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मुझे गर्व है कि यदि मुझसे कोई बेअदबी हो भी जाय तो मेरे मन्दिर में मेरे राम मुझे मरने नहीं देंगे

मुझे गर्व है कि यदि मुझसे कोई बेअदबी हो भी जाय तो मेरे मन्दिर में मेरे राम मुझे मरने नहीं देंगे
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अपनी बात करूँ तो सामान्य से अधिक धर्मभीरु हूँ। अधिकांश धार्मिक परम्पराओं और विधि-निषेध आदि का सदैव ध्यान रखता हूँ। फिर भी लगभग रोज ही अनुभव होता है कि कुछ भूल हो गयी। कभी जूता पहन कर ही किचेन में घुस जाता हूँ और याद आते ही क्षमा मांगते हुए बाहर भागता हूँ। मुझे पता है, कुलदेवता अपने बच्चे को क्षमा कर देंगे।

लगभग हर वर्ष नवरात्रि में विंध्याचल जी जाते हैं। नियम यह है कि गङ्गा स्नान के बाद ही दर्शन किया जाता है। मैं नदी में स्नान कर लूं तो बीमार हो जाता हूँ, सो हर बार नल पर नहा कर बिना गङ्गा स्नान के ही दर्शन को चला जाता हूँ। मुझे पता है, मां क्षमा कर देगी।

स्नोफिलिया के कारण जाड़े में रोज नहीं नहाते हम! पहले ट्रेनिंग के कारण रोज थावे जाते थे। हमारे कॉलेज के पास ही प्रसिद्ध शक्तिपीठ है, सो अनेको बार बिना नहाए ही मन्दिर चले गए होंगे। मन्दिर के गेट के बाहर से ही प्रणाम कर लेते थे, और क्षमा मांग लेते थे। कोई शक नहीं कि जगत जननी हर बार क्षमा कर देती होगी।

मुझे अपने किसी मंदिर में जाते समय कभी भय नहीं लगता। मैं मन्दिर भय से मुक्त होने जाता हूँ। मेरा ईश्वर जानता है कि मनुष्य गलतियों का पुतला है, वह मेरी हर गलती को माफ करता है। किसी स्थान पर जाते समय यदि भयभीत होना पड़े तो वह घर ईश्वर का हो ही नहीं सकता...

खबर है कि अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में एक व्यक्ति को इसलिए पीट पीट कर मार दिया गया कि उसने बेअदबी की थी। मुझे गर्व है कि यदि मुझसे कोई बेअदबी हो भी जाय तो मेरे मन्दिर में मेरे राम मुझे मरने नहीं देंगे। मेरा धर्म मुझे मारने के लिए नहीं बना है, वह मेरी रक्षा करने के लिए है। वह सदैव मेरी रक्षा ही करेगा...

कितना आश्चर्यजनक है कि किसी पवित्र स्थल पर गए किसी आस्थावान को बेअदब बता कर मार दिया जाय। अजीब है यह, घिनौना भी...

मेरा सनातन धर्म विश्व के आध्यात्मिक इतिहास का सबसे बूढ़ा सदस्य है, जो अपने बच्चों को पितामह की तरह प्रेम करता है। वह धूल में सने बच्चों को भी खिलखिलाते हुए उठा कर अपने गले लगा लेता है। यह सहिष्णुता कुछ सौ वर्ष पूर्व बने सम्प्रदायों में कभी नहीं आ सकती।

कोई समूह यूँ ही 'सभ्यता' होने का दर्जा नहीं पा लेता; सभ्यता का स्तर पाने में युगों लगते हैं। शताब्दियों की कठिन तपस्या के बाद कोई सम्प्रदाय अपने अंदर क्षमा और दया का गुण विकसित कर पाता है। और जबतक आपमे इतनी करुणा नहीं आ जाती, आप एक समूह भर हैं। आपका समूह न सभ्यता है, न धर्म...

मुझे लगता है कि सिक्खों को स्वर्ण मंदिर में हुए अपराध के विरुद्ध मुखर हो कर बोलना चाहिये। हालांकि मैं जानता हूँ कि वे नहीं बोलेंगे। खैर...

सर्वेश कुमार तिवारी

गोपालगंज, बिहार।

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