Janta Ki Awaz
लेख

जेपी आंदोलन से क्यों डर गई थी इंदिरा गांधी

जेपी आंदोलन से क्यों डर गई थी इंदिरा गांधी
X

जेपी आंदोलन इमरजेंसी के ख़िलाफ़ जंग थी, जिसने नई राजनीति का जन्म दिया। इमरजेंसी में भारत का लोकतंत्र और निखरा।'


भारत की राजनीति को एक नई दिशा देने वाले जेपी आंदोलन की चर्चा अक्सर होती रहती है। आजादी के बाद जयप्रकाश नारायण को सरकार में शामिल होने कहा गया था। ऐसा कहा जाता है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने उन्हेंं गृह मंत्री का पद लेने के लिए कहा था। उन्होंने इनकार कर दिया। जयप्रकाश नारायण को आजादी के बाद जनआंदोलन का जनक माना जाता है। 1973 में देश में महंगाई और भ्रष्टाचार का दंश झेल रहा था। इससे चिंतित हो उन्होंने एक बार फिर संपूर्ण क्रांति का नारा दिया। इस बार उनके निशाने पर अपनी ही सरकार थी। सरकार के कामकाज और सरकारी गतिविधियां निरंकुश हो गई थीं। गुजरात में सरकार के विरोध का पहला बिगुल बजा। बिहार में भी बड़ा आंदोलन खड़ा हो गया। तत्कालीन मुख्यमंत्री अब्दुल गफूर ने छात्रों के संघर्ष को दबाने के लिए गोलियां तक चलवा दी थी। तीन हफ्ते तक हिंसा होती रही। सेना और अर्द्धसैनिक बलों को बिहार में मोर्चा संभालना पड़ा था। बताया जाता है कि जैसे-जैसे देश में जेपी का आंदोलन बढ़ रहा था, वैसे-वैसे इंदिरा गांधी के मन में एक अजीब-सा भय पैदा हो गया था। देश के हालत जिस तरह के हो गए थे उससे उन्हें लगने लगा था कि विदेशी ताकत की मदद से देश में आंदोलन चलाए जा रहे हैं और उनकी सरकार का तख्ता पलट कर दिया जाएगा।


जेपी अचानक किसी पुराने ब्रांड की तरह हमारी राजनीति में पुनर्जीवित होकर उभरते रहते हैं और ग़ायब हो जाते हैं। रामलीला मैदान की सभाएं उनका नाम लेकर किसी क्रांति का आग़ाज़ करने लगती हैं और ल्युटियन दिल्ली की ढलानों पर पहुंच कर सत्ता की बात करने लगती हैं।

जेपी को याद करना क्या इतना आसान है। कई दशक बीत जाने के बाद जेपी को अब एक मूर्ति के रूप में ही याद किया जा सकता है। उनकी संपूर्ण क्रांति को संपूर्णता में देखने का कहां वक्त है। कई पीढ़ियां बदल गईं तो इससे अच्छा है कि माल्यार्पण कर याद करने की रस्म अदा कर दी जाए।

पर लोकतंत्र के लिए सुखद है कि जेपी का नाम किसी न किसी बहाने लौटता रहे। असफल ही सही मगर आज़ादी के बाद के भारत में लोकतंत्र को लेकर जो सवाल उठे वो उन सवालों का पहला पड़ाव है।

जेपी को याद करने का मतलब है लोकतंत्र के सवालों को याद करना। नाकामियों को याद करने से सकारात्मकता आती है। सिर्फ सकारात्मकता की चासनी पसंद करने वाले वो धूर्त लोग होते हैं जो इसके नाम पर जीवन की सच्चाइयों को खत्म कर देना चाहते हैं। बी पोज़िटिव। लोकतंत्र का सबसे बड़ा ठगैत नारा है। उम्मीद का मतलब होता है उन सवालों से टकराना जिनके हल हमें खोजने हैं। उम्मीद का मतलब यह नहीं होता है कि हल खोजने से पहले समाधान के नारे लगाना।

Next Story
Share it