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मुलायम सिंह एवं अखिलेश यादव की सपा कार्यकर्ताओं एवं नेताओं को दिशा- निर्देश

मुलायम सिंह एवं अखिलेश यादव की सपा कार्यकर्ताओं एवं नेताओं को दिशा- निर्देश
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सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव एवं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की लगातार यह कोशिश है कि इस प्रदेश की जनता खुशहाल हो. सभी के बीच सद्भावना विकसित हो. सभी विकास करें, किन्तु यह ध्यान रहे कि किसी का शोषण न हो. इसी कारण समय-समय पर इन दोनों नेताओं ने अपने कार्यकर्ताओं को निर्देश दिए हैं. मैंने यह पूरा आलेख इन्ही दोनों प्रमुख नेताओं के शब्दों में लिखने का प्रयत्न किया है,बिन्दुवार....
1. संयमित आचरण - आपका व्यवहार, आपकी बोली किसी को ख़राब न लगे, ऐसा आचरण करना. अगर हमारे कार्यकर्त्ता की इज्जत है, तो हम समझेंगे कि पार्टी की इज्जत है. अगर हमारा कार्यकर्त्ता, हमारा नेता बदनाम है
, तो हमारी पार्टी बदनाम हैं. जो सरकारें गलत होती हैं,जिसकी नीतियां जन भावना के प्रतिकूल होती है, उनके खिलाफ जनता खडी हो जाती है. इसलिए जनता का हर हाल में साथ देना. जनता ही सबसे बड़ी ताकत है.
2. क्रोध पर नियंत्रण - यदि आपमें संयम से ज्यादा क्रोध है, तो याद रखना वह अराजकता का रूप ले लेता है. यदि क्रोध पर संयम है, तो अच्छा है. अगर आपका क्रोध पर संयम नहीं है, तो आपको सोचना पड़ेगा कि कितनी उम्मीदें और कितनी अपेक्षाएं जनता को आपसे हैं, उन उम्मीदों को आप कैसे पूरा करेंगे ?
3. आपसी कटुता - आज राजनीतिक लोगों पर से जनता का विश्वास उठ रहा है. यह इसलिए भी हो रहा है कि हम एक दुसरे पर तो इतने लांछन लगाते हैं
, मगर अपने लोगों की गलतियों बुराइयों को नजरंदाज करते हैं. इसमें बेईमानी, भ्रष्टाचार और गलत काम करने वाले बहुत से लोग बच जाते हैं. बेईमानी, भ्रष्टाचार और गलत काम करने वाले बहुत से लोग बच जाते हैं. बेईमानी की राजनीति करने वाले मुट्ठी भर लोग हैं, मगर पूरी जमात को बदनाम कर रहे हैं.
4. मानव सेवा - हर धर्म में यह कहा गया है कि मानव सेवा से बड़ा कोई धर्म नहीं है. सभी धर्मों और महापुरुषों ने नन्हे बच्चों को मानवता का भविष्य बताया है. देश का भविष्य बताया है. अगर किसी को भी अपने मजहब और मुल्क प्यार होगा, तो वह बच्चों की हिजाफत में कमी नहीं करेगा.
5. सरकार की संवैधानिक जिम्मेदारी - सरकार के दबाव या लालच में आकर कोई गैर-कानूनी असंवैधानिक काम कभी न करें. ऐसे मामलों में अंतरात्मा की आवाज सुने और सही फैसला लें. जन-हित की
, कायदे-क़ानून की और दीन-दुखियों की अनदेखी न करें. नौकरी में तरक्की और तबादले को तो आप झेल लेंगे, मगर जनता की निगाह से गिर गये तो बचना नामुमकिन है. याद रहे, हमारी सरकार में कोई भी गैरकानूनी असंवैधानिक काम नहीं होना चाहिए. इससे आप लोगों की इज्जत बढ़ेगी और जनता में आपका भरोसा. जनता के भरोसे में ही लोकतंत्र की ताकत है.
6. सहनशक्ति का विकास जरूरी - यह महान देश नेताओं का नहीं, जनता का है. देशवासी किस प्रान्त में कहाँ रहें, यह तय करने का काम किसी नेता का नहीं. जनता ही लोकतंत्र की आत्मा है. नेताओं का काम जनहितों के लिए सोचना और सही फैसले लेना है. समाजवादियों,जनहित के लिए सब कुछ सहने की आदत डालो. जो लोग जनहित के लिए तकलीफ सहने की आदत नहीं डाल सकते
, वह समाज और देश की अच्छी सेवा कभी नहीं कर सकते.
