Janta Ki Awaz
लेख

होली जलाने मात्र से ऐसा लगता है कि जैसे अस्मिता का चीर हरण हो रहा है..

होली जलाने मात्र से ऐसा लगता है कि जैसे अस्मिता का चीर हरण हो रहा है..
X

सुनील कुमार यादव ...

...ये जो होली जलाने मात्र से ऐसा लगता है कि जैसे अस्मिता का चीर हरण हो रहा है...!!! ...एक बार फिर पढिये जिनका होली जलाने मात्र से ऐसा लग रहा कि अस्मिता का चीरहरण हुआ जा रहा है ये क्या साबित करना चाहते हैं...??? ...हम ये समझना चाहते हैं खुले मन से...!!!

...हमको नहीं पता सच क्या है कई कहानियां पढ़ी कई मिथ पढ़े होली को लेकर मगर है तो सब प्रतीकात्मक ही है न ? ... फिर इतनी क्रान्तिकारी संवेदनशीलता का निहितार्थ तो सोंचने पर मजबूर करता ही है...!!!

....मैं समझ नहीं पाता बल्कि आश्चर्यचकित हो जाता हूं कि जिस देश समाज में इतने संवेदनशील लोग निवास करते हों कि प्रतीकात्मक होलिका दहन से ही लोग क्रान्तिकारी विचारवान हो जाएं उस देश समाज में कैसे इतनी लडकियों का हत्या और बलात्कार हो सकता है...??? ...कैसे लडकियां औरते जिन्दा जला दी जातीं हैं...??? ...और सबसे बड़ी बात कैसे लोग ये खबरे सुनकर/देखकर/जानकर भी बर्दाश्त कर लेते हैं...???

...मैंने आज सोशल मीडिया पर जहां-जहां होलिकादहन का विरोध देखा वहां मैं सोंचने पर विवश हुआ कि हाथरस में लडकी का न सिर्फ बलात्कार हुआ बल्कि रातो-रात उसे थिनर में जब जलाया गया तब ये क्रान्तिकारी कहां थे...??? ...उत्तर प्रदेश में हत्या बलात्कार की खबरे किसी से छिपी नहीं हैं और संवेदनशीलता के इस स्तर को जानने के बाद इतनी शांति क्या यह समाजिक दोहरापन की निशानी नहीं...??? ...या सिर्फ होलिका ही स्त्री है या स्त्री का प्रतिनिधित्व है/ऐसे सवाल उठना भी तो लाजिमी है...!!!

...जहां राजनीतिक समाज के क्रियाकलाप ने सामाजिक जीवन को इस हद तक प्रभावित व निराश किया हो कि समाज और सामाजिकता महज निराशा और कटुता तक सीमित होकर रह गयी हो ऐसे में होली जैसे पर्व संजीवनी का काम करते हैं मगर इसपर भी एक वर्ग को अपनी अस्मिता में ऑच दिखती है ये तो टू मच की स्थिति हो गयी...!!! ...और ये वो वर्ग है जो समाजिक न्याय के नाम पर समाज को बांटने का काम तो बखूबी करता आया है मगर एक करने का फार्मूला इसके पास है ही नहीं इस बात का जीता जागता सुबूत देश और प्रदेश की सरकारें हैं...!!!

...खैर होली सर्वसमाज को शुभ हो हम तो यही कहेगें...!!


Next Story
Share it