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हरतालिका तीज आज, जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत कथा

हरतालिका तीज आज, जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत कथा
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भाद्रपद शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरतालिका तीज का व्रत किया जाता है। हरतालिका तीज को गौरी तृतीया व्रत के नाम से भी जाना जाता है। आचार्य इंदु प्रकाश के अनुसार हरतालिका तीज व्रत अविवाहित कन्याओं द्वारा अच्छे पति की प्राप्ति के लिए और विवाहित महिलाएं अपने सौभाग्य में बढ़ोतरी के लिए करती हैं। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को सबसे पहले माता पार्वती ने भगवान शंकर को पति के रूप में पाने के लिए किया था।

हरतालिका तीज का व्रत निर्जला रखा जाता है। इस व्रत में पूजा के बाद रात्रिजागरण करते हुए दूसरे दिन सुबह आरती के साथ समाप्त होता है, तब महिलाएं अपना व्रत तोड़ती हैं और अन्न-जल ग्रहण करती हैं। इस दिन शिव पार्वती जी पूजा की जाती है।

हरतालिका तीज का शुभ मुहूर्त

पूजा मुहूर्त- सुबह 6 बजकर 3 मिनट से सुबह 8 बजकर 33 मिनट तक

प्रदोषकाल हरतालिका व्रत पूजा मुहूर्त- शाम 6 बजकर 33 से रात 8 बजकर 51 मिनट

तृतीया तिथि प्रारंभ: 9 सितंबर देर रात 2 बजकर 33 मिनट से शुरू

तृतीया तिथि समाप्त: 10 सितंबर रात 12 बजकर 18 मिनट तक

हरतालिका पूजा विधि

हरतालिका तीज की पूजा प्रात:काल करना शुभ माना जाता है। अगर ये संभव न हो सके तो सूर्यास्त के बाद प्रदोषकाल में पूजा कर सकते हैं। इस दिन भगवान गणेश, भगवान शिव, माता पार्वती और उनकी सहेली की प्रतिमा बनाकर पूजा की जाती है। सबसे पहले पूजा वाली जगह को साफ कर लें और यहां पर एक चौक रख दें। इस पर केले के पत्ते बिछाएं और भगवान शिव, माता पार्वती और गणेश जी की प्रतिमा स्थापित कर दें। इसके बाद तीनों का षोडशोपचार विधि से पूजन करें। इसके बाद भगवान शिव को धोती और अंगोछा चढ़ाएं और माता पार्वती को सुहाग से संबंधित हर एक चीज चढ़ाएं। यह सभी चीजें किसी ब्राह्मण को दान कर दें। पूजा के बाद तीज की कथा सुनें और रात्रि जागरण करें।

हर प्रहर को तीनों की पूजा करते हुए बिल्व-पत्र, आम के पत्ते, चंपक के पत्ते एवं केवड़ा अर्पण करें और आरती करनी चाहिए। साथ में इन मंत्रों बोलना चाहिए

जब माता पार्वती की पूजा कर रहे हो तब-

ऊं उमायै नम:, ऊं पार्वत्यै नम:, ऊं जगद्धात्र्यै नम:, ऊं जगत्प्रतिष्ठयै नम:, ऊं शांतिरूपिण्यै नम:, ऊं शिवायै नम:

भगवान शिव की आराधना इन मंत्रों से करना चाहिए

ऊं हराय नम:, ऊं महेश्वराय नम:, ऊं शम्भवे नम:, ऊं शूलपाणये नम:, ऊं पिनाकवृषे नम:, ऊं शिवाय नम:, ऊं पशुपतये नम:, ऊं महादेवाय नम

अगली सुबह आरती के माता पार्वती को सिंदूर चढ़ाएं और हलवे का भोग लगाकर व्रत खोलें।

हतालिका तीज व्रत कथा

धर्म ग्रंथों के अनुसार यह वह व्रत कथा है जिसमें तीज की कथा भगवान शंकर ने पार्वती को उनके पूर्व जन्म का याद दिलाने के लिए के लिए सुनाई थी। जो इस प्रकार है- भगवान शिव नें पार्वती को बताया कि वो अपने पूर्व जन्म में राजा दक्ष की पुत्री सती थीं। सती के रूप में भी वे भगवान शंकर की प्रिय पत्नी थीं।

एक बार सती के पिता दक्ष ने एक महान यज्ञ का आयोजन किया, लेकिन उसमें द्वेषतावश भगवान शंकर को आमंत्रित नहीं किया। जब यह बात सती को पता चली तो उन्होंने भगवान शंकर से यज्ञ में चलने को कहा, लेकिन आमंत्रित किए बिना भगवान शंकर ने जाने से इंकार कर दिया।

तब सती स्वयं यज्ञ में शामिल होने चली गईं और अपने पिता दक्ष से पूछा कि मेरे पति को क्यों न बुलाया? इस बात पर दक्ष ने खूब बुरा-भला शकंर जी को सुनाया। इस तरह माता पार्वती से अपने पति शिव का अपमान देखा नहीं गया और यज्ञ की अग्नि में देह त्याग दी।

अगले जन्‍म में उन्‍होंने राजा हिमाचल के यहां जन्‍म लिया और पूर्व जन्‍म की स्‍मृति शेष रहने के कारण इस जन्‍म में भी उन्‍होंने भगवान शंकर को ही पति के रूप में प्राप्‍त करने के लिए तपस्‍या की। देवी पार्वती ने तो मन ही मन भगवान शिव को अपना पति मान लिया था और वह सदैव भगवान शिव की तपस्‍या में लीन रहतीं। पुत्री की यह हालत देखकर राजा हिमाचल को चिंता होने लगी। इस संबंध में उन्‍होंने नारदजी से चर्चा की तो उनके कहने पर उन्‍होंने अपनी पुत्री उमा का विवाह भगवान विष्‍णु से कराने का निश्‍चय किया। पार्वतीजी विष्‍णुजी से विवाह नहीं करना चाहती थीं। पार्वतीजी के मन की बात जानकर उनकी सखियां उन्‍हें लेकर घने जंगल में चली गईं। इस तरह सखियों द्वारा उनका हरण कर लेने की वजह से इस व्रत का नाम हरतालिका व्रत पड़ा। पार्वती जी तब तक शिवजी की तपस्‍या करती रहीं जब तक उन्‍हें भगवान शिव पति के रूप में प्राप्‍त नहीं हुए। तभी से पार्वती जी के प्रति सच्‍ची श्रृद्धा के साथ यह व्रत किया जाता है।

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