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भाषा का सवाल... : असित कुमार मिश्र

भाषा का सवाल... : असित कुमार मिश्र
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कई दिनों से भोजपुरी और हिंदी में लड़ाई चल रही है। सुश्री भोजपुरी जी का कहना है कि मेरे पास मेरा साहित्य मेरे लोकधर्म मेरे लेखक विचारक सब हैं सबसे ज्यादा बोली जाने वाली बोली / भाषा मैं ही हूँ तो मुझे संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया जाए।
श्रीमती हिंदी जी का कथन है कि अगर भोजपुरी अलग हो गई तो मेरी ताकत कम हो जाएगी। जितने लोग आज हिंदी भाषी कहे जा रहे हैं वो अब भोजपुरी भाषी कहे जाएंगे। जो कबीरदास जी हिंदी के माने जाते हैं वो अब भोजपुरी के होकर रह जाएंगे।
यह लड़ाई पुरानी है लेकिन इधर वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय में भोजपुरी की पढ़ाई बंद कर देने से यह लड़ाई एक बार फिर सामने आ गई है। समस्या हम जैसे लोगों के साथ है कि हम भोजपुरी और हिंदी दोनों के हैं। तो अब किधर जाएं?
वैसे भी भाषा के नाम पर मुझे धूमिल की दो पंक्तियाँ याद आती हैं-
तुम्हारी मातृभाषा उस महरिन की तरह है
जो महाजन के साथ रात भर सोने को राजी है एक साड़ी के लिए।
खैर! ये सब छोड़िए। एक कहानी सुनाता हूँ बहुत पुरानी। मतलब मेरे जन्म से भी पहले की।
एक बार अकबर के दरबार में एक ऐसा आदमी आया जो बहुत सी भाषाएँ बोलता था। अंग्रेजी बोलता था तो लगता था कि इलियट का नाती है। संस्कृत बोलता था तो लगता था कि श्रीहर्ष के घर का है। चीनी बोलता था तो लगता था कि यांग सू चुंग का भाई है। उस आदमी ने अकबर से कहा कि अगर आपने दो घंटे में मेरी भाषा के आधार पर बता दिया कि मैं कहाँ का हूँ तो मैं आपके राज्य के हर व्यक्ति के खाते में पंद्रह लाख रुपये जमा करा दूँगा।
अकबर ने बहुत कोशिश की समझने की, लेकिन वह आदमी हर भाषा पर अधिकार रखता था। जिस भी देश की भाषा में बात करता था तो लगता था कि उसी देश का है।
हार थक कर अकबर ने अपना 'जियो मोबाइल' निकाला और अपने सांसद तथा प्रमुख सलाहकार बीरबल को फोन किया लेकिन नेटवर्किंग प्राब्लम से फोन नहीं लगा। इधर समय था कि बीतता जा रहा था। अकबर ने "दीन-ए-इलाही व्हाट्स ऐप ग्रुप" में बीरबल को ढूंढा लेकिन बीरबल वहाँ भी नहीं मिले।
एक विश्वासपात्र मंत्री से पूछा कि - ये बीरबलवा आजकल कहाँ रह रहा है जी?
मंत्री जी ने बताया कि - आजकल बीरबल "कट्टर हिंदू" नाम से ग्रुप बना कर उसी के एडमिन बने हुए हैं।
किसी तरह एक सचिव बीरबल के पास गया और कहा कि- राज्य की प्रतिष्ठा पर संकट आया है, जल्दी चलिए।
बीरबल ने खिसिया कर कहा - जाओ जाकर कह दो कि हम नहीं आएंगे। जब भी संकट आता है तो हम याद आते हैं। पिछले छह महीने से कह रहे हैं कि हम सांसदों का वेतन भत्ता बढ़ाइए,तो कोई नहीं सुन रहा है। पैक्स फैक्ड का चेयरमैन बनेगा कुमारस्वामी का भतीजा और इज्जत बचाएँ हम?
सचिव ने अकबर को बताया कि सांसद बीरबल जी 'असंतुष्ट' हो गए हैं। कहे हैं कि हम नहीं आएंगे।
अकबर ने कहा कि - बीरबल से कहो कि राशन कार्ड वाली सीडी मेरे पास पंद्रह दिन से रखी है। नहीं आएंगे तो उसे सार्वजनिक कर दिया जाएगा।
अंततः बीरबल दरबार में हाजिर होना पड़ा। और उन्होंने उस आदमी से बात की। बहुत देर तक बात की, लेकिन कुछ क्लीयर ही नहीं हो रहा था कि वो आदमी है कहाँ का।
अचानक बीरबल के दिमाग में एक आइडिया आया। उन्होंने जेब से छुरी निकाली और धीरे से उस आदमी के पीछे चुभो दी।
आदमी चौंक गया और चिल्लाया - "हरे तोरी बहिन की... का गड़वले हऽ रे सारे?"
बीरबल हँसने लगे और अकबर से बताया कि सर ये आदमी यूपी के बलिया जिले का है।
बाद में अकबर ने बीरबल से पूछा कि बताओ तुम कैसे जान गए कि वो आदमी बलिया का ही है?
