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भोजपुरी कहानिया

परधानी के चुनाव : 'चिरई बोखार' के हल्ला मचल बा!

परधानी के चुनाव : चिरई बोखार के हल्ला मचल बा!
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पत्नी- "ए जी सुन लीं! अबकी तनीं अपने जीभी पर लगाम रहे.."

पति- "अरे भईल का!!! कब हम तोहार बात कटलीं...आ अइसन हम का कही देहली कि तूं हमरे जीभी पर लगाम धरे के कहत बाटू"

पत्नी-"सुनीं... इ बात नाहीं बा... देखीं! अब परधानी के चुनाव जोर पे आ गईल बा.. चारो तरफ मुरगा,मछरी, बकरा-शीशी के भरमार बा.. लेकिन एक बात जान लीं! अबकी बार केहू के घरे खाना नाहीं खाये के बा."

पति-"काहें?"

पत्नी- 'ए लिये कि, अबकी मुरगा खूबे सस्ताइल बा..गांव में जेतना प्रत्याशी बानें सब झार के मुरगा खियावत बानें..अऊर ऐ वक्त पूरे देश में मुआ कोरोना के बाद 'चिरई बोखार' के हल्ला मचल बा!

पति- 'चिरई बोखार!! इ कवन बोखार है...हम त रोज अखबार पढ़ी लां लेकिन हम त ना सुनलीं अईसन कवनो बोखार.

चुप रहीं!! रऊरा के अखबार में लड़कनी देखले से फुर्सत मिले तब ना! रोज अखबरवा में चार ठो चिरई क लाश मिलत बा. अउर आप कहत बानीं की हमके पता नाहीं बा. अरे रऊरहीं त बतइलीं की कवनों बीमारी आ गईल बा जसे चिरई और मनई के जान के जान के खतरा बा.

पति- "भक्क! हम त बर्ड फ्लू कहत रहलीं."

पत्नी- "त का भईल....बर्ड मने 'चिरई' और फ्लू माने 'बोखार' .. मने चिरई क बोखार…. इहं न!

एक बात कान खोलकर सुन लीं! मुरगा नाहीं खायके बा त नाहीं खाये के बा.. चाहें केहू जीते, चाहें केहू हारे..अगर खा लेहलीं त जान लेब... घर में घुसे नाहीं देब. फिर न कहब की फलनिया के अम्मा..हेले नाहीं देहलीं.

रिवेश प्रताप सिंह

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