Janta Ki Awaz
लेख

आम आदमी को महंगाई डायन खाए जात है...

आम आदमी को महंगाई डायन खाए जात है...
X

प्रेम शंकर मिश्र

प्रधानमंत्री एक ऐसी अर्थनीति के निर्माता बन चुके हैं, जिसका एकमात्र उद्देश्य बड़े कारपोरेट घराने को फायदा पहुंचाना ही है, इनकी इस अर्थनीति के चलते आम आदमी की जिंदगी दुश्वार हो चली है। गत दो वर्षों से जारी महंगाई दर ने पिछले सभी रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिए।

अमीर आदमी को यकीनन महंगाई से कुछ भी फर्क नहीं पड़ता, किंतु एक गरीब इंसान की हालत कितनी बद से बदतर हो चली है, इसका कुछ भी अंदाजा शासक वर्ग को संभवतया बिल्कुल भी नहीं है, अन्यथा इस पर इतना बेरहमी वाला रुख हुकूमत की ओर से अख्तियार नहीं किया जाता।

विपक्ष के बिखराव और खराब सियासी हालात ने कमरतोड़ महंगाई के प्रश्न पर जनमानस के रोष की अभिव्यक्ति को अत्यंत असहज कर दिया है, अपनी माली हालत को लेकर आम आदमी के अंदर में जबरदस्त ज्वालामुखी धधक रहा है।

अमीर तबके के और अधिक अमीर हो जाने की अंतहीन पिपासा की खातिर आम आदमी को निचोड़ा जा रहा है।

मार्केट इकोनॉमी के नाम पर पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों को बेलगाम कर दिया गया है।

हुकूमत द्वारा महंगाई के दावानल में पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस को भी डाल दिया गया।

महंगाई के प्रश्न पर आम आदमी का रोष इसलिए भी राजनीतिक जोर नहीं पकड़ रहा क्योंकि सभी राजनीतिक दलों के नेताओं का अपना स्वयं का चरित्र भी कॉर्पोरेट परस्त होता जा रहा है, उन्हे जनता से कोई सरोकार नही!

संसद के सदस्य अपना वेतन बीस हजार से बढ़ाकर नब्बे हजार करने जा रहे हैं, जो कि हुकूमत के सेक्रेटरी रैंक के अफसर के वेतन के समकक्ष होगा।

सरकारी आंकड़े खुद ही बयान करते हैं कि गत वर्ष के दौरान खाने-पीने की वस्तुओं के दाम 16.5 की इंफ्लेशन की दर से बढ़े हैं।

चीनी के दाम 73 फीसदी, मूंग दाल की कीमत 113 फीसद, उड़द दाल के दाम 71 फीसद, अनाज के दाम 20 फीसद, अरहर दाल की कीमत 58 फीसद और आलू-प्याज के दाम 32 फीसद बढ़ गए हैं।

रिफाइण्ड , सरसों तेल के दाम भी आसमान छू रहे!

इसके अलावा रिटेल के दामों और थोक दामों में भारी अंतर बना ही रहता है।

सरकारी आंकड़े महज थोक सूचकांक बताते हैं, जबकि आम आदमी तक माल पहुंचने में बहुत से बिचौलियों और दलालों की जेबें गरम हो चुकी होती हैं।

वैसे भी भारत की अर्थव्यवस्था अब सटोरियों और बिचौलियों के हाथों में ही खेल रही है।

अपना खून-पसीना एक करके उत्पादन करने वाले किसानों की कमर कर्ज से झुक चुकी है।

रिटेल बाजार में खाद्य पदार्थों के दाम चाहे कुछ भी क्यों न बढ़ जाएँ, किसान वर्ग को इसका फायदा कदाचित नहीं पहुंचता।

इतना ही नहीं, धीरे-धीरे उनके हाथ से उनकी जमीन भी छिनती जा रही है।

कबीर दास ने लिखा था:-

कबीर हाय गरीब की कबहु न निष्फल जाए।

मरी खाल की सांस से लौह भस्म हो जाए।।

वर्तमान परिवेश में कबीर के ये दोहे सटीक बैठ रहे!

हूकुमत चेत जाये नहीं तो गरीब, मध्यम वर्ग की जो हाय लगेगी वो सत्ता परिवर्तन के साथ-२ बहुत अनर्थ करा जायेगा!

Next Story
Share it