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नशे की गिरफ्त मे भारतीय की युवा पीढ़ी - अनिल कुमार पाल

नशे की गिरफ्त मे भारतीय की युवा पीढ़ी - अनिल कुमार पाल
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युवाओं के सुंदर भविष्य को नशा दीमक की तरह उन्हें चाट रहा है। धूम्रपान व शराब से लेकर हेरोइन, गांजा व नशीले कैप्सूलों के कारोबार का आज जैसे जाल सा बिछ गया है। नशे का आदी नवयुवक अपने शरीर से ऐसे खेलता नजर आ रहा है, जैसे उसके लिए जीवन का कोई महत्व ही न हो। जवानी का वेग युवाओं की मानसिक व शारीरिक क्रियाओं को तरंगित करता है। जोश का जुनून युवाओं की जीवन धारा को लय संग लक्ष्य की तरफ अग्रसर करता है। जीवन का यह चरण जिस प्रवाह की तरफ बढऩे का प्रयास करता है, वह जीवन की धारा को उसी प्रवाह के साथ अंतिम चरण की तरफ ले जाता है।

युवा इस ऊर्जा उमंग को श्रेष्ठ कार्यों में लगाएं, तो उसके सकारात्मक परिणाम परिलक्षित होते हैं। अगर वही युवा गुमराह होकर गलत कृत्यों को अंजाम दें, तो युवा ऊर्जा का स्रोत नकारात्मक परिणाम देकर घर-परिवार व समाज में शर्मिंदगी का ही भागी बनता है।

जीवन के इस चंचल चरण को हम जैसी दिशा प्रदान करेंगे, परिणाम स्वरूप उसके वैसे ही नतीजे सामने होंगे। वर्तमान परिवेश में युवाओं के सुंदर भविष्य को कलुषित करने के लिए नशा दीमक की तरह उन्हें चाट रहा है। नशे के विभिन्न प्रवाह सर्वत्र युवाओं को नशे की चपेट में ले रहे हैं। धूम्रपान व शराब से लेकर हेरोइन, गांजा व नशीले कैप्सूलों के कारोबार का आज जैसे जाल सा बिछ गया है। नशे का आदी नवयुवक अपने शरीर से ऐसे खेलता नजर आ रहा है, जैसे उसके लिए जीवन का कोई महत्त्व ही न हो। नशे की बढ़ती चाहत ने आज सामाजिक जीवन में युवाओं को भागीदारी पर जैसे प्रश्नचिन्ह लगा दिया हो। जहां-जहां नशे के पैर पसरते जा रहे हैं, वहां-वहां महामारी जैसा नशे का प्रभाव युवा संपदा को नष्ट-भ्रष्ट करता चला जा रहा है। कहीं युवा खुद-ब-खुद नशे की तरफ लालायित होते नजर आते हैं, तो कहीं नशे के कारोबारी बरबस ही उन्हें इस दलदल में धकेलते हुए अपने कारोबार को फैला रहे हैं। आज युवा चाहकर या न चाहते हुए इन व्यसनों के आसपास से गुजरता हुआ आगे बढ़ रहा है। इस आगे बढऩे की प्रक्रिया में युवा कहीं न कहीं नशे के विकराल जाल की चपेट से बच नहीं पाता। नशे का जहरनुमा प्रभाव युवाओं की रगों में जहर घोल रहा है।

ऐसे में उज्ज्वल भविष्य की तरफ बढ़ रहा युवा मनोवेग, उन्हें मंजिल पर पहुंचने से पहले ही ग्रसित व पथभ्रष्ट करता जा रहा है। युवाओं को नशे के दलदल में धकेलने के लिए उनके आसपास का वातावरण व समाज में उसके संगी-साथियों का भी हाथ रहता है। कहीं-कहीं व्यसन की लत पारिवारिक परिवेश से भी उसे उपहार स्वरूप मिल जाती है। अगर घर में कोई धूम्रपान व मदिरा का आदी है, तो उसकी देखा-देखी का प्रभाव भी युवा मन को उसके स्वाद लेने के लिए लालायित कर देता है। छोटे-छोटे व्यसनों का आदी होना बाद में घातक व्यसनों के सेवन की ओर धकेलता है। घर में जब युवा व्यसनों में डूबते नजर आने लगते हैं, तब पारिवारिक सदस्य अपना माथा पीट लेते हैं। उन्हें पता भी नहीं चलता कि यह कब और कैसे हो गया। हालांकि बहुत से नवयुवक इससे हटकर अपना साफ-सुथरा व्यसन मुक्त मार्ग चुन लेते हैं, परंतु इसकी प्रतिशतता बहुत कम है। स्कूलों, कालेजों व शिक्षण संस्थानों की गरिमा को प्रभावित करने के लिए नशे के कारोबारी मुफीद जगह मानते हैं, क्योंकि उन्हें पता है कि युवा बुद्धि जाने-अनजाने में जल्द बहक जाता है।

अत: नशे के कारोबारी इन्हें संवेदनशील लक्ष्य के रूप में निर्धारित करते हैं। नशे के कारोबारी शृंखलाबद्ध तरीके से उन्हें अपने जाल में फंसाते हुए अपने लक्ष्य में कामयाब हो जाते हैं। आज प्रदेश में सक्रिय नशे के दलाल नवीन तकनीकों का सहारा लेते हुए युवाओं को बरगला रहे हैं।युवाओं को आकर्षित करने का उनका ढंग क्रूरता की सारी हदों को पार करता जा रहा है। वे जरा भी संकोच नहीं करते कि उनके इस विषैले कृत्य से असंख्य परिवारों व युवाओं का सर्वनाश होता जा रहा है। नशे के दलाल मोटी कमाई के लालच में आज पड़ोसी राज्यों की सीमाओं से होते हुए इस धंधे की जड़ें प्रदेश की जमीन पर फैलाने का प्रयास जारी रखे हुए हैं। इसमें तनिक भी संदेह नहीं है कि पुलिस बल के सक्रिय दल समय-समय पर उन पर शिकंजा कसते रहते हैं। इस संदर्भ में कांगड़ा जिला में पिछले कुछ समय में खासी प्रगति हुई है, परंतु नशे के दलाल नवीन प्रयोगों संग छिपा-छिपी खेप पहुंचाने के तरीकों को खोजने के लिए सक्रिय रहते हैं। नशाखोरी के खिलाफ हिमाचल की महिलाएं भी मुहिम छेड़े हुए हैं और अपने-अपने क्षेत्र में इन्हें काफी कामयाबी मिली है।

पुलिस प्रशासन के अलावा आज प्रत्येक जन व अभिभावकों को भी सक्रियता दिखाने की जरूरत है कि वे नशे के कारोबारियों को बेनकाब करने में आगे आएं, जिससे नशे रूपी ग्रहण से ग्रसित अपने बच्चों संग युवा पीढ़ी को बचाएं।

अनिल कुमार पाल

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