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प्रयागराज की महाशक्तिपीठ, ललिता देवी करती है भक्तों के हर कष्ट को दूर

प्रयागराज की महाशक्तिपीठ, ललिता देवी करती है भक्तों के हर कष्ट को दूर
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ललितादेवी के मंदिर में भगवती दुर्गा महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती के रूप में विराजमान हैं। मंदिर में प्रवेश करते ही किसी दिव्य शक्ति की अनुभूति होती है। मंदिर में दाईं ओर संकटमोचन हनुमान, श्रीराम, लक्ष्मण व माता सीता तथा बाईं तरफ नवग्रह की मूर्तियां हैं। राधा-कृष्ण की मूर्तियां भी यहां पर हैं जिनका दर्शन अलौकिक सुख देता है।

प्रयागराज में अनेकों देवी मां से जुड़े स्थान है जहां भक्तों की भारी भीड़ जुटी रहती है.इनमें से एक स्थान है मीरापुर स्थित ललिता देवी शक्तिपीठ.यह स्थान बेहद खास है क्योंकि यह देश के भिन्न-भिन्न स्थानों में मौजूद 51 शक्तिपीठों में से एक है.यह वह स्थान है जहां माता सती के दाएं हाथ की उंगलियां गिरी थी.इस पौराणिक मंदिर में देवी मां तीन रूपो- महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती रूप मे विद्यमान है. श्रद्धालु यहां समान श्रद्धा के साथ आते हैं,माता के दर्शन करते हैं और मन्नते मांगते है.मंदिर के पुजारी शिवमूरत मिश्र कहते हैं कि यह ललिता देवी महाशक्ति पीठ है जो भक्तों के दुख को हरती हैं.

यह है मंदिर की पौराणिक कहानी

जब ऋषि नारद मुनि ने माता सती को यह बताया कि उनके पिता प्रजापति दक्ष एक बढ़ा यज्ञ करवा रहे हैं तो माता सती ने भगवान शिव से वहां जाने की इच्छा जताई लेकिन भगवान शिव ने यह कहकर मना कर दिया गया कि हमें तो बुलाया ही नहीं गया. भगवान शिव के मना करने पर भी माता सती अपने पिता के यहां चली गई. वहां पर अपने पिता द्वारा अपने पति के अपमान को सहन ना कर पाने के कारण उन्होंने यज्ञ कुंड में कूद कर अपनी प्राणों की आहुति दे दी.जब इस बात का ज्ञान भगवान शिव को हुआ तो वह माता सती के जलते हुए शरीर को गोद में लेकर संपूर्ण भूमंडल में क्रोधवश भ्रमण करने लगे. सृष्टि को प्रलय से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने अपना चक्र चलाया, इस दौरान माता के 51अंग देश-विदेश के भिन्न-भिन्न स्थानों पर गिरे.इनमें से एक स्थान प्रयागराज का कल्याणी देवी भी है जहां माता के दाएं हाथ की उंगलियां गिरी थी.

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