7. किसानों के प्रति संवेदनशीलता - किसान की किस्मत पर कभी हमें तरस आता है, तो कभी कलेजा भर आता है. धरती की छाती फाड़कर,ख़राब मौसम में काम करने वाली इस कौम के लिए, जी, हाँ, किसानी एक धर्म है, अन्नदाता का मजहब, तो इस कौम के लिए किसी ने ज्यादा कुछ किया नहीं. जिन्होंने आजादी दिलाई, उनकी योजनायें आधुनिक भारत बनाने की रही है. आधुनिक गांवों की सोच ही नहीं थी उनकी.
8. क़ानून का सम्मान एवं परिपालन - हमारी नज़र में क़ानून का दर्जा सबसे ऊंचा है. क्योंकि क़ानून से ही समाज और इंसानियत सुरक्षित है. जब हम सोते हैं,
तो कानून जागता है. अगर कभी क़ानून कमजोर पड़ गया, तो फिर देश और दुनिया में अराजकता फ़ैल जायेगी. बहुत सी तकलीफों की दवा इन्साफ ही है. जब से हमने होश संभाला है, न्यायपालिका में हमारी गहरी आस्था रही है, क्योंकि जब कोई संकट में होता है, तब न्याय के लिए या तो वह खुदा या भगवान को याद करता है या न्यायपालिका को.
9. शस्त्र प्रदर्शन से बचाव जरूरी - बापू ने दिखा कि सत्य और अहिंसा के सिद्धांत, शास्त्रों से ज्यादा ताकतवर हैं. गांधीजी की विचारधारा की प्रासिंगकता हमेशा रहेगी, इस दुनिया में कोई उसको मिटा नहीं सकता. दुनिया में बहुत सी विचारधाराएँ आई और खत्म हो गयी, लेकिन गांधीजी की विचारधारा सारी दुनिया कहीं न कहीं किसी न किसी न रूप में आज भी दुनिया में कहीं न कहीं किसी न किसी रूप में मौजूद है. उसको कोई मिटा नही सका
, मिटा नहीं सकेगा. उन्होंने शांति, सत्य, अहिंसा अनशन, और असहयोग को ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ हथियार के रूप में इस्तेमाल किया और इस लड़ाई में सबसे बड़ी जीत हासिल की.
10. देश सर्वोपरि - याद रखिये देश से बड़ा कोई नहीं होता. न घर, न परिवार, न कुर्सी और न आत्म-सम्मान. इसलिए जिन्हें भी देश से प्यार हैं, वे अपने नेताओं अपर और अपनी पसंद की राजनैतिक पार्टियों पर निगाह जरूर रखें. उन्हें भटकने, निरकुंश होने तथा मनमानी करने से रोकें. राजनीति में भले लोगों की उदासीनता अच्छी नहीं है. राजनीति में अच्छे लोग दिलचस्पी नहीं लेंगे, तो यह क्षेत्र खाली नहीं रहने वाला. खाली जगह में तो कोई भी आ सकता है. माफिया भी आएगा. अच्छे लोगों के राजनीति में आये बिना
, राजनैतिक पतन को कैसे रोक सकते हैं ?
11. महापुरुषों का सम्मान - प्रदेश के हर शहर में कुछ महापुरुष होते हैं. उन्हें याद करने में कंजूसी नहीं होनी चाहिए. याद रखिये, जो कौमें अपने पुरुखों के आदर्शों, इतिहास और कुर्बानी को भुला देती हैं, वह कौमें नेस्तनाबूद हो जाती हैं. मेरी राय में, हर जिले और हर शहर की आन बान शान की जानकारी पूरी दुनिया को देने के लिए हर साल ऐसे महोत्सवों का आयोजन किया जाना है.
12. साफ़ नियति जरूरी - सवाल है नीयत का. राजनैतिक लोगों के सामने नेता, नीयति और नीति तीन मुद्दे होते हैं. अगर नेता में खराबी है,नीतियों में भी कोई भी कमी है
, लेकिन अगर उसकी नीयत स्पष्ट है, तब भी देश को आगे बढ़ने से कोई रोक नहीं पायेगा. नीयत ख़राब हुई,तब भी बढ़िया नेता और न जोरदार नीतियां कुछ कर पाएंगी.
