बेटी पे दिल ये चाहता मैं भी गज़ल लिखूं
BY Anonymous10 Jan 2018 2:36 PM GMT
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Anonymous10 Jan 2018 2:36 PM GMT
बेटी पे दिल ये चाहता मैं भी गज़ल लिखूं,बेटी बहन बहू या फिर मां की शकल लिखूं।
बेटी हो पैदा घर में तो आ जाती बरकतें,बेटी बगैर घर को फिर उजड़ा चमन लिखूं।
बेटा मदद को बाप की पैदा किया गया,है शक्ले रहमत बेटी खुदा की मदद लिखूं।
बेटी जो प्यार कर ले बिना मर्जी वाल्दैन,क्यूं इज़्ज़तों के नाम पे होती कतल लिखूं।
बेअक्ल बन के गलती छुपाने के नाम पर,ममता की मूर्ति तुझे कातिल हमल लिखूं।
शादी के बाद छोड़ना पड़ता है उसको घर,होती है कैसे बेटी घर से बे दखल लिखूं।
मां बाप भाई शौहर और बच्चों के साथ में,रिश्ते निभाए सारे क्यूंकर बे अक़ल लिखूं।
ससुराल में जले या वो फिर पेट में मरे,शैतान का जो ऐसा करे हम शकल लिखूं।
उस्मान बेटी के लिए खुद पूछता कलम,हम्दर्दियों के जज़्वों की वो है असल लिखूं।
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