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क्या आप मार्शमेलो टेस्ट पास कर सकते हैं?

क्या आप मार्शमेलो टेस्ट पास कर सकते हैं?
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(प्रशांत द्विवेदी)

कोलंबिया युनिवेर्सिटी के प्रोफ़ेसर मनोवैज्ञानिक वाल्टर मिशैल और उनकी टीम ने 1960 के दशक में स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के बिंग नर्सरी स्कूल की प्री नर्सरी के 4-5 साल के बच्चों के साथ एक एक्सपेरिमेंट किया।

वाल्टर मिशैल की टीम ने उन बच्चों को मार्शमेलो नाम की एक-एक कैंडी (टॉफ़ी) दिया और साथ में यह भी ऑफ़र किया कि चाहो तो इसे तुरंत खा लो या फिर 20 मिनट तक इंतजार करो और उसके बदले में एक कैंडी और मिलगी। बच्चों को उनकी सीट पर बैठा दिया गया और सीट छोड़कर जाने को मना किया गया।

अब बच्चों के पास दो च्वाइस थी, एक तो कि कैंडी तुरंत खा ली जाए, दूसरी यह कि 20 मिनट तक इंतज़ार करें और एक के बदले दो कैंडी पाएं। इस 20 मिनट की अवधि के दौरान उन्हें अपनी सीट पर बैठे भी रहना था, नहीं तो अगर वह उठ जाते तो उन्हें केवल एक ही कैंडी से संतोष करना पड़ता।

मिशैल और उनकी टीम ने देखा कि बमुश्किल चार-पांच साल के प्री स्कूल के बच्चे भी उस 20 मिनट तक आत्म-संयम और आत्म-नियंत्रण की पद्धति से अत्यधिक संघर्ष करते दिखे। मिशैल की टीम ने सभी बच्चों का रिकॉर्ड रखा।

ख़ैर, एक्सपेरिमेंट पूरा हुआ, कुछ बच्चों ने पहली च्वॉइस ली तो कुछ ने दूसरी। इस तरह का एक्सपेरीमेंट मिशैल करते गए और धैर्यपूर्वक इनके परिणामों पर काम करते रहे।

20-25 सालों बाद.....

मिशैल की रिसर्च टीम ने एक्सपेरिमेंट में शामिल बच्चों, जो कि अब नवयुवक बन चुके थे; का ट्रैक रेकॉर्ड निकला। उनकी टीम को चौंकाने वाले परिणाम मिले। मिशैल ने पाया कि टेस्ट में शामिल वे बच्चे जिन्होंने 20 मिनट तक इंतज़ार करने के बाद 2 कैंडी प्राप्त की, वे सभी हेल्थवाइज़ ज़्यादा फिट थे, अर्थात उनका BMI (बॉडी मास इंडेक्स) बेहतर था। यही नहीं, लगभग ऐसे सभी बच्चों का एवरेज SAT स्कोर औरों से बेहतर था। उन्होंने अपनी किशोरावस्था में सामाजिक और संज्ञानात्मक गुणों (कॉग्निटिव ट्रेट्स) को अच्छी तरीके से ग्रहण किया था। उनकी सेल्फ़-वर्थ उच्चस्तरीय थी और उन्होंने अपने जीवन में बेहतर 'लाइफ़-गोल्स' बेहतर ढंग से प्राप्त किया। इसके अलावा उनकी सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक स्थिति गुणवत्तापूर्ण थी। उनका फ्रस्ट्रेशन और स्ट्रेस मैनेजमेंट औरों से बेहतर था और वे टफ़ सिचुएशन से अच्छी तरह से निपटने में सक्षम थे। वे मादक द्रव्यों के सेवन से खुद को बचाए रखने में भी सफल थे।

वैज्ञानिक दुनिया इस परीक्षण को "मार्शमेलो टेस्ट" के नाम से जानती है। आगे चलकर इस लोकप्रिय अध्ययन को सार्वजनिक रूप से प्रकाशित किया गया। आज हम इस प्रयोग को "विलंबित संतुष्टि की शक्ति" के सिद्धांत के रूप में जानते हैं।

मिशैल ने इसे "डिलेड ग्रैटफ़कैशन" कहा है और बताया कि तात्कालिक प्रलोभन या फिर क्षणिक आमोद को टालना एक संज्ञानात्मक कौशल (काग्निटिव स्किल) है। दूसरे शब्दों में इसे "हाई-डिले और "लो डिले" कहा। किसी भी मनुष्य की परसनैलिटी और भविष्य निर्माण में इसका बहुत बड़ा रोल होता है। आपको यह जानकर भी आश्चर्य होगा कि "मार्शमेलो टेस्ट" पास कर चुके लोगों (हाई-डिले) का जब ब्रेन-स्कैन किया गया तो पाया गया कि इनके मस्तिष्क का वह भाग जो कि एडिक्शन और ओबेसिटी को कंट्रोल करता है, उन लोगों की तुलना में अधिक विकसित था जो कि टेस्ट नहीं पास कर पाए थे (लो डिले)।

"माइंड इज़ दी फंक्शन ऑफ ब्रेन"

इसलिए हमारे माइंड और ब्रेन के बीच एक बेहतर कनेक्शन होना चाहिए। एडवांस टेक्नोलॉजी से दिनों-दिन यह साबित होता जा रहा है कि अगर सफल लोगों के ब्रेन स्कैन को देखा जाए तो पाया गया कि उनमें ब्रेन का वह हिस्सा जो आत्म-नियंत्रण और आत्म-अनुशासन या कॉग्निटिव स्किल को ग्रहण करता है, सामान्य व्यक्तियों की तुलना में अधिक स्पष्ट होता है। मॉडर्न साइकलाजिकल-साइकीऐट्रिक मेन्टल हेल्थ और जीवन में सफलता के लिए सबसे महत्वपूर्ण माने जाने वाले ज़्यादातर सिद्धांत इसी प्रयोग या रिसर्च के परिणामों से निकले हैं।

मिशैल आगे बताते हैं कि "डिलेड ग्रैटफ़कैशन" और क्षणिक या तात्कालिक प्रलोभनों को नकारने की क्षमता सभ्यता के विकास के अनुक्रम में एक मूलभूत चैलेंज रहा है। तमाम नृजातीय और मनोवैज्ञानिक अध्ययनों ने यह साबित किया है कि मानव के उद्विकास क्रम में जिन रेसेज में विल पावर या फिर "डिलेड ग्रैटफ़कैशन" की क्षमता अधिक थी वह लोग प्राकृतिक शक्तियों के कम शिकार बने और उनका जैविकीय और सामजिक इतिहास बेहतर रहा।

तो क्या आप "मार्शमेलो टेस्ट" पास कर सकते हैं?

@#प्रशान्त

Walter Mischel

22/02/1930 - 12/09/2018

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