13. योग्यता का विकास - याद रखिये, उपाधि से कोई आदमी बड़ा नहीं बनता. योग्य नहीं बनता. महान नहीं बनता. देश के इतिहास में ऐसे भी लोग हैं, जिन्होंने कभी कोई डिग्री नही ली, लेकिन उनका शानदार इतिहास रहा है. कोई भी कला कौशल या ज्ञान-विज्ञान तब तक सार्थक नहीं है, जब तक वह समाज तथा राष्ट्र के लिए उपयोगी न सिद्ध हो सके. उपाधियों को सिर्फ बढ़िया छपे ऐसे छपे प्रमाण-पत्र ही मत मानना, जो आपको नौकरियों और ओहदे लेने में मदद करेंगे. ये उपाधियां आपकी नई जिम्मेदारियाँ हैं. जिस ज्ञान को आपने हासिल किया है
,उससे मानवता, समाज, तथा देश की सेवा करने का जिम्मा आपको मिला है. इसे निभाना.
14. महापुरुषों के जन्म एवं पुण्य तिथियाँ अवश्य मानना - महापुरुषों के जन्मदिवस और पुण्य तिथियाँ इसलिए मनाये जाते हैं कि जो लोग उनके जीवन से परिचित हैं, उनसे प्रेरणा हासिल कर सकें. जो नई पीढ़ी है, वह उनके जैसा बनने की कोशिश कर सके. संकल्प ले सके. पक्के इरादे और हौसले के साथ उनके आदर्शों पर अमल कर सके. पक्के इरादे और हौसले के साथ उनके आदर्शों पर अमल कर सके, जरुरी नहीं कि आप किसी एक महापुरुष जैसा बनें, मगर आप अगर बहुत ऊंचे आदर्श रखेंगे, तो तय है कि एक आम इंसान से तो हर हाल में बेहतर कामयाबी पायेंगे.

15. मजहबी राजनीति से परहेज - हम बहुसंख्यकों और मजहबी भावनाओं की राजनीति नहीं करना चाहते, लेकिन दावे से कहना चाहते हैं कि हिंदुस्तान के ज्यादातर हिन्दुओं को मस्जिद गिराने वालों से हमदर्दी नहीं है. समाजवादी पार्टी और मुलायम सिंह ने मस्जिद को लेकर कभी राजनीति नहीं की. आज भारतीय जनता पार्टी ने मंदिर मस्जिद विवाद को अपने राजनैतिक वजूद से जोड़ दिया है. लेकिन मुलायम सिंह ने नहीं जोड़ा है. हमारे मन में सभी धर्मों का गहरा सम्मान है. हम नास्तिक नहीं हैं. हम भगवान को मानते हैं. हर रूप में मानते हैं. अल्लाह के रूप में, वाहे गुरु के रूप में, निराकार, साकार और जितने भी मजहब हैं दुनियां में हैं
, सबका बराबर सम्मान करते हैं. इनके बावजूद अपने मुल्क को सब धर्मों से पहले मानते हैं.
16. अधिकारियों के कर्तव्य - अधिकारियों को सोचना पड़ेगा कि इस देश में उत्तर प्रदेश की नौकरशाही का कैसा चेहरा लोगों के सामने आये,आपके भ्रष्टाचार की चर्चा हो या काम करने की तारीफ़.इसलिए सोचिये कि आप अपनी छवि कैसे सुधार सकते हैं. कई तरह से अपनी छवि आपको सुधारनी पड़ेगी. आपकी बातचीत का तरीका, जनता के बीच आपका आचरण, निष्पक्षता, अपना नुकसान या फायदा होने की परवाह किये बिना जनहित के फैसले लेना और सबसे बड़ी बात दीन-दुखियों से सच्ची हमदर्दी के साथ उनकी मदद की कोशिश. लोग उन्हें जोश से, इज्जत से,
खुश होकर तथा कभी-कभी नाम आँखों से याद करते हैं. उनके जीवन किस्से-कहानी बन गये है. अधिकारी कोशिश करें,तो नेताओं से ज्यादा लोकप्रिय हो जाएँ.
17. साहित्यकारों की भूमिका - आजादी की लड़ाई में जिस तरह कवियों ने देश को जगाने का काम क्या था, उसी तरह से इसे फिर जगाएं. देशवासियों को उनकी जिम्मेदारी तथा भूमिका का अहसास दिलाइये. कविता भी दो तरह की होती है. एक वह जिसमें दर्शन या रहस्य होता है, जिसे पढ़े-लिखे लोग ही समझ सकते हैं. दूसरी जिसमें होती है भावना, प्रेरणा, विचार और तुलना. भावना प्रधान और प्रेरक कविताएँ श्रोताओं के कानो से होकर सधे उनकी आत्मा में उतर जाती है. अनपढ़ शहरी और देहाती भी आपकी ऐसी रचनाओं तथा उनमे छिपी भावनाओं को समझ लेता है.

18. मानवाधिकार की रक्षा जरूरी - जब सारा विश्व पूरी तरह से एक क़ानून के तहत मानवाधिकारों की रक्षा करेगा, एक-दूसरे के साथ आचरण करेगा तो उसके परिणाम असाधारण निकलेंगे. कौन नहीं जानता कि हिंसा करने वाले कौन से मुल्क है, कहाँ मानवाधिकारों का हनन हो रहा है. किस देश में आतंकवाद पनपता है और कौन सा देश दूसरे देशों पर दादागिरी जताने के लिए, वहां की चुनी सरकारों को बर्खास्त कर देता है, बम बरसा कर तबाही मचा देता है. अंतर्राष्ट्रीय कानूनों को व्यापक बनाने अंतर्राष्ट्रीय क़ानून मौजूद हैं, उनका सबसे ज्यादा उल्लंघन कौन कर रहा है.
19. पक्षपात रहित बर्ताव - बुरे काम के नतीजे अच्छे नहीं होते. किसी जाति
, किसी धर्म और किसी विचारधारा की सोच को ध्यान में रख कर लोगों के साथ अगर बर्ताव किया जायेगा. तो उसके नतीजे ख़राब ही निकलेंगे. आज देश के अन्दर क्षेत्रीय भावना, जातीय भवना,धार्मिक भावना, भाषा का सवाल तथा पक्षपात के कारण पूरे देश में दहशत हैं. समाजवादी पार्टी किसी स्तर पर इस तरह के माहौल के अक में नहीं हैं. हमें इस माहौल को खुशियों और हौसलों से भरपूर वातावरण में बदलना है. एक ऐसा समाज बनाना है, जिसमें राजनैतिक विचारधारा, धर्म, जाति, क्षेत्र और भाषा के सवाल इंसानियत को नहीं सतायेंगे. इसलिए हमारे साथ मिल कर संघर्ष कीजिये.
20. लोक कलाओं का संरक्षण - देश की सभी लोक कलाओं में किसी न किसी रूप में दर्शन छिपा होता है. लोकगीतों के माध्यम से आम आदमी अपने अंतर्मन को सुनता हैं. दूसरों की भावनाओं को समझ लेता है. धर्म
, समाज और जीवन की बारीकियों को जान लेता है. कई बार लोग कलाओं के माध्यम से इशारे में और कुछ ही पंक्तियों में जो कह दिया जाता है, वह तमाम तरह की किताबों के निचोड़ के बराबर होता है. सैफई महोत्सव का आयोजन, प्रांतीय और क्षेत्रीय लोक कलाओं के संरक्षण और उनकों बढ़ावा देने के लिए शुरू हुआ था. इस आयोजन में बहुत से लोगों की मदद हमेशा से मिली है, तभी यह महोत्सव निखरता जा रहा है.
21. विदेशी ताकतों के षड्यंत्र से सावधानी जरूरी - हमारी अर्थ व्यवस्था पर विदेशी ताकतों का कब्ज़ा हो रहा है. देश आर्थिक गुलामी की तरह जा रहा है. याद रखियेगा, आर्थिक गुलामी के सहारे हमेशा राजनैतिक गुलामी आती है. सोचिये
, आज क्या हिंदुस्तान में राजनैतिक हस्तक्षेप नही हो रहा है ?
22. पुलिस प्रशासन की जिम्मेदारी - जनता के मन में पुलिस के प्रति कैसे आस्था हो ? इस सवाल का जवाब है कि जब दबंगई करने वाले लोग और अपराधी छिपते फिरें और भले आदमी सड़कों पर सीना तान कर निकले और जवान बहू-बेटियों रात में भी बिना डर अकेले सिनेमा या बाजार आ जा सके, उसी दिन लोगों में पुलिस के प्रति विश्वास पैसा हो जाएगा. अब यह स्थिति कैसे आये, यह सोचना आपका काम है. मगर यह स्थिति आपको लानी ही पड़ेगी.
23. शिक्षकों का सम्मान - हमारे मन में शिक्षको का महत्त्व केवल इसलिए नहीं है कि हम भी शिक्षक हैं. हमें लगता है कि इस देश को सबसे ज्यादा जरूरत शिक्षकों की हैं. यह पूरी दुनियां मानती है कि बच्चे ही किसी भी देश का भविष्य है. अब इस भविष्य को संवारने
, निखारने तथा सही रह पर डालने का काम शिक्षकों के आलावा कौन कर सकता है.
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