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अथ श्री संपूर्णानन्द परीक्षाया प्रथमो अध्याय: असित कुमार मिश्र

अथ श्री संपूर्णानन्द परीक्षाया प्रथमो अध्याय: असित कुमार मिश्र
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भले ही चित्तौड़ की रानी नागमती विरह के खटिया पर लेटकर चिल्लाती रहें कि - "जेठ जरै जग चले लुवारा। उठहिं बवंडर परहिं अँगारा" लेकिन हमारे बलिया जिले में जेठ महीने के आगमन को मान्यता नहीं मिलती। लेकिन जैसे ही संस्कृत के आचार्यों की मांग पूर्ति से अधिक होने लगे और साल भर बंद पड़े रहने वाले संस्कृत विद्यालयों पर रौनक दिखने लगे तो जेठ के आगमन की प्रतिष्ठा हो जाती है। और इसी जेठ के महीने में जब कस्बे के देंहिगर जवानों की खोज होने लगे तो समझ जाना चाहिए कि संपूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय की उत्तमा मध्यमा शास्त्री और आचार्य की परीक्षाएं शुरू हो चुकी हैं।इसी बीच सिरीकिसुन पारबती को व्हाट्स ऐप करते हैं कि हमारा शास्त्री का परबेस पत्र आ गया है। उधर से पारबती उदासी वाली पांच स्टीकर ठोंक देने के बाद कहतीं हैं कि ए साल हम सेंटर पर परीक्षा देने नहीं जाएंगे। कापी आ पर्चा घर ही आ जाएगा। बाबूजी कहें हैं कि दू चार दिन बाद भी कापी जमा हो जाएगा।
इधर सालों साल झोले में चल रहे स्कूल को जमीन पर ढूंढ लेना आसान नहीं होता। कुछ विद्यालय तो टेंट तम्बुओं में 'चलता फिरता विद्यालय' बने शिक्षा में अमूल्य योगदान देते हैं। स्कूल के गेट पर ही प्रवेश पत्र चेक कर पता कर लिया जाता है कि कौन कौन दूसरे के जगह परीक्षा दे रहा है। उनका नाम 'परिवर्तन सूची' में डाल कर तीन हजार की शुल्क तय कर दी जाती है। जो अपने नाम पर देते हैं ऐसे 'अभागे' हजार डेढ़ हजार जो भी दे दें ठीक है। संभ्रांत और रसूखदार लोगों के घर के बच्चे स्कूल पर परीक्षा देने आते ही नहीं उनके घर कापी और हल खुद ब खुद पहुंच जाता है। स्कूल में ही कमरे में घूम घूम कर बीस रुपए की गाइड अस्सी रुपये में बेच देने वाले की भी नियुक्ति होती है। और सौ रुपए रोज पर सुविधा शुल्क वसूलने वाले पगड़ी बांधे जवान भी हर कमरे में लिस्ट लिए घूमते हैं। इन सबके बाद तीन घंटे की परीक्षा में साढ़े चार घंटे अक्षर अक्षर गाइड से मिलाकर लिखने पर कहीं पच्चासी नवासी पर्सेन्ट नंबर आते हैं।
बिहार में नकल से टाप करने वालों पर हंसी मुझे भी आती लेकिन एक घटना सुनाता हूँ - जैसा कि सभी जानते हैं कि शिक्षा की आधारशिला है प्राथमिक शिक्षा। और इसकी ट्रेनिंग है - बीटीसी। और बीटीसी में प्रवेश होता है मैरिट पर। और मैरिट कैसे बनता है ऊपर देख ही चुके हैं। कुछ साल पहले बलिया के जिलाधिकारी सेंथिल पांडियन सी डायट पर गए थे। वहां बीटीसी की काउंसलिंग चल रही थी जिस लड़की का पूरे जिले में पहला स्थान था उससे उन्होंने एक श्लोक पूछ लिया।
लड़की कुछ देर तक चुप रही फिर उसने साफ साफ कहा कि - हम ई कुल ना जानेनीं। जिलाधिकारी ने कहा - फिर इतना नंबर कैसे लाया?
लड़की ने कहा - हमार चाचा कापी लिखले बाड़न। हम थोड़े इम्तिहान देले रहनीं।
जिलाधिकारी महोदय ने माथा पीट लिया।
मैं कहीं से भी संस्कृत विद्यालयों की गरिमा पर प्रश्नचिह्न नहीं लगा रहा। न ही सबको ही ऐसा कह रहा हूँ। लेकिन आप किसी भी डायट पर बीटीसी करने वालों की लिस्ट देखिए आपको इसी विश्वविद्यालय के छात्र ज्यादा मिलेंगे। और बस उनसे आप शास्त्री (बी ए) के पेपर्स के नाम पूछ लीजिए।दो चार वाक्यों के संस्कृत में अनुवाद पूछ लीजिए। आपको पता चल जाएगा कि और कहाँ कहाँ दुबारा परीक्षा कराने की आवश्यकता है।
सच कहूं तो मैं एकदम दुबारा परीक्षा कराने के समर्थन में हूँ। लेकिन दस चोरों में गुनहगार वही क्यों जो पकड़ा गया?
आप हैरान रह जाएंगे जान कर कि उत्तर प्रदेश में एल टी का विज्ञापन दो साल पहले आया था और सात हजार रिक्त पदों के सापेक्ष आधी भर्ती भी नहीं हो सकी। और जो भर्ती हुए हैं उनमें सर्वाधिक इसी विश्वविद्यालय के छात्र हैं। अगर दुबारा परीक्षा हो जाए इनकी भी तो चौंकाने वाले नहीं, शर्म से आत्महत्या कर लेने वाले परिणाम आएंगे। कुछ सालों से नकल कराने के लिए भी ढंग के अध्यापक नहीं मिलते।
सैकड़ों की संख्या में ऐसे विद्यालय हैं जहाँ कभी भी एक कक्षा नहीं चलती। लेकिन वहाँ आचार्य हैं, वेतन मिलता है, शिक्षाधिकारी जांच भी करते हैं लेकिन सब ओके कैसे हो जाता है यह आप ही जानते हैं मैं नहीं।
बीटीसी और एल टी में जब तक शैक्षणिक अंकों के आधार पर प्रवेश होता रहेगा तब तक यहां नकल नहीं रुकेगी। आप दो बार नहीं दो सौ बार परीक्षा करा लीजिए।
अथ श्री संपूर्णानन्द परीक्षाया प्रथमो अध्याय: समाप्तो अभवत्। एक बार जोर से बोलिए श्री संपूर्णानन्द महाराज की - जय!

असित कुमार मिश्र
बलिया
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