मध्य प्रदेश उपचुनाव : संवेदनशील मुद्दे और कांग्रेस

मध्य प्रदेश निर्वाचन आयोग द्वारा उपचुनाव की तारीखों की घोषणा करने के बाद दोनों दलों की रणनीति सतह पर आने लगी है । जिन व्दिहंसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं, वहाँ सीधी लड़ाई कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के बीच ही है। अगर हम पिछले चुनाव की बात करें, तो इसमें से अधिकांश विधानसभा सीटें कांग्रेस के उम्मीदवारों ने ही जीती। यह बात अलग है कि उस समय ज्योतिरादित्य सिंधिया भी कांग्रेस में थे । चुनाव में कांग्रेस की जो फतह हुई थी, ज्योतिरादित्य सिंधिया को ऐसा लगता था कि यह जीत उनकी सक्रियता के कारण मिली है। इसलिए उनकी इच्छा थी कि वे मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बनें। लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमलनाथ को मुख्यमंत्री के लिए चुना । कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के इस निर्णय के बाद ही ज्योतिरादित्य सिंधिया थोड़े से अनमने हो गए। फिर उन्होने अपना दिमाग मंत्रिमंडल के गठन में लगाया। उनकी इच्छा थी कि उन्हे गुट के अधिक से अधिक विधायक कमलनाथ मंत्रिमंडल में शामिल हो जाएँ। उसमें भी वे सफल रहे। उन्होने ऐसा दबाव बनाया कि मुख्यमंत्री कमलनाथ को ज्योतिरादित्य सिंधिया के अधिकांश समर्थकों को अपने मंत्रिमंडल में शामिल करना पड़ा। लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने समर्थक मंत्रियों को उतने मलाईदार और प्रभावी मंत्रिमंडल नहीं दिलवा पाये, जितनी उनकी अपेक्षा थी। फिर मुख्यमंत्री कमलनाथ मध्य प्रदेश कांग्रेस की राजनीति का एक भारी भरकम चेहरा है। उनके तर्कों के आगे ज्योतिरादित्य सिंधिया की एक नहीं चली। फिर एक सक्षम और अनुभवी नेता होने के नाते कमलनाथ ने बड़ी तेजी से कार्य करना शुरू किया, जिसकी वजह से ज्योतिरादित्य सिंधिया के जो विधायक मंत्रिमंडल में शामिल हो गए थे, उनके पास विशेष कुछ करने के लिए नहीं बचा था । इसकी शिकायत लगातार सिंधिया गुट के मंत्री ज्योतिरादित्य से करते रहे। धीरे-धीरे ज्योतिरादित्य का भी मन बदलने लगा। वर्षों की निष्ठा ढीली पड़ने लगी। इसी का फायदा उठा कर भारतीय जनता पार्टी ने मध्य प्रदेश में एक प्रयोग किया और वह सफल रहा । बहुमत की सरकार होने के बाद भी कमलनाथ की सरकार गिर गई। ज्योतिरादित्य अलग हो गए। जो कुछ भारतीय जनता पार्टी और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच तय हुआ था। उसके हिसाब से उन्हें मध्य प्रदेश के कोटे से भाजपा ने उन्हे राज्यसभा भेज कर अपना वायदा पूरा कर दिया । लेकिन राजनीति के माहिर खिलाड़ी कमलनाथ जाते-जाते अपने खेल कर गए। जितने विधायक कांग्रेस छोड़ कर गए थे, सभी विधानसभा सदस्यता रद्द करवाने में सफल रहे । इसी कारण मध्य प्रदेश की अधिकांश ऐसी सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं, जिन विधायकों की विधानसभा सदस्यता रद्द हो गई थी ।