बीरबल ने कहा कि - सर! जीवन के कार्यक्षेत्र में आदमी जितना भी अंग्रेज़ी- फारसी छाँट ले, लेकिन दुख-दर्द के समय अपनी ही मातृभाषा में चिल्लाता है। उस आदमी को भी दर्द हुआ तो उसकी प्रतिक्रिया उसकी मातृभाषा भोजपुरी में ही हुई।
यह तो रही कथा - कहानी की बात। सुना है कोलकाता विश्वविद्यालय में कोई हिंदी के प्रोफेसर साहब हैं जो भोजपुरी भाषी होकर भी भोजपुरी का विरोध कर रहे हैं। अचानक महाप्राण निराला की याद आ गई। जब उन्होंने ऐसे ही अवसर पर कहा था कि-" अब क्या मुझे प्रोफेसरों के बीच में छायावाद सिद्ध करना होगा" ?
वही मैं कह रहा हूँ कि क्या अब मुझे प्रोफेसरों के बीच भोजपुरी सिद्ध करनी होगी?
बताइए, आपकी बेटी जब विदा हुई थी तो आपके कंधे पर सिर धरे उसके आँखों से जो आँसू गिर रहे थे वो कौन सी भाषा के थे? बताइए उसके रुदन में जो गान था वो भोजपुरी थी कि नहीं? चौदह सितम्बर आ रहा है। याद रखिएगा मात्र दो सवाल पूछूँगा उस दिन आपसे। पहला - हिंदी राष्ट्रभाषा है कि नहीं? आपका जवाब हाँ में होगा तब भी, और ना में होगा तब भी मेरा दूसरा सवाल होगा कि - आपको शर्म नहीं आती? तब देखूँगा कि आपका जवाब क्या होता है?
बेशक हिंदी भोजपुरी की माँ है और भोजपुरी उसकी बेटी।लेकिन अब वह समय आ गया है जब आप उसके हाथ पीले कर घर से बाहर सृजन के लिए भेजिए ताकि कल को भोजपुरी भी कुछ और बेटियों को जन्म दे सके। आप कह रही हैं कि भोजपुरी के जाने से हिंदी कमजोर होगी? मतलब बेटी के जाने से माँ कमजोर होगी? क्या यह सोचना एक 'माँ' का सोचना है?
और कबीरदास हिंदी के होकर रहेंगे कि भोजपुरी के इसके जवाब में बताना चाहूँगा कि पाश का नाम सुना है न? वो पंजाबी भाषा के कवि थे, लेकिन सबसे ज्यादा पढ़े गए हिंदी में। लेखक या कवि किसी भाषा या क्षेत्र का नहीं होता। मुझसे तो आजतक Vivek Nirala भइया ने नहीं कहा कि- असित बाबू महाप्राण निराला सिर्फ़ मेरे बाबा हैं आप क्यों पढ़ते हैं उनको? आप भी वैसे ही कबीरदास को पढ़ते रहिए। कोई फर्क नहीं पड़ता उन पर। हर काल समय के अपने सत्य होते हैं कभी सुनीति कुमार चटर्जी ने हिंदी को रोमन लिपि में लिखने का सुझाव दिया था। आज फेसबुक और व्हाट्स ऐप पर देखिए आठवीं कक्षा का लड़का भी देवनागरी लिपि में आपको चित्रात्मक शैली और भावात्मक शैली समझा जाता है। ऐसे ही चटर्जी साहब का मत खारिज हो गया। आज का सत्य यही है कि वही भाषा जिंदा रहेगी जो रोजगार और संवाद से जुड़ी हो। सोनौली बार्डर से हर साल सैकड़ों नेपाली हमारे यहाँ स्वेटर हींग बेचने आते हैं वो पहले हमारी भाषा सीखते हैं क्योंकि उनको रोजगार करना है। वाराणसी के घाटों पर छोटे छोटे बच्चे अंग्रेज़ी फ्रेंच बोलते हैं क्योंकि विदेशी सैलानी आते हैं और भाषा उनके लिए संवाद का माध्यम है।
तो भाषा के नाम पर खटिया पर लेट कर लड़ाई मत कीजिए। भाषा में श्रेष्ठ सृजन कैसे हो यह सोचिए। भाषा में विज्ञान की पढ़ाई कैसे हो यह सोचिए। भाषा को रोजगार का माध्यम कैसे बनाया जाए यह सोचिए। फेसबुक पर किस किस भाषा में कौन बेहतर लिख रहे हैं उन्हें अकादमी से प्रकाशित कीजिए। याद रखिएगा कि किसी भी भाषा की कब्र पर दूसरी भाषा नहीं जन्मती। आप तो अंग्रेज़ी का विरोध कर रहे थे न और हिंदी को आज तक राष्ट्रभाषा का दर्जा तक नहीं दिला सके ।एक लकीर के सामने बड़ी लकीर बनने का उपाय लकीर मिटाना नहीं उससे बड़ी लकीर खींचना होता है। हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की माँग जरूर की जाए, लेकिन किसी विश्वविद्यालय में भोजपुरी की पढ़ाई बंद होने का प्रचंड विरोध भी उतना ही जरूरी है।

असित कुमार मिश्र
बलिया
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