी उन्होंने खुलकर आवाज़ उठायी ,अभी कुछ ही दिन पुरानी बात है मुख्य सचिव दीपक सिंघल के खिलाफ उन्होंने संघर्ष का बड़ा बिगुल फूंका जिसके बाद उन्हें हटना भी पड़ा ,बड़े से बड़ा प्रलोभन भी उन्हें कभी डिगा नही सका सहारा के खिलाफ ये उन्ही की मुहीम थी कि आज ये कंपनी बुरे दौर से गुज़र रही है,
शुक्ल जी ने अपने जीवन में जो चाहा वो पाया ,सफलता की बड़ी ऊंचाइयों को स्पर्श किया सिवा इसके की सियासत में पद हसिल करने का उनका अरमान पूरा न हो सका शुक्ल जी ने किसी से डरना या झुकना तो कभी सीखा ही नही था,परिस्थितिया चाहे जितनी प्रतिकूल हो उनके चेहरे पर कभी तनाव या दबाव नही आया ,उन्होंने जीवन में हमेशा खुद अपने सिद्धान्त और नियम बनाये और उन्हें सही शाबित भी किया ,अपने लोगो के लिए लड़ने और उनका समर्थन करने का उनका अंदाज़ निराला था ,मुझ पर तो उनकी बड़ी कृपा थी 30 वर्षो का मेरा उनका अटूट सम्बन्ध रहा और कभी किसी ने मेरे प्रतिकूल अगर उनसे कुछ कहा तो शुक्ल जी ने अपने गार्डो से उसे कोठी के बाहर ही फिंकवा दिया,उनका जाना मेरे जीवन की अब तक की सबसे बड़ी व्यकिगत सामजिक क्षति है ,उनके बिना मै सच में बहुत बहुत अकेला और कमज़ोर हो गया हूँ ,उनके रहते अपने अंदर एक गज़ब का साहस और आत्मविश्वास रहता था,यूं तो शुक्ल जी करीब साल भर से थोडा थोडा बीमार चल रहे थे लेकिन अंदर से वो तभी टूट गए थे जब कुछ बरस पूर्व उनके प्रिय मित्र और साथी पुत्तु अवस्थी ये दुनिया छोड़ गए थे
जगदीश शुक्ल सीतापुर की शान आन बान सब कुछ थे उनके जाने से सब कुछ वीरान हो गया है ,वो एक ऐसे इंसान थे कि आप चाहे उनकी निंदा करे या उनकी स्तुति आप उनकी उपेक्षा नही कर सकते ,उनके रहते उनके विरोधियो को नींद नही आती थी और उनके जाने के बाद हम जैसे उनके न जाने कितने दीवानो की नींद अब हमेशा के लिए रूठ जायेगी
सीतापुर की धरती पर अब दूसरा जगदीश शुक्ला कभी पैदा नही होगा और न ही उनकी कमी कभी पूरी हो सकेगी
न जाने जीवन में कितने लोगो के लिए समय समय पर मैंने लिखा है लेकिन ये सच है कि प्रिय ज्ञानेश के बाद आज सबसे ज्यादा दुखी हूँ मै
ईश्वर मेरे जीवन के इस आदर्श को अपने श्री चरणों में स्थान दे ,,चंद्रलोक के निवासी मेरे भाई साहब चाँद के पार चले गए कभी वापस न आने के लिए ,,
नमन
आराध्य शुक्ल....
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