जिस ज्योतिरादित्य सिंधिया की वजह से कमलनाथ को मुख्यमंत्री पद से हाथ धोना पड़ा हो, वे उस दगाबाजी को कैसे भूल सकते हैं। इसके अलावा यह उपचुनाव यह तय करेगा कि सिंधिया के कारण मध्य प्रदेश में कांग्रेस का वजूद नहीं था। बल्कि कांग्रेस के वजूद की वजह से ज्योतिरादित्य को प्रतिष्ठा मिली हुई थी। हालांकि ज्योतिरादित्य सिंधिया के लंबे समय तक कांग्रेस में रहने और गांधी परिवार से नजदीकी होने के कारण उनका मध्य प्रदेश की राजनीति में बड़ा कद रहा। अगर पिछली कुछ घटनाओं को छोड़ दें, तो सोनिया गांधी हों, या राहुल गांधी ज्योतिरादित्य सिंधिया को बहुत सम्मान और प्रेम देते थे। कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी ज्योतिरादित्य को अपना बेटा मानती थी और राहुल गांधी से कम प्रेम नहीं करती थी। एक बार की बात है, भारत के प्रधानमंत्री के रूप में राहुल गांधी की परिपक्वता को लेकर वहाँ बैठे हुए तमाम लोग सवालिया निशान लगा रहे थे। तब सोनिया गांधी ने उन लोगों से कहा था, कोई बात नहीं, अगर राहुल गांधी में परिपक्वता की कमी है, तो मेरा दूसरा बेटा तो है न। लोगों को लगा कि सोनिया गांधी प्रियंका गांधी को बेटा कह रही है। यह कनफर्म करने के लिए जब वहाँ उपस्थित नेताओं ने और कुरेदा तो सोनिया गांधी ने ज्योतिरादित्य सिंधिया का नाम लिया था । और बड़े मजे की बात तो यह है कि राहुल गांधी को भी अपनी माँ के इस निर्णय पर कोई आपत्ति नहीं थी। बल्कि खुशी थी। सोनिया गांधी और राहुल गांधी के दिल में ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए यह स्थान था। इसके बाद भी ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस छोड़ कर चले गए । कांग्रेस के लिए, सोनिया गांधी और राहुल गांधी के लिये यह अनपेक्षित था ।
जब ज्योतिरादित्य सिंधिया भारतीय जनता पार्टी में चले गए। दिग्विजय सिंह और कमलनाथ दो ही बड़े नेता बचे हैं। जिनकी सोनिया गांधी और राहुल गांधी के दरबार में पूछ – परख है । लेकिन उपचुनाव की पूरी कमान कमलनाथ के हाथ है। और वही सारे फैसले ले रहे हैं। हाँ, इतना जरूर है कि वे हर फैसले पर सोनिया गांधी और राहुल गांधी की अंतिम मुहर भी लगवा ले रहे हैं । इसी कारण उन्होने ऐसे मुद्दों पर भारतीय जनता पार्टी और उनके उम्मीदवारों को घेरने का प्रयास कर रहे हैं, जो अत्यंत संवेदनशील हैं। इसके लिए उन्होने 28 बिन्दु तैयार किए हैं और इन बिन्दुओं को वचन-पत्र का स्वरूप दे दिया है । कमोवेश 28 सीटो पर उपचुनाव भी हो रहे हैं । इस वचन पत्र में दो मुद्दे ऐसे हैं, जिन पर कमलनाथ ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में काम किया था । वे मुद्दे हैं कर्जमाफ़ी और बिजली बिल माफी । इन दो मुद्दों के सहारे कमलनाथ 28 विधानसभा की जनता को यह समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि कांग्रेस पार्टी जो कहती है, वह करती है। पिछले चुनाव में कांग्रेस ने यह वायदा किया था कि अगर हमारी सरकार बनी तो हम किसानों की कर्जमाफ़ी और बकाया बिजली बिल माफ कर देंगे, वह कर दिया था। अगर आप लोग एक कांग्रेस पर विश्वास करके फिर जीत दिला देते हैं, तो भारतीय जनता पार्टी सरकार अल्पमत में आ जाएगी और सरकार गिर जाएगी । हमारे पास बहुमत है, इसलिए हम फिर से सरकार बनाएँगे और किसानों की समस्याओं को उसी तरह हल करेंगे, जैसे अपने मुख्यमंत्रित्व काल में हल किया था। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार है। वहाँ पर किसानों और खेतिहर मजदूरों के लिए गोधन योजना चल रही है। इस योजना से वहाँ का किसान काफी खुश है । पहले छतीसगढ़ भी मध्य प्रदेश का हिस्सा था। इस कारण आज भी दोनों प्रदेशों की जनता के बीच में आज भी पारिवारिक और वैवाहिक रिश्ते होते हैं। इस कारण दोनों प्रदेशों की जनता का आपस में मिलना-जुलना भी होता रहता है। ऐसे में कांग्रेस द्वारा गोधन योजना भी मध्य प्रदेश के किसानों को काफी आकर्षित करेगी। कमलनाथ यहीं पर नहीं रुके। कोरोना संकट और संक्रमण से सभी पीड़ित हैं। लेकिन केंद्र और राज्य सरकार ने इसे राष्ट्रीय या राजकीय आपदा घोषित नहीं किया। अगर केंद्र सरकार और मध्य प्रदेश की राज्य सरकार इसे राष्ट्रीय आपदा घोषित करती तो उन्हें राजकीय कोष से इलाज और मृत्यु होने की दशा में मुआवज़ा देना पड़ता। कमलनाथ ने अपने वचन पत्र में इसकी घोषणा करके भारतीय जनता पार्टी के सामने समस्या खड़ी कर दी है । इतना ही नहीं कमलनाथ ने यह भी घोषणा की है कि अगर कोरोना संक्रमण से परिवार के मुखिया की मौत हो जाती है, तो उस परिवार के एक बालिग सदस्य को सदस्य को सरकार संविदा पर तुरंत नौकरी भी देगी। फुटकर व्यापारियों को 50 हजार रुपये का ब्याजमुक्त ऋण की घोषणा कर कस्बाई वोटरों को भी अपने पक्ष में करने का कमलनाथ ने प्रयास किया है । इसके अलावा कमलनाथ ने मध्य प्रदेश मे खराब फसल होने और शिवराज सरकार द्वारा उसका मुआबजा न मिलने की वजह से किसान आत्महत्या कर रहे हैं, उसे भी कमलनाथ अपने वचन पत्र में रखने वाले हैं। इसके अलावा खरगोन में एक मासूम बेटी के साथ हुई दरिंदगी को आधार बना कर शिवराज सरकार को घेरने का काम करेंगे। इसी तरह रोजगार व नौकरी के अभाव में युवाओं द्वारा जो आत्महत्याए हो रही हैं, उसे भी अपने वचन पत्र में किसी न किसी रूप में कमलनाथ शामिल करने वाले हैं।
कहने का तात्पर्य यह है कि मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ तमाम ऐसे संवेदनशील मुद्दों के साथ इस उपचुनाव में उतरने की तैयारी कर रहे हैं, जिसका शिवराज सिंह चौहान सरकार के पास जवाब न हो । जिससे भाजपा को कटघरे में खड़ा किया जा सके । और जनता को आसानी से अपने पक्ष में मोड़ा जा सके । मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कांग्रेस के 28 वचन-पत्र को अभी अंतिम रूप नहीं दिया है। लेकिन इसके लिए वे ऐसे तमाम संवेदनशील मुद्दे तलाश रहे हैं, जिससे भाजपा को घेरा जा सके और अपने पक्ष में मतदाताओं को लामबंद किया जा सके । अब देखना यह है कि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह, गृहमंत्री अमित शाह कमलनाथ के इन संवेदनशील मुद्दों से कैसे पार पाते हैं । चुनाव आयोग की अधिसूचना लागू होने की वजह से वे ऐसी किसी योजना की घोषणा भी नही कर सकते हैं, जो उनके इन संवेदनशील मुद्दों का जवाब हो सकती है ।
प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव
पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट